प्यार का घरौंदा – बीना शुक्ला अवस्थी

” सर्वज्ञ, मैं कैसे दीदी को अकेला छोड़कर तुमसे शादी कर लूॅ? मेरी दीदी ने मुझे मॉ से अधिक प्यार और ममता दी है,  मैं ही उनकी जिन्दगी हूॅ।”

” तुम ही बताओ, मैं क्या करूॅ? शादी बाद दीदी हम लोगों के साथ भी तो रह सकती हैं। वह तो सचमुच बहुत अच्छी हैं लेकिन क्या तुमने यह जानने का कभी प्रयास किया है कि उन्होंने ऐसे एकाकी जीवन बिताने का निर्णय  क्यों किया? अब भी  उन्हें तमाम लोग मिल जायेंगे जो उन्हें जीवन में पाना अपना सौभाग्य समझेंगे।”

” बहुत बार जानने का प्रयास किया। जिद से, रोने धोने, खुद भी शादी न करने के बहुत सारे पैतरे आजमा लिये लेकिन उन्होंने कभी कुछ नहीं बताया। मेरे नौकरी पर आने के बाद मैंने उनसे बहुत कहा कि वह जीवन में आगे बढ़ें, अब मेरी जिम्मेदारी नहीं रही उन पर। मैं सक्षम हो चुकी हूॅ।”

” ठीक है, आज उनसे अपने प्यार के सम्बन्ध में बताना और उनसे कहना कि जब तक वह तुम्हें उचित कारण नहीं बतायेंगी, तुम कभी शादी नहीं करोगी। भले ही दिल पर पत्थर रखकर तुम्हें अपना प्यार हमेशा के लिये खोना ही क्यों न पड़े?”

” वह नहीं मानेंगी, मैं सब कुछ करके हार गई हूॅ।” कलावा के स्वर में बहुत निराशा थी। 

” मेरा विश्वास है कि इस बार वह मान जायेंगी क्योंकि वह‌ कभी नहीं चाहेंगी कि जिस बहन को बेटी के समान प्यार किया है, उसका जीवन सूना रह जाये।”

सर्वज्ञ का अनुमान सही निकला। कलावा के बहुत जिद करने पर आखिर कावेरी मान गई – ” ठीक है, जानना चाहती हो तो सुनो। आज तुम भी जान लो कि जिन्दगी ने कैसा खेल खेला था हमारे साथ। विवाह शब्द से क्यों नफरत है मुझे? 

आठ वर्ष की कावेरी की गोद में अंजली ने रेशम की पोटली जैसी कलावा को रखा तो कावेरी प्रसन्नता से खिल उठी – ” मम्मा यह आपकी नहीं मेरी बेटी है।”

अंजली कावेरी की बात सुनकर हॅस दी – ” बिल्कुल। बड़ी बहन मॉ जैसी ही होती है। मेरी बेटी तुम और तुम्हारी बेटी यह।” 

जब अंजली कावेरी से कलावा के छोटे-छोटे काम करने को कहती तो वह बहुत खुश होती। कलावा पर कावेरी अपना एकाधिकार समझती थी। अंजली के अलावा किसी की गोद में अधिक देर जाने नहीं देती थी। अभी कलावा दो वर्ष की ही हुई तभी अंजली को रवि के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चला। इस बात का जब भी अंजली विरोध करती, सुबह उसके शरीर पर चोट के निशान दिखाई देते।‌

अंजली की सास सुमित्रा को पता चला तो उसने रवि को समझाने की बजाय अंजली पर ही तानों की वर्षा करनी शुरू कर दी – “:मर्द का बच्चा है, घर में सन्तुष्ट नहीं करोगी तो बाहर जायेगा ही। अपना पति नहीं सम्हाल पाईं, आखिर वह लड़की भी तो औरत ही है जिसने एक शादी शुदा आदमी को अपनी ओर आकर्षित कर लिया।”

