आज जानकीदास इमरजेंसी लेबर रूम के बाहर चिन्ता जनक मुद्रा में बैठे थे। अन्दर उनकी पत्नी पार्वती की डिलीवरी जो होने वाली थी। तभी डाक्टर बहार आकर बताती है देखिए जानकी जी मैंने
आपको पहले ही बता दिया था ये केश बहुत की उलझनों से भरा है इसमें ऐसा भी हो सकता हमें बच्चे या माँ में से एक को बचाना पड़े आपने पत्नी को कहा था मैंने दोनों को बचाने की पूरी पूरी कोशिश की
मगर मैं आपके बच्चे को न बचा सकी लेकिन अभी खतरा एक और है आपकी पत्नी अभी होश में नहीं है जैसे ही होश में आयेंगी बच्चे को न पाकर क्या हालत होगी उसका मुझे अभी अंदाजा नहीं है हो
सकता ? वो जान से भी हाथ धो बैठे। जानकीदास डॉकटर की बात पर चिंतित इधर उधर टहलने लगे वो डॉक्टर से विनती करते हैं उनकी पत्नी को बचा लें डॉक्टर आश्वासन दे चली जाती है। तभी एक नर्स
जानकीदास के पास आती है उनकी समस्या से दुखी उनको बताती है सर आज सुबह अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दे भिखारन महिला चल बसी बच्चा लावारिस है आप कहें तो आपको दिलवा देती हूँ। जानकीदास पहले तो सोच में पड़ जाते हैं कहते हैं यह राज तुम्हारे और मेरे बीच ही रहेगा । नर्स
मान जाती है फिर पत्नी की जान की खातिर बच्चा गोद ले लेते हैं। नर्स उनकी पत्नी पार्वती के होश में आने पर बच्चा लाकर उसके बगल में लिटा देती है। दो दिन बाद पार्वती अस्पताल से डिस्चार्ज हो घर चली जाती है। समय बीतता दोनों बच्चे राकेश की अच्छी परवरिश करते बड़ा होकर राकेश डॉ बन
जाता है। और अपने ही साथ एक डॉक्टर रीमा से विवाह की इच्छा जताता है। जानकीदास और पार्वती खुशी खुशी इजाजत दे देते हैं और लड़की के परिवार से मिलने की इच्छा जताते हैं। एक निश्चित समय और अवधि पर रीमा के माता-पिता आते हैं मिलने, मगर जैसे ही जानकीदास और रीमा की माँ एक
दूसरे को देखते है पहचान जाते हैं रीमा की माँ वहीं नर्स जिसने भिखारन का बच्चा उनको दिलवाया था। रीमा की माँ एक बार तो इस रिश्ते को मना कर देना चाहती थी राज खोल देना चाहती थी । भला वो भिखारन के बच्चे को अपना दामाद कैसे बना सकती थी ? मगर दूसरे ही पल जब वो जानकीदास
की पत्नी की तरफ देखती हैं तब उसको वो अस्पताल वाली मरणासन्न पार्वती की जगह एक प्रसन्न चित्त महिला नजर आती है । और साथ ही उनकी बेटी रीमा और राकेश भी खिलखिलाते चहकते दिखते हैं तब उसका मन कहता इतनों के दिल तोड़ उसे अन्याय नहीं करना चाहिए आखिर छुपी बात को उजागर करके उसे भला क्या मिलने वाला है ? उसे जानकीदास से किया वादा निभाना होगा
विश्वास तोड़कर पाप का भागीदार नहीं बनना उसे,इसी में सबकी भलाई उसे नजर आती है। वो हाथ जोड़कर जानकीदास जी से धीरे से कहती हैं घबरायें नहीं सर “राज खोलना” मेरा उद्देश्य नहीं है मुझे ये रिश्ता मंजूर है ।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
मुहावरा – राज खोलना
( छुपी बात को उजागर करना )