सुन शुभा– जितनी जल्दी हो सके तुम मोना की शादी कर दे. अभी तुम्हारी उम्र ही कितनी हुई है, मोना की शादी करने के बाद तुम अपनी भी शादी की सोचना –शुभा की मां ने धीमे से फुसफुसाते हुए कहा.मोहन के नहीं रहने से तुम भी कितने दिन अकेली रहेगी?
पर मां, मोना तो अभी बहुत छोटी है. अभी तो उसके पढ़ने लिखने की उम्र है.
तुम अगर इतना सोचती रहोगी तब तो जी ली तुमने अपनी जिंदगी. तू मोहन की दूसरी पत्नी है, सारे परिवार की नजर तुम पर रहेगी इसलिए चुपचाप जल्दी से उसकी शादी की सोच–शुभा की मां ने उस पर दबाव बनाते हुए कहा. अभी बच्ची है वह, बिना हील हुज्जत किये जमीन जायदाद भी तुम्हारे नाम कर देगी, वैसे भी मोहन की पहली पत्नी की बेटी है तो थोड़ा संभल कर रहना होगा तुम्हें.
हां मां–कह तो तुम ठीक ही रही हो, देखती हूं कोई लड़का. पर कहां मिलेगा इसके लायक?
अरे! इतना सोच क्या रही है. वह रमेश बाबू है ना जो मोहन के साथ पार्टनरशिप में काम करता था, उसकी तो पत्नी भी 2 साल पहले मर गई, उसी से क्यों नहीं करवाती मोना की शादी.
पर मां,रमेश बाबू की तो उम्र भी काफी ज्यादा है उसके सामने तो मोना एकदम बच्ची हो जाएगी.क्या यह उस पर अत्याचार नहीं होगा?
इतना सब सोचने की तुम्हें जरूरत नहीं है. तुम्हें अपनी जिंदगी भी देखनी है. नहीं तो यही सोच सोच कर तुम्हारी जिंदगी बीत जायेगी.
और हां ज्यादा उम्र के मरद से उसकी शादी करवाएगी तो वह अपने घर में ही बसी रहेगी, नहीं तो कम उम्र वालों की तो अलग ही ठसक होती है, मुंह उठाए यहीं आ जाया करेगी. शुभा की मां ने चेयर से उठते उठते कहा।
अगले ही दिन शुभा ने रमेश बाबू को बुलवा भेजा.
शुभा का प्रस्ताव सुन रमेश बाबू भी भौंचक्के रह गए.
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भाभी मोना तो अभी बहुत छोटी है. अभी तो उसके पढ़ने लिखने की उम्र है. मानता हूं कि मैं अकेला हूं, पर मुझे मोना जैसी छोटी बच्ची भी शादी के लिए नहीं चाहिए.
देखिए ,अगर आप तैयार नहीं होंगे शादी के लिए तो लड़कों की कमी नहीं है –शुभा की मां ने कहा मेरा भतीजा 55 साल का है जिसकी पत्नी को मरे दस साल हो गए . मैं अगर अभी उसे शादी के लिए कह दूं तो वह अभी राज़ी है.
शुभा की मां के तेवर देखते हुए रमेश बाबू राजी हो गए. पर वह जानते थे की एक छोटी बच्ची के साथ यह गलत हो रहा है, लेकिन उसके भविष्य को देखते हुए उन्होंने हामी भर दी.
अगले हफ्ते ही शादी की तारीख मुकर्रर की गई. मोना रो रही थी, लेकिन उसकी कोई सुनने वाला वहां नहीं था.
विदा कराके रमेश बाबू मोना को अपने घर ले आए.मोना ने गुस्से में उन्हें देखते हुए कहा.. आपने देखी अपनी और हमारी उम्र .आपको शर्म नहीं आई कि लोग क्या कहेंगे. मैं तो मजबूर थी पर आपको… आपके पास क्या मजबूरी थी.
बाप की उम्र के हैं आप मेरे. कुछ तो लिहाज किया होता आपने.
देखो मोना..अगर मैं तुमसे शादी नहीं करता तो तुम्हारी मां किसी ऐरे गैरे से तुम्हारी शादी करवा देती और फिर तुम्हारा भविष्य गर्त में चला जाता. यही देख सोच मैंने हामी भरी.
पर तुम चिंता मत करो तुम जो चाहेगी वही होगा, मेरे घर में तुम बिलकुल सुरक्षित हो और कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र भी.कहते हुए रमेश बाबू दूसरे कमरे में चले गए.
रमेश बाबू की बातें सुन मोना थोड़ी आश्वस्त हुई, इतना तो उसे पता चल गया कि कम से कम यहां से कोई खतरा नहीं है. वह थोड़ी निश्चिन्त हुई. फिर उसने मन ही मन सोचा– अब आगे की जिंदगी कैसे गुजरेगी यह देखा जाएगा।
कमरे में बिछे पलंग पर वह लेट गई,पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी.