अंजली ने अपनी मॉ को भी बताया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ – ” वह तुम्हारा पति है। उसे अधिक से अधिक प्यार दो तो वह वापस तुम्हारे पास लौट आयेगा। धैर्य रखो, ऐसे रिश्ते अधिक समय तक नहीं चलते हैं, कुछ दिन बाद रवि के सिर से यह नशा उतर जायेगा। तुम्हारे पास दो बेटियां हैं, उनका भविष्य भी तुम्हें ही देखना है।” 

कावेरी केवल दस साल की थी लेकिन मम्मी पापा के बीच होने वाले झगड़ों का कारण उसे पता चल गया। सुबह अंजली दोनों बेटियों को गले से लगाकर फूट फूटकर रोने लगती। 

उस दिन कमरे का दरवाजा खुला रह गया था। कावेरी ने सुना कि रवि ने अंजली के गालों पर थप्पड़ मारते हुये कहा – ” ज्योति ऊपर वाले कमरे में आकर रहेगी, यह मेरा निर्णय है। तुमसे जो करते बने, कर लेना। अगर इस घर में रहने की इच्छा न हो तो अभी अपनी दोनों लड़कियों को लेकर चली जाओ।”

तीन दिन से घर में यही सब चल रहा था। अंजली ने तो मानो चंडी रूप धारण कर लिया था। उसका कहना था कि बाहर तुम कुछ भी करते हो, वह क्या काफी नहीं है? इस घर में वह नहीं आयेगी। 

वह मनहूस दिन कावेरी मरते दम तक नहीं भूलेगी। रक्षा बंधन होने के कारण बुआ भी आई हुई थीं। अंजली राखी बांधने मायके नहीं गई बल्कि उसने तबियत खराब का बहाना करके भाई को ही बुला लिया। घर में अजीब सा सन्नाटा पसरा था। 

रवि ने अपनी मॉ सुमित्रा और बहन रीता को अंजली की जिद के बारे में बताया – ” तुम्हीं लोग बताओ कि अपने ऊपर के कमरे में वह लड़की रहेगी तो इससे क्या लेना देना? अधिक परेशानी हो तो उससे बात न करे।” 

सुमित्रा  और रीता को अच्छी तरह मालूम था कि उस लड़की ज्योति से रवि के कैसे सम्बन्ध हैं, इसके बावजूद उन लोगों ने रवि का पक्ष लेते हुये कहा – ” इसकी तो आदत ही है कलह करने की। इसको कहने दो। तुम्हें क्या जरूरत है इसकी बात सुनने की? खाली ही तो पड़ा है वह कमरा, रौनक हो जायेगी।‌ जब वह लड़की आकर रहने लगेगी तो यह क्या कर लेगी? आखिर घर के मालिक तो तुम ही हो तो तुम्हारी ही मर्जी चलेगी। यह कौन होती है निर्णय करने वाली कि इस घर में कौन रहेगा और कौन नहीं।”

कावेरी भले ही अभी दस साल की ही थी लेकिन इतनी समझ तो उसे थी ही कि वह यह समझ सके कि किसी महिला के कारण उसके घर में झगड़े होते हैं और इसी कारण उसके पापा उसकी मम्मी से मार पीट करते हैं। उसने यह भी देखा था कि दादी और बुआ पापा का ही समर्थन करती हैं।

वह अंजली से कहती भी – ” मम्मी, पापा से कुछ मत कहो। देखो कितनी बुरी तरह मारते हैं तुम्हें।”

” कैसे न कहूॅ बेटा, तुम दोनों के भविष्य का प्रश्न है।”

उस दिन वह और कलावा सो रही थी कि अचानक कमरे में रवि के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी – ” कान खोलकर सुन लो, वह इस घर में जरूर आयेगी।”

” अपने जीते जी मैं अपनी सौत को इस घर में नहीं आने दूॅगी। “

” तो मर जाओ तुम, मुझे तुमसे कोई लेना देना नहीं है।”

” अपने हाथों से मार दो मुझे, फिर जिसे मर्जी हो लाकर रखना।” अंजली भी गुस्से में पागल हो रही थी।

