Moral stories in hindi:
गुरुग्राम 45 सेक्टर की आवासीय कालोनी के ग्राउंड फ़्लोर पर एम आई जी फ़्लैट के 305 नंबर की कहानी है यह।फ़्लैट में दो प्राणियों का निवास है।सुधांशु मित्तल उम्र 59 वर्ष एवं श्रीमती सुलोचना मित्तल उम्र 57 वर्ष ।एक पुत्र आशीष पत्नी के साथ अमेरिका में सैटल है और पुत्री अपने पति के साथ दुबई में है।
बैसे तो मनुष्य जीवन पर्यन्त न तो अपने दायित्वों से मुक्त हो पाता है और न ही अपनी तृष्णाओं से किंतु उसकी मुख्यतः दो चाहना रहती हैं। एक की उसके बच्चे सैटल हो जायें और उनकी यथायोग्य शादियाँ हो जाये।दूसरी कि उसके सर पर स्वयं की छत का जुगाड़ हो जाए।प्रभु कृपा से सुधांशु जी की दोनों इच्छाओं की पूर्ति हो चुकी थी ।उनकी एक वर्ष की नौकरी और शेष थी इसके पश्चात जीवन की दूसरी पारी पत्नी सुलोचना के साथ प्लान करेंगे ।बैसे सुलोचना जी के लिए आने वाली दूसरी पारी के लिए प्लान करना जैसा कुछ ख़ास नहीं है ।वह पहले से ही कालोनी में स्थित मंदिर से जुड़ी हुई हैं और साथ ही कालोनी की अपनी मित्र मंडली में भी सक्रिय हैं ।
बस पति के नौकरी से संबंधित रूटीन की बाध्यता समाप्त हो जानी है।बैसे भी पति के रिटायरमेंट को अभी एक वर्ष शेष है किंतु उधर अमेरिका से पुत्र काफ़ी दिनों से उन्हें अमेरिका में आने को कह रहा है ।सुधांशु जी का कहना है कि रिटायरमेंट के बाद निश्चिंत होकर अमेरिका चलेंगे।पर पुत्र नहीं मान रहा उसका कहना है कि अभी आ जाओ रिटायरमेंट के बाद दुबारा आ जाना।पुत्र के दवाब के चलते अंदर ही अंदर अमेरिका जाने की भी हलचल चल रही है ।
सुलोचना का दैनिक रूटीन है कि प्रात: उठकर वह अपने फ़्लैट के आगे कुछ चक्कर लगाती हैं ।आज भी जब वह बाहर आई तो अचानक एरिक पॉम के गमले के नीचे उन्हें कुछ हरा-हरा सा पड़ा नज़र आया।पहले तो उन्हें लगा कि संभवत हरे पत्तों की कोई टहनी होगी।किंतु पास जाने पर वह देखकर आश्चर्यचकित हो गई कि जिसे उन्होंने टहनी समझा था वह तो एक तोता निकला ।तोता निश्चल सा पड़ा था किंतु उसकी आँखों में जीवंतता झलक रही थी ।ऐसी परिस्थिति में वह क्या करें , कुछ समझ न आया ।उन्होंने पति को आवाज़ लगाते ज़ोर से पुकारा- “जल्दी बाहर आइए कुछ दिखाना है ।”
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सुधांशु जी को समझ नहीं आया कि पत्नी क्या दिखलाना चाहती है ।हड़बड़ी में बाहर आए और सुलोचना को प्रश्नवाचक नज़रों से देखा।” उधर…उधर … गमले के नीचे.. “- सुलोचना ने उँगली से इशारा करते हुए कहा ।इसी बीच घर में काम कर रही बाई भी उत्सुकता वश बाहर आ गई थी ।सुधांशु जी ने झुक कर देखा ।तोते के पंखों में हल्की सी गति हुई और फिर शांत हो गई ।
