आज सुबह से ही नम्रता का सर चकरा रहा पेट में भी रह रह कर दर्द सा हो रहा। जैसे तैसे करके सुबह नाश्ता निपटाया आराम करने कमरे में चली गई सोचा थोड़ी देर बाद दवाई खाकर आराम आयेगा तो बाकी का काम भी निपटा ही लुंगी सब वैसे ही पड़ा रहने दिया। तभी सासूमां रेखा जी मंदिर से वापस आ घर में घूसती है अस्त व्यस्त घर देख कर चिल्लाने लगी अरे ऽऽ आज ये घर ऐसे ही गन्दा पड़ा रहेगा क्या ..? पास ही कुर्सी पर बैठे पति रमेश जी ने जब पत्नी की चिलचिलाती आवाज सूनी तो बोले अरी भाग्यवान इतना ऊँचा क्यों चिल्ला रही हो तुम थोड़ा धीरे बोलो बहु की तबीयत खराब है आराम करने दो उसे बेचारी ने कैसे करके नाश्ता बना दिया है ? चुप करके खा लो, और घूम आओ अड़ोस-पड़ोस में अपनी सखी सहेलियों के पास। आज मेड नहीं आयेगी फोन किया दो दिन छुट्टी ली उसने बच्चा बहुत बीमार है उसका ।
सासूमां रेखा जी बहुत गरम मिजाज महिला बहु की बीमारी का सुनकर बिना सोचे-विचारे बस भड़क पड़ी बीमार विमार कुछ नहीं ये बहु, बस काम न करने के बहाने है सब इसके पता है काम वाली नहीं आ रही बीमारी का बहाना करो और पड़ जाओ बिस्तर में, ससुर जी रमेश बाबू अपनी पत्नी रेखा जी का व्यवहार अच्छे से जानते थे। उनको उसका वर्ताव बिल्कुल अच्छा नहीं लगा मगर वो कर भी क्या सकते थे ..?
बहु का पक्ष लिया तो पत्नी को बर्दाश्त नहीं होने वाला नहीं लिया तो बहु के साथ अन्याय होगा…हिम्मत कर बोले देखो रेखा एक औरत होकर तुम एक औरत के दर्द को नहीं समझ सकती हो क्या ? “सास को बहु की तकलीफ़ नहीं दिखती है” सोच समझ कर तो बोला करो कम से कम, बहु की तबीयत सुबह से खराब है और मेड का फोन तो अभी कुछ समय पहले ही आया तुम तो भोर सबेरे निकल गई कथा के लिए मन्दिर, जब कुछ पता न हो तो फालतू बोलना नहीं चाहिए। रेखा जी ने अटपटी नजरों से पति की तरफ देखा उससे पहले वो कुछ बोले पति रमेश बाबू अखवार उठा लान में जाकर पढ़ने बैठ गये ।
रेखा जी ने प्लेट में नाश्ता लिया और खाने लगी ये पास्ता फास्ता ढंग की सब्जी बना देती तो गले से नीचे उतर जाती ये आजकल की बहुएं भी निकम्मी कामचोर काम धाम होता नहीं इनसे छुईमुई सी काया इनकी
“ मुझसे तो एक निवाला भी खाया न जायेगा ये नाश्ता, नमक भी ढेर ठूंस दिया ” ।
प्लेट वहीं मेज में पटक बड़बड़ाती “ अब मेरे हाथों में दर्द न होता तो खुद बना लेती चलों पड़ोस में चलती हूँ ”. …
घर से बाहर निकल पड़ी । रेखा जी बस बहु की ग़लती करने के इंतजार में ही रहती बस कोई मौका नहीं चूकती उसको अड़ोस-पड़ोस में गलत और खराब बहु साबित करने का, चली गई मौहल्ले में बहु का बखान करने अपना जी हल्का करने।
शाम होते होते नम्रता के पति राकेश भी आ गये पत्नी को बीमार देख खुद ही चाय बनाई पिता आराम कर रहे और कोई पीने वाला था नहीं तो खुद के लिए और पत्नी नम्रता के लिए दो कप चाय ले कमरे में आ गये बोले –
नम्रता लो गर्म गर्म चाय पी लो तुमको आराम मिलेगा ।
नम्रता ने चाय ली और पीने लगी बोली अरे आप ने क्यों बनाई मैं बना देती ?
क्यूं मैं नहीं बना सकता क्या ?