रवि ने अंजली के दो थप्पड़ और मारे। इसके साथ ही  अंजली के बाल पकड़कर छत की ओर ले जाने लगा – ” मरने का बहुत शौक है ना, आज तुम्हारी वह ख्वाहिश भी पूरी कर देता हूॅ।”

शोर सुनकर कलावा भी जागकर रोने लगी। कलावा को गोद में लेकर रोती हुई कावेरी सुमित्रा और रीता के पास गई – ” दादी जल्दी चलो। पापा मम्मी को बहुत मार रहे हैं।  मेरी मम्मी को बचा लो।”

नींद में खलल पड़ जाने से मॉ – बेटी बड़बड़ाती हुई उठीं – ” तेरी मॉ की भी जबान बन्द नहीं रहती है। रात को सोना भी हराम कर दिया है। ” नासमझ कलावा रोती जा रही थी। 

लेकिन जब तक कावेरी दादी और बुआ के साथ छत पर पहुॅची रवि ने अंजली को छत से नीचे फेंक दिया था। शायद सुमित्रा और रीता को यह उम्मीद नहीं थी कि स्थिति इतनी बिगड़ जायेगी। उन्होंने रवि को झिंझोड़ते हुये कहा – ” यह क्या किया रवि? अंजली को मार डाला तुमने।”

अब तक रवि के गुस्से का पारा शायद उतर गया था। वह सीढियॉ फंलागता हुआ नीचे भागा। उसके पीछे पीछे दादी, बुआ और कलावा को गोद में लिये कावेरी भी पहुॅची। रवि अंजली को उठाने की कोशिश कर रहा था लेकिन अंजली का सिर फट चुका था, पूरा फर्श खून से लाल होता जा रहा था। उसकी सॉसें थम चुकी थीं।

अंजली का खून से लथपथ शरीर देखकर कावेरी नन्हीं कलावा को गोद में लिये हुये ही बेहोश होकर गिर गई। शोर और आवाजें सुनकर कुछ पड़ोसी भी आ गये। एक ने आगे बढ़कर अंजली की नब्ज देखी और धीरे से सिर हिला दिया जिसका मतलब था कि सब कुछ समाप्त हो चुका है।

दूसरे दिन जब कावेरी को होश आया तो वह मम्मी…. मम्मी….. कहकर कमरे से बाहर की ओर भागने लगी, तभी उसके पास बैठी नानी ने उसे पकड़ कर लिटा दिया। वह नानी से लिपट गई – ” नानी, पापा ने मम्मी को मार डाला है। वह मम्मी को बालों से खींचते हुये छत पर लेकर गये थे।” 

नानी के कुछ बोलने के पहले ही दादी कमरे में आ गईं और उसे दुलार से सहलाते हुये बोली – ” यह बात किसी से मत कहना बिटिया नहीं तो तुम्हारे पापा को जेल हो जायेगी। मम्मी तो हैं नहीं और अगर पापा को भी जेल हो गई तो तुम लोग किसके सहारे रहोगी? कौन तुम्हें सम्हालेगा? तुम दोनों बहनें अनाथ हो जाओगी, तुम्हारी पढ़ाई वगैरह का क्या होगा? और इस छुटकी के बारे में सोचो, इसका क्या होगा? अगर तुमने किसी को कुछ बताया और मेरे बेटे को जेल हुई तो मैं तुम दोनों को अनाथालय भेजकर अपने गांव चली जाऊॅगी।”

कावेरी ने बड़ी उम्मीद से नानी की ओर देखा तो उन्होंने सिर झुका लिया जैसे वह भी दादी की बात का अनुमोदन कर रही हों।

” लेकिन दादी …….।”

” वैसे तो पुलिस  तुमसे कुछ पूॅछने आयेगी ही नहीं, रवि ने सब सम्हाल लिया है।‌ फिर भी अगर पुलिस या कोई भी तुमसे कुछ पूॅछे तो तुम्हें यही कहना है कि तुम सो रही थीं, तुम्हें कुछ नहीं पता कि अंजली कैसे छत से नीचे गिर गई? अपने लिये नहीं तो इस नन्हीं सी कलावा के लिये सोचना। कहॉ लेकर जाओगी इसे? रवि को जेल करवाने से अंजली वापस नहीं आ जायेगी।” दादी के स्वर में धमकी स्पष्ट थी। इतना कहने के बाद वह कमरे से बाहर निकल गईं साथ ही नानी से कह गईं कि इसे अच्छी तरह समझा दीजिये या अपने साथ ले जाइये।