“ऐसा लगता है कि पक्षी किसी तरह घायल होकर यहाँ आ गिरा है , पर इसमें हम क्या कर सकते हैं ।”-तत्पश्चात् सुधांशु जी ने बाई को संबोधित करते हुए कहा -“इसे यहाँ से उठा कर सामने आम के पेड़ के नीचे रख आओ ।क़िस्मत होगी तो बच जाएगा ।”
“ ऐसे कैसे इसे वहाँ मरने को छोड़ आएँ ।कोई तो कारण रहा होगा ,वरना ईश्वर कृपा से यह मेरे फ़्लैट के आगे ही क्यों गिरता ?”- सुलोचना ने पति का प्रतिवाद करते हुए कहा।
“ इस झंझट में फँसने के अलावा मुझे और भी ज़रूरी काम हैं ।”- कह कर सुधांशु जी अंदर जाने लगे ही लगे थे कि सुलोचना रास्ता रोक कर बोली-“ आप जो रोज़ इतना गीता-पाठ करते हैं तो क्या उसमें यह नहीं लिखा कि शरणागत को प्रश्रय देना हमारा फ़र्ज़ बनता है ।अंदर से कार की चाबी ले कर आइये हम इस तोते को पक्षी-चिकित्सक के पास ले कर चल रहे हैं ।”
चालिस वर्षों से सुधांशु जी दाम्पत्य गाड़ी का स्टीयरिंग जिस धैर्य से संचालित करते आ रहे थे उसके अनुभव ने उन्हें बता दिया कि तोते महाशय की उपेक्षा करना घर की शांति के लिए भारी पड़ सकता है ।अत: मन से न चाहते हुए भी चेहरे पर नक़ली मुसकान लिए उन्होंने गाड़ी स्टार्ट कर दी।….. नवजात शिशु की भाँति तोता सुलोचना की गोद में और मोबाइल पर पक्षी चिकित्सक की लोकेशन पर नज़रें जमाए सुधांशु जी ।…”परिंदा क्लीनिक “ के साइनबोर्ड के आगे सुधांशु जी ने गाड़ी रोक दी।
“अरे..रे..बेचारा घायल हो गया है … पर चोट गहरी नहीं है … चिंता की कोई बात नहीं, दो चार दिन में ठीक हो जाएगा ।पर पट्टी कराने रोज़ आना पड़ेगा ।”- परिंदा क्लीनिक के चिकित्सक जी ने सुलोचना को आश्वस्त करते मुसकुराते हुए कहा ।तोते जी के प्राथमिक उपचार के पश्चात क़ाफ़िला फ़्लैट में लौट आया ।पट्टी करवाने रोज़ जाने के निर्देश से सुधांशु जी मन ही मन झुंझला रहे थे पर सुलोचना मन ही मन गदगद थी कि ईश्वर ने पक्षी का जीवन बचाने को उसे चुना।
हफ़्ते भर बाद ही तोता फुदक-फुदक कर चलने लगा था ।शुरू शुरू में तो तोता डर कर कोने में दुबक जाता था पर बाद में अमरूद और सेब के भोग लगाने के बाद उसे अपने मेज़बान पर भरोसा हो गया था ।और बैसे भी इंसान की अपेक्षा जानवर प्रेम की भाषा को जल्द पहचानता है ।सुलोचना और तोते के बीच की केमिस्ट्री परवान चढ़ रही थी।तोता कभी सुलोचना के घुटने पर कभी गोद में फुदक कर बैठ जाता और सुलोचना प्यार से उसे सहलाती।तोते का नामकरण भी कर दिया गया ।तोता ईश्वर का भेजा उपहार था अत: उसका नाम-“ गिफ़्ट “ रख दिया गया ।305 नंबर का फ़्लैट टेंऽऽ….टें ऽऽऽ के सुरों से गूँजने लगा था।सुधांशु जी को भी अब इस नये मेहमान से मोह होने लगा था।वह एक बड़ा सा पिंजरा ख़रीद लाये थे जिसमें एक झूला भी लगा था।तोता जी नये घर (पिंजरा) में शिफ़्ट कर दिए गए ।घायल होने से पहले खुला आकाश उसका घर था और पेड़ों की टहनियाँ उसका झूला।पर अब उसका आकाश लोहे के पिंजरे में सिमट गया था ।
