रिश्तों की डोर- रचना गुलाटी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

आज शिवम का मन बहुत परेशान था। वह गुस्से में घर से निकल गया था। ऑफिस में भी बहुत परेशान था। उधर शिवि भी बहुत उदास थी। आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे और सोच रही थी कि कहाँ कमी रह जाती है? सुबह से उठकर सारा काम करती है, तीन महीने की बेटी को भी संभाल रही है, फिर भी कुछ-न-कुछ कमी रह जाती है। आज तो शिवम भी बिना कुछ खाए-पिए ऑफ़िस चले गए। अभी यह हाल है तो आगे क्या होगा जब उसे दो महीने बाद अपनी स्कूल की नौकरी पर दोबारा जाना होगा।

अभी इन्हीं विचारों में उलझी हुई शिवि बैठी हुई थी कि छोटी-सी बेटी के रोने की आवाज़ ने उसे विचारों से बाहर निकाल दिया। अपनी बेटी को चुप करवाकर वह रसोई के काम में लग गई, तभी उसकी सासु माँ का फोन आ गया। हालचाल पूछने के बाद शिवि के कुछ न बताने के बावजूद भी सासु माँ ने महसूस किया कि कहीं कुछ ठीक नहीं है।

उन्होंने उसी समय शिवम को फोन लगाया। शिवम ने अपनी माँ ने कहा , ” शिवि बहुत बदल गई है। पहले वाली शिवि तो रही ही नहीं। न समय पर खाना मिलता है और न ही वह पहले की तरह खुश रहती है।”

शिवम की माँ ने शिवम को कहा, “मेरे लिए तुम दोनों मेरे बच्चे हो। मैं तुम दोनों को एक आँख से देखती हूँ। इसलिए बिना शिवि के कुछ कहे समझ सकती हूँ कि वह किस दौर से गुज़र रही है।”

उन्होंने अपने बेटे शिवम को समझाया, ” शिवि ही केवल माँ नहीं बनी, तुम भी पिता बने हो।इसलिए तुम्हें इस बात को समझना होगा और इस रिश्ते को नया आयाम देना होगा। इस समय उसे तुम्हारे साथ की आवश्यकता है। तुम्हें इस रिश्ते की डोर को और मजबूत बनाना होगा।”

अपनी माँ से फोन करने के बाद शिवम को महसूस होता है कि वाकई वह शिवि की कोई मदद नहीं कर रहा, बस उस पर बात-बात पर चिढ़ जाता है। उसे उसकी मदद, साथ, देखभाल व प्यार की जरूरत है। वह अपने आप से वादा करता है कि वह शिवि का पूरा साथ देगा और पिता व पति का फर्ज बखूबी निभाएगा।

स्वरचित

रचना गुलाटी

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