दादी के जाने के बाद कावेरी नानी की गोद में सिर रखकर रोने लगी – ” नानी मैं सच कहती हूॅ, मैंने सब देखा है।”

नानी भी उसे लिपटा कर रोने लगी – ” कुछ भी कर लो, अंजली वापस नहीं आयेगी लेकिन यदि तुमने दादी की बात नहीं मानी तो तुम दोनों बहनें बरबाद हो जाओगी। तुम भी अभी छोटी हो और कलावा को तो कुछ दिनों बाद अंजली की सूरत भी याद नहीं रहेगी। अब तुम्हीं इसकी मॉ हो और अपने बच्चों के लिये एक मॉ बहुत कुछ सहन करती है और बहुत सारे समझौते करती है।”

” नानी क्या तुम भी हमें अपने पास नहीं रख सकती? मैं बहुत मेहनत से पढ़ाई करूंगी। जैसे ही मेरी नौकरी लग जायेगी, मैं कलावा को लेकर चली जाऊॅगी। केवल कुछ वर्षों की बात है।” ग्यारह वर्ष की कावेरी अचानक बहुत बड़ी हो गई जिसके कन्धों पर दो वर्ष के बच्चे के भविष्य की सारी जिम्मेदारी आ गई थी।

” नहीं ले जा सकती बेटा। तुम्हारे मामा मामी तुम दोनों की जिम्मेदारी नहीं लेंगे। अगर मैं तुम्हें गांव लेकर चली भी गई तो क्या खिलाऊंगी, कैसे पालूंगी? वहॉ तो छठी कक्षा के बाद स्कूल भी नहीं हैं। यहॉ तुम लोग राजकुमारियों की तरह पली हो। मैं जानती हूॅ कि जो कुछ तुमने देखा है, वही सच है लेकिन उसको भूलकर अपनी और अपनी बहन का भविष्य देखो।” 

कावेरी और नानी आपस में लिपटकर अपनी बेबसी पर बहुत देर तक रोती रहीं, फिर नानी ने कावेरी के ऑसू पोंछे – ” अब तुम्हें बहुत बहादुर बनना है। उठो, कलावा को गोद में लो, वह कल से तुम्हें और अंजली को न देखकर बहुत रो रही है, दूध भी नहीं पी रही है।” 

” शायद आप सही कह रही हैं नानी। मुझे अपनी कलावा के लिये जहर का घूंट पीना ही पड़ेगा और जैसे ही मेरी नौकरी लगेगी मैं कलावा को लेकर चली जाऊॅगी। मम्मी कहॉ हैं, उन्हें कहॉ ले गये हैं? “

” सब लोग मेरी बेटी को श्मशान ले गये हैं। मैंने कहा भी कि कावेरी को होश आ जाने दो, उसे अपनी मॉ के अन्तिम दर्शन कर लेने दो लेकिन मुझ बुढ़िया की किसी ने नहीं सुनी।” नानी बिलख रही थीं, उनके ऑसुओं में जवान बेटी की हत्या पर चुप रहने की बेबसी थी।

कावेरी ने नानी के ऑसू पोंछे – ” अच्छा हुआ ले गये नानी। मैंने अपनी मम्मी के फटे सिर और खून से लथपथ शरीर के दर्शन कर तो लिये थे, अब दुबारा उन्हें देखकर क्या करती?”