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तोते की उड़ान भले ही खुले आकाश से ,दो वाई दो के सीमित क्षेत्र में सिमट गई हो पर 305 नंबर के बाशिंदों की सात समुंदर पार की उड़ान उस दिन के ई॰मेल से निर्धारित हो गई थी ।पुत्र सौरभ ने पंद्रह दिन बाद के दो टिकट जो कि इंडिगो फ़्लाइट से थे ,उन्हें भेज दिए थे ।अमेरिका जाने की चर्चा तो पिछले कुछ महीनों से चल रही थी पर यह इतने अचानक फ़ाइनल हो जाएगी इसकी कल्पना नहीं थी।पासपोर्ट और वीज़ा तो पहले से ही था पर इतनी दूर की यात्रा के लिए बहुत कुछ करना होता है ।तोते को अब तक मिल रहा वी॰आई॰पी ट्रीटमेंट गुजरे दिनों की बात हो गई थी ।घर की बाई से बात हो गई , एक महीने की तो बात है ,तोता बाई के घर रहेगा ।
डलास के फ़ोर्ट वर्थ एअरपोर्ट पर पुत्र सौरभ और उसकी तामिल पत्नी अंजली उन्हें लेने आए थे।सौरभ की शादी से पहले सुलोचना ने भावी पुत्रवधू के न जाने कितने सपने संजोए थे पर पुत्र ले आया साँवली सलोनी तामिल पुत्रवधू ।नए ज़माने की रीत से समझौता करना पड़ा ।जीवन भी तो एक समझौता है ।एअरपोर्ट पर पहुँचने पर सुलोचना को आशा थी कि पुत्रवधू उनके पैर छूकर स्वागत करेगी ,पर उन्हें फूलों के बुके से संतोष करना पड़ा ।अमेरिका में फ़ॉल का सीज़न चल रहा था ।चौड़ी सड़क के दोनों ओर लगे वृक्षों के भूरे लाल पत्ते हवा में ही लहराकर कर गिर रहे थे।…. “खूबसूरत नज़ारा है ।”-सुधांशु जी ने कहा ।” “व्हाट नज़ारा ? “-अंजली ने प्रश्न दागा।
सुधांशु जी प्रश्न समझ नहीं पाए और इस तरह पुत्रवधू का बीच में टोकना उन्हें अपमानजनक लगा । कार ड्राइव कर रहे सौरभ ने बात समझते हुए कहा-“ पापा जी, सलोनी को हिन्दी नहीं आती ।वह आपसे ‘नज़ारा ‘ का अर्थ पूँछ रही थी ।”
पिता पुत्र का वार्तालाप सुनते हुए सुलोचना सोच रही थी कि उन्हें तामिल और अंग्रेज़ी समझ नहीं आती और बहु को हिन्दी ।लगता है कि अमेरिका में बहु और सास की अच्छी छनेगी ।एक घंटे की ड्राइव के बाद पुत्र का एक वर्ष की लीज़ पर लिया फ़्लैट आ गया था ।17-18 घंटे की फ़्लाइट में बैठे-बैठे शरीर अकड़ गया था ।सोचा डिनर करके सो जाएँगे ।डिनर पर पिज़्ज़ा और बर्गर था।(शायद बहु को रोटियाँ बनानी नहीं आती होंगी।)एक तो इन विदेशी उड़ानों में परोसा गया इंडियन शाकाहारी खाना बैसे ही बड़ा अजीब होता है उपर से डिनर में पिज़्ज़ा ।सुलोचना ने सोच लिया कि कल से किचन उसे ही सँभालनी होगी।अमेरिकी प्रवास के स्वप्नों में दरार पड़ने लगी थी ।
अगले दिन बेटा-बहु अपनी अपनी कारों से ऑफिस निकल गए।सुलोचना किचन का भूगोल समझने का प्रयास कर रही थी तो उधर सुधांशु जी बाथरूम में बाल्टी और मग ढूँढ रहे थे ।बाथरूम में बड़े से बाथ टब के ऊपर ठंडे गर्म पानी के शावर लगे थे ।टॉयलेट में टॉयलेट पेपर था। तो बाल्टी-मग आदि का यहाँ क्या काम।अमेरिका में रहना है तो देसी आदतों को भुलाना होगा।