तुम लेटी रहो बहुत कमजोर लग रही हो, दवाई समय से लेती रहना बहुत लापरवाही करती हो दवाई खाने में, पति राकेश जिम्मेदाराना अंदाज से बोले।
देखों थोड़ा काम मैं कर देता हूँ बस तुम सब्जी बना देना जैसे तैसे आकर बाहर से मंगवा लेते लेकिन तुमको और माँ को बहार का खाना सही नहीं रहेगा काफी मिर्च मसाला रहता है उसमें।
चावल पुलाव आता मुझे बनाना आज काम चला लेंगे राकेश ने कहा और किचन में सब्जी वगैरा काटने लगा धोकर एक तरफ रख दी चाय के बर्तन भी धो दिए।
तभी रेखा जी आ जाती है बेटे को काम करता देख ताना मारने से नहीं चूकती अरे ओ जोरू के गुलाम… राकेश पहले ही ऑफिस से थका मांदा आया मां के ताने से शिकायती प्रवृति से और परेशान हो जाता है । कहे भी क्या ? जानता माँ सुनने वाली थी नहीं अगर कुछ बोला तो बदले में माँ आदतन चार बातें और सूना देगी । तभी पिता रमेश जी भी आ जाते हैं और बेटे की काम में सहायता करने लगते हैं। पत्नी कुछ और बोले पहले ही बोल पड़े देखो रेखा तुम को रात के खाने में मदद करनी है तो रहो वरना जाओ कमरे में।
रेखा जी कराहते बोली आपको पता है मेरे हाथों में दर्द रहता मेरे से नहीं बनेगा…सीधे पूजा घर में जाकर पूजा करने बैठ गईं मगर वहां भी चैन नहीं ताने मारती रही
“ करो रानी महारानी खूब आराम काम का क्या… ? हो जायेगा, लगा जोरू का गुलाम खिदमत करने में बैठाओ खूब सर पर मुझे क्या “?
रमेश बाबू पत्नी की उलाहना में क्रोधित होकर कहते हैं।
अरे बहु है वो हमारी कोई मशीन नहीं है तुम जैसी सास को बहु की तकलीफ़ नहीं दिखती है, जो लगातार बिना थके सुबह की चाय से लेकर रात के दूध बांटने तक लगी रहे, सेवा करती रहे।
बेटा पानी का गिलास भी पकड़ा दे तो जोरू का गुलाम घोषित हो जाये ।
घर गृहस्थी किसी बहु या पत्नी के अकेले की ज़िम्मेदारी नहीं है। यह दोनों की सांझा जिम्मेदारी है। इसलिए अगर पति सहायता कर देता है तो इसमें बुराई ही क्या है ? रमेश बाबू गुस्से में अपना आपा खोते जा रहे थे।
दूसरे दिन सुबह सुबह से ही सासूमां रेखा जी की किचकिच शुरू हो गई ये बाथरूम के पास इतना पानी डाल रखा है ये इस नम्रता का ही काम होगा सोचती होगी सासू फिसल कर गिर जाए तो पूरे घर पर इसका ही राज हो जाये। नम्रता पहले ही अपने को अस्वस्थ्य महसूस कर रही किसी तरह उठकर सुबह के काम निपटाने की कोशिश कर रही थी। सासूमां की कटु बातें सुनकर उसका भी गुस्सा फूट पड़ा दो चार बातें उसने भी आज सुना ही दी।
सुबह-सुबह कलह का माहौल आवाज सुनकर रमेश बाबू और राकेश कमरे से बाहर आ जाते हैं। नम्रता का इतना गुस्से वाला रूप उन्होंने आज पहली बार देखा था। जानता था तकलीफ के कारण रात भर ठीक से सो भी नहीं सकी थी वो और रेखा जी उस पर बराबर बरस रहीं छींटाकशी करती जा रही।
राकेश माँ से कहता है माँ थोड़ी मैच्योरिटी दिखाओ नम्रता को समझने की कोशिश करो आप दोनों की लड़ाई अब सास बहु की लड़ाई नहीं बल्कि सत्ता पाने की लड़ाई बनती जा रही है। माना आपकी और आपकी बहु की सोच भिन्न भिन्न है। आप दोनों अलग-अलग विचारों से जुड़ी हुई है। ज्यादा अच्छा है दोनों तालमेल बिठाये समझने की कोशिश करें ये फालतू झगड़ा, बहस न ही करें तो सही रहेगा।
राकेश पत्नी नम्रता को भी समझाता है कहता है।
“ देखो नम्रता जिस पेड़ पर अधिक फल होते हैं वो अधिक झुका हुआ होता है, सभी उसे पसंद करते हैं पत्नी हो या माँ फल वाला वृक्ष बनना चाहिये, झगड़ों से घर परिवार में पतझड़ न लायें “