नींद आती भी तो कैसे, जिसका मासूम बचपन अपनों के स्वार्थ की भेंट चढ़ गया हो. उसके मन में तरह तरह के थॉट्स आते रहे और इसी उधेड़बुन में कब उसकी आँख लग गई,उसे कुछ पता नहीं चला.
सुबह काफी देर तक वह सोती रही. फिर उसे लगा जैसे कोई उसका नाम ले उसे बुला रहा हो. उनींदी आँखों से उसने देखा कि रमेश बाबू चाय की ट्रे लिए उसके सिरहाने खड़े हैं और बड़े अपनेपन से उसे जगा रहे हैं।
उसने धीरे से आँखें खोली और कहा–थैंक यू,अभी मुझे चाय की बहुत जरूरत थी.मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है .
ठीक है,तुम चाय पी लो और अपना सूटकेस रेडी कर लो, शाम की फ्लाईट से हम दिल्ली जा रहे हैं. मैने वहां अपने दोस्त मल्होत्रा साहब से बात कर ली है. उन्होंने तुम्हारे नाम का फॉर्म हंसराज कॉलेज में भर दिया है. वहां जाकर दो तीन दिन में तुम्हारा एडमिशन हो जायेगा. उन्होंने तुम्हारे लिए हॉस्टल भी देख लिया है. तुम बस पढ़ लिख कर अपना मुकाम पूरा करो.
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मोना अचंभित हो उन्हें देखती रही. आज के जमाने में भी ऐसे देवता स्वरूप लोग मिलते हैं, उसकी छोटी बुद्धि में बस इतनी सी बात समझ आई.
वह थोड़ी देर पहले के गम भूल खुशी खुशी रेडी होने चली गई.
दिल्ली जाकर रमेश बाबू ने मल्होत्रा जी से मिल सबसे पहले मोना का कॉलेज में एडमिशन करवाया, फिर उसे जरूरत की सारी चीजें देकर वापस लौट गए।
बीच-बीच में छुट्टियों में वह रमेश बाबू के पास जाती रही. वह भी एक अभिभावक की तरह उसका ध्यान रखते. उसने दिल्ली में रहकर ही ग्रेजुएशन के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी.
कभी-कभी मोना मन में सोचती कि रमेश बाबू पति होने का हक नहीं जताते पर उन्होंने एक अभिभावक की तरह ही मेरा देखभाल किया. वह उनके सामने नतमस्तक हो जाती . आखिर वह दिन भी आ गया जब वह सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सफल हुई. उसकी खुशी का पारावार ना था. जब वह रमेश बाबू के पास पहुंची तो वहां रमेश बाबू ने उसकी सफलता की खुशी में एक छोटी सी पार्टी रखी थी. आज मोना ने सोच लिया था कि रमेश बाबू को वह कह देगी– मैं आपकी बहुत इज्ज़त करती हूं, लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए मुझे आपके साथ जोड़ा था पर मुझे आपके साथ यह रिश्ता दिल से मंजूर है.
पार्टी खत्म होते होते काफी रात हो गई थी. थकान से उसका शरीर निढाल हो चुका था. बिस्तर पर लेटते ही नींद ने उसे घेर लिया.
सुबह उठते ही सबसे पहले वह रमेश बाबू के कमरे में गई, उसने सोच रखा था कि अपने मन की सारी बातें वह उनके सामने उंडेल देगी.
कमरे में जाते ही उसने रमेश बाबू को आवाज लगाई–रमेश बाबू! कहां हैं आप?
पर कोई आवाज नहीं आई.तभी मोना ने देखा कि उनके फोन के नीचे एक कागज दबा हुआ था. वह झटके से उसे उठाकर पढ़ने लगी. लिखा था – मेरी जिम्मेदारी पूरी हुई जो मैने लिया था. अब तुम अपना भला बुरा सोच सकती हो. जिंदगी के जिस मुकाम तक तुम पहुंची हो वह दुर्लभ है. मैने यह घर और जायदाद तुम्हारे नाम कर दिया है, तलाक के पेपर्स भी रेडी करवा दिए हैं, वकील आ कर दे जायेगा तुम अपने साइन कर उसे जमा कर देना .मेरी चिंता न करना और न ही मुझे ढूंढने की कोशिश करना. अपने गुजारे लायक पैसे मैने ले लिए हैं. समय के साथ तुम भी अपने अनुसार योग्य साथी के साथ बंधन में बंध जाना.
यह पढ़ कर मोना ठगी सी रह गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह रमेश बाबू को सारे कमरों में ढूंढने लगी पर वह तो कब का उसे छोड़कर जा चुके थे. वह वहीं जमीन पर बैठकर रोने लगी. अब उसका कोई सहारा नहीं बचा था. उसने घर में ताला बंद किया और ट्रेनिंग के लिए देहरादून चली गई.