वह धीरे से उठकर ऑगन में आ गई। तमाम स्त्रियां सुमित्रा को सान्त्वना दे रही थीं और सुमित्रा घड़ियाली ऑसू बहाते हुये कह रही थीं – ” मेरे रवि को भरी जवानी में छोड़ कर चली गई, मेरा बेटा कैसे इतनी बड़ी जिन्दगी अकेले काटेगा।”

कावेरी को देखकर सुमित्रा सहित सारी स्त्रियां दहाड़े मारकर रोने लगी – ” तेरी मम्मी अपने बच्चों को बिना मॉ के करके चली गई बिटिया।”

कावेरी ने बुआ रीता की गोद से सोती हुई कलावा को ले लिया और कमरे में चली गई। स्त्रियों के बीच में खुसुर पुसुर चालू हो गई – ” मॉ की मौत का सदमा लग गया बिचारी को। हे भगवान! दुधमुंही बच्चियां बिना मॉ की हो गईं।”

दादी सिर पीटते हुये कह रही थीं – ” घर की लक्ष्मी चली गई। इन लड़कियों को तो मैं सम्हाल लूॅगी लेकिन मेरा रवि कैसे रहेगा अपनी अंजली बिना? हे भगवान! अंजली के बदले मुझ बुढ़िया को उठा लेता। अंजली तूने यह क्या किया? लड़ाई झगड़ा किस घर में नहीं होता लेकिन ऐसा कदम उठाते समय एक बार अपने बच्चों के बारे में भी नहीं सोचा।”

उसी शाम तीन पुलिस वालों सहित सब इंस्पेक्टर कावेरी का बयान लेने आ गये। कावेरी ने कह दिया कि वह पापा की चीखें सुनकर उठी थी और नीचे जाकर जब मम्मी को देखा तो वह जमीन पर पड़ी थीं और पापा उन्हें गोद में उठाने का प्रयास कर रहे थे। 

पुलिस इंस्पेक्टर के जाने के बाद सभी घर वालों ने राहत की सांस ली। तेरह दिनों तक रिश्तेदार आते जाते रहे और सबके सामने रोने – धोने का नाटक चलता रहा। अंजली की आत्मा की शान्ति के लिये बहुत कुछ किया गया लेकिन कावेरी और उसकी नानी यह सब देखकर और तड़पती रहीं। जिसे जीते जी तड़पाते रहे, अपने हाथों जिसकी हत्या, उसकी आत्मा इस सब नाटक देखकर तो खून के ऑसू रो रही होगी।

तेरहवीं के बाद रवि ने कावेरी को अपने पास बुलाया। उस समय कमरे में रीता और सुमित्रा भी थी। रवि ने कावेरी के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा – ” तुम बहुत समझदार हो। उस दिन गुस्से में सब कुछ हो गया। मुझे बहुत दुख है।”

कावेरी बिना बोले चुपचाप खड़ी रही। रवि फिर बोले – ” तुम चिन्ता मत करना बेटा। मैं तुम दोनों को किसी तरह की कमी नहीं होने दूॅगा। अब तुम सब कुछ मुझसे कहना। मैं ही तुम्हारी मम्मी हूॅ और मैं ही तुम लोगों का पापा।”

” एक प्रार्थना है पापा।” अब पहली बार कावेरी बोली।

” ऐसे मत बोलो। तुम्हारा मुझ पर पूरा अधिकार है। जो चाहे कहो।” 

” जिसके कारण मेरी मम्मी ने अपने प्राण खो दिये हैं, उस लड़की को घर में मत लाइयेगा। हो सके तो मेरी यह विनती मान लीजियेगा।”

रवि, सुमित्रा और रीता सन्न रह गये। उन तीनों को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। वे सब एक दूसरे को अचरज से देखते रह गये। कावेरी थोड़ी देर सिर झुकाये खड़ी हुई, फिर कमरे के बाहर निकल गई।

बाद में कावेरी को पता चला कि रवि ने पुलिस को बहुत सारे पैसे रिश्वत के रूप में दिये। इसीलिये बहुत जल्दी पोस्टमार्टम करवाकर वहीं से शव को श्मशान लेकर अंतिम संस्कार कर दिया गया। फिर भी सारा कुछ कावेरी के बयान पर निर्भर हो गया था। 