जैसे तैसे पति-पत्नी अपने को इस नये माहौल में ढालने का प्रयास कर ही रहे थे कि उस दिन हादसा हो गया।हुआ यह कि उस दिन सुलोचना नाश्ते में पकौड़ियाँ तल रही थी ।ख़स्ता और कुरकुरी तलने की चाहत में तेल से अच्छा ख़ासा धुँआ निकल रहा था ।धुएँ से किचन में लगा फ़ायर एलार्म बज उठा और आनन फ़ानन में फ़ायर ब्रिगेड और पुलिस की वैन ने फ़्लैट में दस्तक दे दी ।
सुलोचना घबरा गई थी।हादसे के बाद तलने छौंकने में कर्फ़्यू लग गया था और तो और बाहर तौलिया सुखाने में भी यहाँ कर्फ़्यू था।
पर वीकेंड पर तब समस्याओं से मुक्ति मिल गई जब पुत्र ने नियाग्रा फ़ॉल्स आदि टूर का प्रोग्राम सेट कर लिया ।अच्छा टूर रहा था ।दो हफ़्ते गुजर चुके थे ,दो हफ़्ते बाक़ी बचे थे ।पाँच दिन फ़्लैट में और वीकेंड पर घूमना फिरना।फ़्लैट सुंदर था और अमेरिका भी।पर इस चकाचौंध में मन में कहीं कोहरा सा समा गया था।मन ही मन इंडिया जाने के दिनों की गिनती शुरू हो चुकी थी ।सर्व संपन्न सुविधा युक्त मकान में जैसे क़ैद होने का अहसास होने लगा था।
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इंडिया की वापसी फ्लाइट के लिए जब सुधांशु जी अटैची लगा रहे थे तो उन्होंने हंस कर कहा-“ अमेरिका में रहना एक सोने के पिंजरे में रहने जैसा है।……..और उस दिन पिंजरा टूट गया जब प्लेन ने भारत के लिए आकाश में उड़ान भरी ।……भारत की धरती पर प्लेन लैंड कर गया था।
होम स्वीट होम…305 नंबर के स्वामी घर में प्रवेश कर चुके थे।यात्रा की तैयारी से पूर्व अव्यवस्थित हुआ निवास धूल से भर चुका था।बैसे तो बाई को वापसी की तारीख़ ज्ञात थी पर सुलोचना ने बाई को आने के लिए मोबाइल कर दिया ।एक घंटे बाद बाई प्रगट हुई उसके हाथ में तोते का पिंजरा था।सुलोचना तो तोते के विषय में बिलकुल भूल ही चुकी थी ।
“ बीबी जी यह रहा आपका मिट्ठू , सच में आपके जाने के बाद इसने बहुत परेशान किया।जबकि हमने बहुत अच्छे से इसका ख़्याल रखा।”- बाई ने शिकायती अंदाज़ में कहा।
सुलोचना ने लक्ष किया कि तोता बहुत उदास लग रहा था।अचानक सुलोचना को सुधांशु जी द्वारा अमेरिका में कहा वक्तव्य याद हो आया ‘कि अमेरिका में रहना सोने के पिंजरे में क़ैद होने जैसा है ।’ पिंजरा चाहें सोने का हो या लोहे का , पर पराधीन तो कर ही देता है ।सुलोचना ने बाई से पिंजरा हाथ में लिया ।तोते को ममता से निहारा और दूसरे पल पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया ।तोता चौकन्ना हो गया था..धीरे से उसने दरवाज़े से गर्दन बाहर निकाली …और फिर उड़ कर पास के पेड़ की डाल पर बैठ गया।कुछ पल डाल पर रुका।अपने जंग खाए पंखों को फड़फड़ाया और उड़ गया आकाश की ओर………………..।
******समाप्त******
लेखक- नरेश वर्मा