ट्रेनिंग खत्म होने के बाद उसे यूपी पुलिस कैडर में डिप्टी कलेक्टर के पोस्ट पर नियुक्ति मिली. उसकी पहली पोस्टिंग लखनऊ में थी. समझदार और मेहनती तो वह थी ही, कार्य कुशल भी थी. पोस्टिंग में रहते हुए भी उसने रमेश बाबू का पता लगाने की काफी कोशिश की पर उनका कहीं पता ना चला.
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जगह-जगह उसकी पोस्टिंग होती रही. अपने व्यवहार और कार्य कुशलता से उसने अपने सीनियर और जूनियर सभी का दिल जीत लिया. 10 साल बीत चुके थे. उसके साथ काम करने वाले यूपी कैडर के ही सागर ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा. वह दुविधा में थी कि उस प्रस्ताव को स्वीकार करे या नहीं. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. अंत में उसने सोचा कि आगे चलकर मुझे भी एक साथी की जरूरत होगी. मैंने अपनी तरफ से रमेश बाबू का पता लगाने की हर संभव कोशिश कर ली है. पता नहीं वह कहां होंगे,
किस हाल में होंगे– यह सब सोच कर उसने शादी के लिए हां कर दी. शुभ मुहूर्त में मोना और सागर की शादी हो गई. दोनों ही व्यवहार कुशल और कार्य कुशल थे. ऐसा लगता था जैसे दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हों. उनकी शादी को 5 साल बीत चुके थे. अगले साल प्रयागराज में महाकुंभ लगने वाला था. प्रशासन की तरफ से मोना को भी काफी जिम्मेदारियां दी गई थी. वह समय समय पर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को मेले के समुचित व्यवस्था के लिए निर्देश देती रहती. आखिर वह दिन आ गया जब महाकुंभ का शुभारंभ होने वाला था. उसके अधीनस्थ कर्मचारी मेले में अपनी ड्यूटी दे रहे थे.जैसे जैसे मेला चरम पर पहुंच रहा था, भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. मेले में पैर रखने के लिए तिल भर भी जगह न थी.
भीड़ को देखते हुए गवर्नमेंट ने जिले के सारे डिप्टी कलेक्टरों की ड्यूटी वहां लगा दी.एक दिन शाम के समय में जब मोना घूम-घूम कर मेले की व्यवस्था देख रही थी तभी उसने देखा कि कुछ लोग लाइन में लग खाना ले रहे हैं. बच्चे बूढ़े औरतें सभी लाइन में लगे हुए थे.तभी उस की नजर एक बुजुर्ग पर पड़ी जो लाइन में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे. मोना को उनका चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा. वह उनके नजदीक गई. उसे ड्रेस में देख सभी लोग साइड हो गए. मन में सबके यह ख्याल आने लगा
कि क्या बात है! अचानक से पुलिस अधिकारी यहां. जैसे ही मोना वहां पहुंची उसने देखा कि खाना लेने वाले बुजुर्ग कोई और नहीं बल्कि रमेश बाबू हैं. जल्दी से उनके पास जाकर वह उनका हाथ पकड़ किनारे ले आई और बोली रमेश बाबू आप मुझे छोड़कर कहां चले गए थे. मैंने कितना ढूंढा आपको?
आप तो मुझे बीच मंझधार में ही छोड़ गए. क्या आपको एक बार भी मेरा ख्याल नहीं आया? उसके पलकों से आंसू बहने लगे. रमेश बाबू ने अपने कांपते हाथों को उसके सिर पर रखा और कहा –मोना! मैं तुम्हें छोड़कर कहां गया था. अगर मैं तुम्हारी जिंदगी में शामिल रहता तो तुम्हारे रास्ते में बाधा आती. तुम शायद वह सब हासिल नहीं कर पाती जो आज तुम्हारे पास है.
ऐसा आप सोच रहे हैं रमेश बाबू… मैं तो दिल से आपको अपनाने लगी थी–मोना ने रोते हुए कहा अब आपको कहीं नहीं जाना है. आपको मेरे साथ लखनऊ चलना होगा. अगर आप कहें तो हम लोग आपके घर में भी रह सकते हैं जो आपकी बाट जोह रहा है. सागर मेरा पति है. वह भी मेरी ही तरह डिप्टी कलेक्टर है.
बहुत ही समझदार और संवेदनशील. उसने हमेशा ही मेरी इच्छा का मान रखा है. आज भी रखेगा. आप हमारे साथ चलें…जब मैं छोटी थी तब आपने मुझे गर्त में डूबने से बचाया तो क्या आपके अंतिम समय पर मैं आपको एक परिवार का सुख नहीं दे सकती ?आपको मेरे साथ वापस चलना ही होगा– कहते हुए मोना ने उनकी कलाई पकड़ ली. दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे. सुना था कि लोग कुंभ में बिछड़ जाते हैं लेकिन यह महाकुंभ तो बिछड़े हुए लोगों का मिलन स्थल बन गया था.
वीणा कुमारी