कलावा कावेरी से आठ वर्ष छोटी थी, इसलिये उसने अंजली का बहुत प्यार दुलार पाया था। चंचल तितली सी कावेरी बिल्कुल बदल गई। कलावा के इर्द-गिर्द ही उसकी सारी दुनिया घूमने लगी। घर के कामों और खाना बनाने के लिये रवि ने एक नौकरानी रख ली। कावेरी के स्कूल जाने के बाद वही कलावा को भी सम्हालती थी। 

कावेरी का मन खेलने कूदने और शरारतें करने में, कलावा के साथ खेलने में अधिक लगता था इसलिये वह पढ़ाई में औसत ही थी लेकिन अब उसने सब छोड़ दिया या यूं समझिये कि अंजली अपने साथ उसका बचपन भी ले गई।

वह पूरी तरह से पढ़ाई में डूब गई। कलावा को गोद में लेकर भी वह कुछ न कुछ पढती रहती। इसके परिणाम स्वरूप वह अपनी कक्षा में टॉप करने लगी और उसे स्कालरशिप मिलने लगी। सुमित्रा और रवि से बात करना उसने लगभग छोड़ ही दिया। कुछ कहना होता तो रवि के फोन पर मैसेज कर देती। 

रवि या कोई भी अगर उससे प्यार का दिखावा करने का प्रयास करता तो उसकी ऑखों के ठंडेपन से सहम कर खुद ही सहम जाते। शुरू में तो कलावा रवि से घूमने या किसी बात की जिद करती लेकिन जैसे जैसे बड़ी होती गई, उसे समझ आने लगी कि उसकी दीदी को ये तीनों लोग अच्छे नहीं लगते हैं, इसलिये वह भी सबसे दूर होने लगी।

रीता के पति का ट्रांसफर हुआ तो रीता अपने दोनों बेटों सहित मायके में आकर रहने लगी लेकिन कावेरी न तो खुद उनसे अधिक मतलब रखती और न कलावा को रखने देती। 

बी० काम पूर्ण होने के पहले ही उसने अठ्ठारह साल सात महीने की उम्र में बिना किसी को बताये रेलवे की क्लर्क ग्रेड की पहली बार परीक्षा दी। जैसी कि उसे आशा थी वह पहली बार ही सफल भी हो गई। परिणाम घोषित होने और नियुक्ति पत्र प्राप्त आते आते वह उन्नीस साल दस महीने की हो चुकी थी, उसकी पढ़ाई पूरी होने में कुछ ही समय शेष था। 

उसने प्रिंसिपल को अपना नियुक्ति पत्र दिखाकर अपने कॉलेज और कलावा के स्कूल से इस बात की अनुमति ले ली कि अब वे केवल परीक्षा देने ही आयेगी। 

अपनी और कलावा की पूरी तैयारी करने के बाद उसने कलावा को भेजकर रवि, सुमित्रा और रीता को अपने कमरे में बुलवाया और उन्हें नियुक्ति पत्र दिखाकर बताया कि कल शाम को वह कलावा को लेकर हमेशा के लिये इस घर से जा रही है। अपनी मॉ की हत्या के सच को छुपाने की पीड़ा अब वह नहीं उठा सकती। इस घर और इस घर वालों से नफरत होते हुये भी कलावा के लिये उसने समझौता स्वीकार किया था। उसे आज भी इस घर में थप्पड़ खाती, सीढ़ियों में बाल पकड़कर घसीटी जाती, लॉन में फटे सिर वाली खून से लथपथ मम्मी दिखाई देती हैं। छत पर जाती है तो उसकी कल्पना में तैर जाता है कि कैसे इस स्थान से उसकी मम्मी को फेंका गया होगा?

