“पापा… मम्मी मुझे पहचानती
क्यों नहीं हैं “
10 साल की साक्षी की यह मासूम, डरी-सहमी सी आवाज़ राजीव के सीने में कहीं चुभ गई।
राजीव ने बेटी को अपनी गोद में उठाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“बस थोड़ा और वक्त बेटा… तुम्हारी मम्मी सबकुछ याद कर लेंगी। हमें हिम्मत नहीं हारनी है।”
सब कुछ अचानक ही बदल गया था उस दिन…
राधा सीढ़ियों से गिर गई थी। उसका सिर ज़ोर से दीवार से टकराया। खून बहा… और उस पल के बाद राधा ने किसी को नहीं पहचाना।
डॉक्टरों ने कई टेस्ट किए। एमआरआई स्कैन के बाद डॉक्टर ने सिर हिलाते हुए कहा,
“यह ब्रेन ट्रॉमा है… मेमोरी लॉस। अब ये किसी को पहचान नहीं पाएंगी। और भविष्य में सुधार… दुर्भाग्यवश, बहुत कठिन है।”
राजीव की दुनिया जैसे थम गई थी।
सामने पत्नी, जिसे उसने हर दुख-सुख में साथ देने का वादा किया था, अब उसकी तरफ ऐसे देखती थी
जैसे कोई अजनबी हो।
शुरुआत में रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी सब आए। कुछ ने सहानुभूति जताई, कुछ सलाहें देने लगे।
माया दीदी बोलीं,
“भाई, अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी। एक बीमार पत्नी, छोटी बच्ची और नौकरी… कैसे संभालोगे? किसी अच्छे देखभाल केंद्र में राधा को शिफ्ट कर दो। कम से कम तुम्हारी बेटी तो ढंग से पलेगी।”
राजीव ने चुपचाप दीदी की बात सुनी, फिर शांत स्वर में कहा,
“दीदी, राधा मेरी ज़िम्मेदारी नहीं… मेरा विश्वास है। जब अच्छे दिनों में साथ दिया, तो आज कैसे छोड़ दूँ?”
धीरे धीरे सबका आना कम हो गया।
अब जीवन का नया संघर्ष शुरू हुआ — घर, नौकरी, बेटी की पढ़ाई और सबसे बढ़कर राधा की सेवा।
राधा अब कुछ भी नहीं पहचानती थीं — न साक्षी को, न अपने कमरे को, न अपनी पसंदीदा चीज़ों को। एकदम खामोश, भावहीन चेहरा… बस सांसें चल रही थीं।
लेकिन राजीव ने हार नहीं मानी।
सुबह उठते ही सबसे पहले राधा को नहलाना, तैयार करना, उसके बालों में कंघी करना। फिर दवाइयां, फिजियोथेरेपी, और पुराने गीत, कविताएं, तस्वीरें — जिनसे शायद कोई स्मृति लौट आए।
एक रात साक्षी ने पूछा,
“पापा, आप मम्मी से हर दिन बातें करते हो… लेकिन मम्मी तो कुछ कहती ही नहीं।”
राजीव मुस्कुराया और कहा,
“बेटा, जब कोई हमें सुनता नहीं, तब भी हमें बोलते रहना चाहिए… क्योंकि कभी-कभी दिल सुनता है, जो दिमाग भूल गया हो।”
जैसे-तैसे समय बीता, लेकिन ऑफिस में प्रदर्शन गिरने लगा।
फिर एक दिन बॉस ने बुलाकर कहा,
“राजीव, तुम्हारा मन अब काम में नहीं लगता। हमें अफ़सोस है, लेकिन हमें किसी और को रखना होगा।”
राजीव को नौकरी से निकाल दिया गया।
घर लौटते हुए रास्ते भर चुप रहा, लेकिन जब साक्षी ने पूछा,
“क्या अब सब खत्म हो गया पापा?”
राजीव ने जवाब दिया,
“नहीं बेटा, जब तक हौसला है, रास्ता भी है।”
अगले ही दिन उसने अपने घर के बाहर बोर्ड टांगा —
ट्यूशन उपलब्ध – कक्षा 1 से 10 के लिए।”
धीरे-धीरे आस-पड़ोस के बच्चे पढ़ने आने लगे। आमदनी थोड़ी थी, पर ज़रूरत भर की हो जाती थी। सबसे बड़ी बात — राजीव घर पर रहकर राधा की देखभाल कर सकता था।
रोज़ वही दिनचर्या — पढ़ाना, साक्षी की पढ़ाई में मदद, राधा को समय देना… दिन यूं ही महीनों और फिर वर्षों में बदलते गए।
चार साल बीत चुके थे। राधा अब भी शांत और भावहीन थी। लेकिन उस दिन कुछ बदला…
राजीव रोज़ की तरह उसे कविता सुना रहा था —
“तुम स्मृतियों में रहो, तुम धड़कनों में बसो…”
तभी राधा की पलकें ज़रा सी कांपीं। होंठ हिले। और फिर धीमी, टूटी आवाज़ आई —
“रा…जी…व…”
राजीव के हाथ कांपने लगे।
“क्या… क्या तुमने मेरा नाम लिया?”
उसने राधा की आँखों में देखा, जहाँ हल्की सी पहचान की चमक थी।
डॉक्टर ने देखा, परखा, फिर मुस्कुराकर कहा,
“यह मिरेकल है… लेकिन शायद यह मिरेकल नहीं, प्रेम और विश्वास की जीत है।”
अब हर दिन छोटा सुधार लाने लगा। राधा ने साक्षी को पहचाना, फिर घर की तस्वीरें, पुरानी ग़ज़लें, और आखिरकार खुद को।
एक दिन जब वह खुद से बोल पाईं —
“राजीव, मैं इतनी देर कहाँ थी?”
राजीव ने उनकी हथेली थामते हुए कहा,
“तुम कभी कहीं नहीं गई थीं… बस, तुम्हें नींद आई थी। अब जाग गई हो, तो सब फिर से शुरू होगा।”
इधर साक्षी डॉक्टर बन चुकी थी। उसी अस्पताल में काम करने लगी जहाँ उसकी मां का इलाज हुआ। वहाँ उसकी पहचान एक युवा, संवेदनशील डॉक्टर से हुई और राजीव ने खुशी-खुशी बेटी की शादी उसी से कर दी।
शादी के बाद साक्षी ने आग्रह किया —
“पापा, अब आप दोनों मेरे साथ रहिए न… मेरी ज़िंदगी आप दोनों के बिना अधूरी है।”
राजीव ने बेटी को गले लगाते हुए कहा,
“बेटा, अब तुम्हारी उड़ान का वक्त है… हम पास ही रहेंगे, लेकिन अपनी दुनिया में।”
उसी कॉलोनी में पास ही एक छोटा सा फ्लैट लिया। जहाँ राधा और राजीव अब सुकून से रहते हैं।
आज की सुबह:
बालकनी में सूरज की हल्की धूप थी। राधा ने चाय का प्याला पकड़ा और कहा,
“आज तुम्हारी पसंद की अदरक वाली चाय बनाई है… स्वाद बताना।”
राजीव मुस्कुरा पड़ा,
“तुम्हारा साथ हो… तो हर चीज़ में स्वाद है राधा।”
Rekha saxena
#विश्वास की डोर