फिर माँ को समझाते हुए कहता है देखो- माँ नम्रता हमेशा आपको प्रसन्न करने की कोशिश में रहती है। और आप है कि उससे प्रसन्न होने की बजाय उससे विरोधी भावना विवाद की स्थिति खड़ा कर देती है। अफसोस के साथ कह रहा हूँ तुम दोनों ही एक दूसरे को ठीक से समझ नहीं पा रहे हो । माँ नम्रता आज के विचारों की है वो परिवर्तन लाना चाहती हैं आप उसे स्वीकार नहीं कर पा रहीं हैं। आप जो बहार जाकर अपनी ही बहु की बुराइयां करती हो बाहर के लोग आपकी बातें सुनकर आपकी ही घर की आग में हाथ तापते है।
“ देखों माँ अगर घर में आप राजमाता के स्थान पर हो तो आपकी बहु रानी के स्थान पर है “ ।
आप सम्मान के साथ उसको गृह लक्ष्मी के रूप में घर लाई हो माना वो दूसरे घर से आई रहन सहन आचार विचार थोड़े भिन्न हैं उसके जो स्वाभाविक ही है। ऐसे में आपकी जिम्मेदारी बनती है उसे अधिक प्यार देकर अपने घर जैसा महसूस करायें। जब पालतू पशु पक्षियों को प्यार से अपना बनाया जा सकता है। तो बहु तो फिर भी इंसान हैं। आप उसके दुख दर्द को नहीं समझेंगी तो फिर कौन समझेगा ?
आप दोनों के विवाद से घर का माहौल खराब होता है। मै और पापा बहुत परेशान हो जाते हैं। हमारी स्थिति दो पाटों के बीच में फंसीं सी हो जाती है। हमें मानसिक भावनात्मक थकान महसूस होने लगती है। हम दोनों तनावग्रस्त हो खुद को दोषी महसूस करने लगते हैं। अभ कहीं ऐसा न हो अधिक तनाव ग्रस्त होने से मुझे हार्ट का दौरा ही न पड़ जाए.. तभी रमेश बाबू भी मायूस सा चेहरा बनाकर कहते हैं बेटा राकेश तुम एकदम सही कह रहो हो अनेक बार मुझे भी ऐसा महसूस होता है मैंने तो डॉक्टर से भी कन्सल्ट किया उसने भी संभलकर रहने की सलाह दी है।
पति रमेश और बेटे राकेश की बात सुनकर रेखा जी चौंक पड़ती है उनका तो बुरा हाल नजर आने लगता है। नम्रता भी सहम सी जाती है । बस इसका फायदा उठा राकेश कहता है माँ अगर आप दोनों का ऐसा ही चलता रहा तो बेहतर रहेगा मैं अपने रहने की कहीं और व्यवस्था कर लेता हूँ राकेश की घर छोड़कर जाने का बात से तो रेखा जी के होश ही उड़ गए भला कौन माँ अपने बच्चे को खोना चाहेगी और कौन पत्नी अपने सुहाग को अपने गुस्से की बलि चढ़ने देना चाहेगी ।
रेखा जी का अपना वर्चस्व बनाए बनाये रखने के लिए घर पर कब्जा सिंहासन पर अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए झूठे विवाद में खुद को उलझाती रहीं एकदम बोल उठती है नहीं नहीं बेटा राकेश माफ कर दो मेरी काली जुबान जो कैंची की तरह चलती रहती है मुझे इसको लगाम देना होगा कहतीं है –
बेटा मै सब अच्छी तरह समझ गई हूँ अब किसी को यह कहने का मौका नहीं दूंगीं कि “सास को बहु की तकलीफ़ नहीं दिखाती है”-
“ एक सास बहु का रिश्ता एक जन्म देने वाली माँ और संतान जैसा ही सुखद महसूस होगा मैं बहु के सुख दुख मान सम्मान को अपना समझूंगी” ।
अब देखना, रेखा जी बेहद नम्र और रूंधे गले भीगी हुई आवाज में बोली – अब हमारा रिश्ता एक सासबहु का रिश्ता नहीं…एक माँ और संतान का रिश्ता हो जायेगा यह कहकर पलटकर बहु की तरफ मुंह करके कहतीं हैं क्यों बहु सही है न ? बहु सासूमां के गले लग जाती है कहती हुई हाँ माँ बिल्कुल। राकेश और रमेश जी के चेहरे पर विजय मुस्कान फैल जाती है।
लेखिका- डॉ बीना कुण्डलिया