थोड़ी देर तक रवि और सुमित्रा अचम्भे से एक दूसरे को देखते रहे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि कावेरी क्या कह रही है। फिर कावेरी ही बोली – ” मैंने एक विनती की थी आपसे और इस बात के लिये मैं आपकी कृतज्ञ हूॅ कि आपने अपना वचन आज तक पूरा किया है। अब आप किसी को भी अपने घर में लाने के लिये स्वतन्त्र हैं।”

रवि कुछ कहते उसके पहले ही सुमित्रा बोल पड़ी – ” उस चालाक लड़की ने मेरे सीधे साधे रवि को फंसाकर मेरा घर बरबाद कर दिया और खुद एक दूसरे लड़के से शादी करके यहॉ से चली गई।”

” खैर मुझे आप और आपकी व्यक्तिगत जिन्दगी से कोई मतलब नहीं है और आपको मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। मम्मी की हत्या की सच्चाई का जहर हमेशा मेरे सीने में ही दफन रहेगा। किसी को भी कभी सच्चाई पता नहीं चलेगी।

कावेरी ने एक नजर रवि पर डाली और कमरे से निकल गई। दूसरे दिन अपनी नौ साल की बहन की उंगली थामे कावेरी ने घर के साथ अपने बचपन का शहर भी हमेशा के लिये छोड़ दिया।

शुरू में बहुत परेशानी हुई लेकिन धीरे-धीरे सब व्यवस्थित होता गया। जहॉ भी कावेरी का ट्रांसफर होता, दोनों बहनें चली जातीं और सब नये सिरे से शुरू हो जाता। कलावा बी० टेक करने के लिये जब दिल्ली विश्वविद्यालय गई तब पहली बार दोनों बहनें अलग हुईं। बी० टेक के बाद कलावा ने नौकरी करने की बहुत कोशिश की लेकिन कावेरी ने जिद करके उसे एम०टेक करवाया। 

कावेरी ने यह भी बताया कि उसके मामा मामी  नानी को अपने साथ नहीं रखते थे। वह अकेले गांव में रहकर थोड़ी सी जमीन से मिलने वाली फसल पर गुजारा करती थीं। एक बार नानी ने उसे फोन किया कि अब उनकी तबियत काफी खराब रहने लगी है, इसलिये वह एक बार कलावा के साथ आकर उनसे आकर मिल जाये।

नानी की हालत देखकर कावेरी को बहुत रोना आया। अपनी बेटी की याद में वह बेबस मॉ पल पल घुल रही थी।

उन्होंने अपनी कोठरी के कोने में एक गढ्ढा खोदा और उसमें से  कावेरी को छोटी छोटी सोने की बालियां, सोने के मोतियों का माला जिसे मटर माला कहते थे,एक अंगूठी, चॉदी के कड़े और पायजेब के साथ एक सोने का और सौ चांदी के सिक्के दिये – ” मैं इन सबका क्या करूंगी? आप अपने पास रखिये, आपके काम आयेंगे।”

नानी उसे गले लगाकर रोने लगीं –  मेरे इन जेवरों के बारे में किसी को पता नहीं है। इन्हें मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो और जब तुम दोनों बहनों की शादी हो तो आपस में बांट लेना और कभी किसी से मत बताना।”

इसके साथ ही उन्होंने ग्यारह ग्यारह सौ रुपये दो रुमालों में बॉधकर देते हुये कहा कि इन्हें दोनों राजकुमारों के हाथ में नानी का आशीर्वाद कहकर दे देना।

” और भी कुछ जानना है तो बताओ। आज तुम्हें सब बता दूंगी। मैंने मम्मी पापा का वह समर्पित प्यार देखने के बाद दाम्पत्य का वह बिखरा रूप भी देखा है जिसमें दूसरी स्त्री के कारण मेरी ऑखों के सामने मेरी मम्मी की हत्या कर दी गई। कैसे विश्वास करूॅ मैं प्यार, मुहब्बत, शादी और दाम्पत्य सम्बन्ध पर।” कावेरी की ऑखें बरस रही थीं।

” सचमुच दीदी, मम्मी के बारे में इतना कटु सत्य जानकर मेरा भी मन बदल गया है। मैं भी सर्वज्ञ को मना कर दूॅगी और कभी शादी नहीं करूॅगी। हम दोनों ही एक दूसरे के लिये पर्याप्त हैं।”

” ऐसा कैसे हो सकता है? सबकी किस्मत एक जैसी नहीं होती। अगर तुम्हें लगता कि सर्वज्ञ उचित जीवन साथी सिद्ध होगा तो मैं बहुत खुशी से तुम्हारी शादी उससे करूॅगी। मेरा सब कुछ तुम्हारा है, किसी दिन सर्वज्ञ को घर बुलाओ। फिर मैं उसके घर वालों से मिल लूॅगी।”

” यही अगर मैं आपसे कहूॅ कि जरूरी नहीं कि जो मम्मी के साथ हुआ, वह आपके साथ भी हो। सच बताना, क्या किसी ने आपसे प्यार का इजहार नहीं किया या किसी को देखकर आपके दिल में वह विशेष धड़कन नहीं हुई, जिसे प्यार कहते हैं।”

” यह कैसा सवाल है? मेरे ऊपर एक बच्चे की जिम्मेदारी थी और फिर मैंने कभी शादी न करने का निर्णय लिया था।”

कलावा ने कावेरी को बॉहों में भर लिया – ” बताओ ना दीदी, क्या किसी ने भी आपके निर्णय के विरुद्ध आपके हृदय  का स्पर्श नहीं किया है।”

कावेरी ने बताया कि वैसे तो उसके गंभीर स्वभाव के कारण अधिक लड़कों की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी फिर भी कई ऐसे थे जो उसके पास किसी दूसरे माध्यम से संदेश भिजवाते रहे, लेकिन उसने कभी ध्यान नहीं दिया।”

” फिर भी दीदी, कभी तो दिल विद्रोह कर ही देता है और सारे दायित्व, निर्णय, प्रण धरे रह जाते हैं। भले ही आप स्वीकार न करें लेकिन कोई ऐसा जरूरी आता है जो जबरदस्ती दिल के दरवाजे खोल कर भीतर प्रवेश कर ही लेता है।”

कावेरी के नेत्रों में एक शाम तैर गई – उसके सहकर्मी सूरज के विवाह की पॉचवी वर्षगांठ थी। वह एक किनारे बैठकर धीरे-धीरे कोल्डड्रिंक सिप कर रही थी। तभी उसे लगा कि कोई उसके पास आकर बैठ गया है – ” आप यहॉ अकेली बैठी हैं क्या मैं भी यहॉ बैठ सकता हूॅ?” 

फिर तो मेजर सूर्यांग के साथ बातों में समय का पता ही नहीं चला। मेजर साहब सूरज के बड़े भाई थे जिनकी पोस्टिंग अधिकतर बार्डर पर रहती थी, इसलिये उन्होंने शादी नहीं की। देश ही उनका प्यार और पत्नी थी लेकिन एक सुरंग फट जाने के कारण जब उनका दाहिना पैर पूरी तरह से काट दिया गया तो उन्हें ऑफिस में बैठने का कार्य दे दिया गया था। मेजर साहब नकली पैर के सहारे इतनी अच्छी तरह चलते हैं कि किसी को पता ही नहीं चलता है।

आज पहली बार कावेरी के मन में कुछ हलचल हुई थी। तब से अभी तक सूर्यांग और कावेरी बहुत अच्छे दोस्त बन गये हैं। वैसे मेजर साहब ने अपने जिन्दादिल और बेबाक अंदाज में कई बार अपने प्यार का इजहार किया है लेकिन कावेरी के मन के अन्दर बैठे डर ने उनके प्रस्ताव का कभी उत्तर नहीं दिया।

कलावा मन ही मन मुस्कुरा दी। सर्वज्ञ ने सच ही कहा था। आज कावेरी ने उसके सामने पूरा जीवन खोलकर रख दिया था। अभी तक कावेरी दीदी ने उसकी मॉ का दायित्व निभाया है, अब वह मेजर साहब के साथ मिलकर कावेरी दीदी को पिछला सब कुछ भूलकर प्यार का घरौंदा बनाने के लिये विवश करेगी।

स्वरचित एवं अप्रकाशित 

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर 

लेखिका/ लेखक बोनस प्रोग्राम – छठवीं कहानी

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