पश्चाताप – मीनाक्षी सिंह  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : श्वेता ये तुमने क्या कर दिया?? ओह… मेरी फूल सी बच्ची कितने दर्द में हैं…. डॉक्टर साहब ये बच तो जायेगी ?? कितने भी पैसे लग जायें मैं अपना सब कुछ बेच दूँगा … पर बस मेरी न्नही सी कली को बचा लीजिये … संतोष चीख चीखकर रोने लगा… 

जी… हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं.. पर हेड इंज़री ज्यादा हो गयी हैं बच्ची को… इसलिये आपरेशन से पहले कुछ भी कहना मुश्किल हैं… डॉक्टर साहब इतना बोल ओटी में चले गए…. 

संतोष की शर्ट पूरी खून से लथपथ थी… उसके कानों में अपनी न्नही सी गुड़िया जो कि अभी  सिर्फ दो साल की ही थी.. उसकी तोतली भाषा में पापा बोलने की आवाज गूंज रही थी… ऑफिस से थका हारा आता था संतोष तो अपनी मीठी को देख उसे गोद में उठा, उसे पुचकारकर पूरे दिन की थकान मिटा लेता था… अगर उसके आने तक मीठी कभी सो भी ज़ाती थी तो भी उसे जगाकर खिलाये बिना नहीं मानता था संतोष…. शायद ऐसा प्यार सभी पिता  अपने बच्चों को करते हैं… 

दूसरी तरफ संतोष की पत्नी श्वेता गुमसुम सी बेंच पर बैठी हुई हैं. 

. ना तो वो रो रही हैं… ना जी कुछ बोल रही हैं… संतोष की बातों का भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा… 

ना तो मायके पक्ष से ना ही ससुराल पक्ष से कोई उनके साथ था… होता भी कैसे आखिर उन दोनों ने परिवार वालों के खिलाफ जाकर प्रेम विवाह जो किया था…. दोनों एक साथ एक ही जगह एक बड़ी कम्पनी में नौकरी करते थे…कब उनकी बातें , उनकी औपचारिक मुलाकातें प्यार में बदल गयी वो जान ही ना पायें…. इंटरकास्ट मेरिज थी दोनों की… दोनों ने कोर्ट मेरिज की… वो शहर छोड़ दूसरे शहर में आ गए…. अनुभव तो था ही… दोनों को जल्द ही अच्छी नौकरी मिल गयी… जीवन बहुत खुशनुमा गुजर रहा था… दोनों में प्यार ही बेइंतहा था….

वीकेंड पर घूमना , मूवी देखना, होटेल में खाना खाना कुल मिलाकर जीवन ख़ुशी ख़ुशी चल रहा था… तभी विवाह के चार साल बाद आपसी सहमति से दोनों ने एक न्नहे मुन्हे के बारें में सोचा… जल्द ही श्वेता गर्भवती हो गयी… उसने आठ महीने तक अपनी नौकरी जारी रखी… आखिरी महीने में उसने  मात्रत्व अवकाश लिया….

श्वेता ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया… संतोष और श्वेता बहुत खुश थे कि उनका  प्यार अब और मजबूत हो गया हैं… कुछ समय तो अच्छा गुजरा… पर धीरे धीरे अकेले बच्चे को संभालते हुए, ऊपर से श्वेता का बच्चे के बाद कमज़ोर शरीर श्वेता को चिड़चिड़ा बनाने लगा… उसे अब बेटी से प्यार कम हो गया था.. वो उसे बोझ लगने लगी थी… संतोष भी श्वेता को मीठी को अपना ही दूध पिलाने को बोलता कि मैं जब तुम्हारे खाने पीने की कमी नहीं रखता तो तुम अपना दूध क्यूँ नहीं पिलाती मीठी को…

श्वेता को डर था कि उसका शरीर मीठी को दूध पिलाने से बेडौल हो जायेगा… इसलिये संतोष के ना रहने पर वो उसे ऊपर का दूध पिलाती …. रात को उसके सामने उसे अपना ही पिलाना पड़ता… मीठी कभी भी रात में जाग ज़ाती…. संतोष तो बोल देता… मुझे सुबह ऑफिस जाना हैं… तुम्हे तो घर पर ही रहना हैं… इसे देखो अब …. मुझे सोने दो… श्वेता अंदर ही अंदर झुँझला ज़ाती… संतोष भी कभी कभी मजाक में कह देता श्वेता अब तुम में पहले जैसी बात नहीं रही…. एक तो किसी की रत्तीभर भी मदद नहीं  ऊपर से पति का ऐसा व्यवहार श्वेता को डिप्रेशन में ले जा रहा था… तब तो श्वेता अपना आपा खो बैठी जब उसका मात्रत्व अवकाश खत्म हुआ और वो सुबह अपनी ऑफिस की  ड्रेस पहन बड़ी ख़ुशी से तैयार हुई और खुद को शीशे में निहार रही थी… तभी संतोष बोला.. तुम सुबह सुबह तैयार होकर कहां चल दी….. 

ऐसे अंजान क्यूँ बन रहे हो… तुम्हे नहीं पता क्या मेरी छुट्टी खत्म हो गयी हैं… मुझे ऑफिस जॉइन करना हैं दुबारा… श्वेता चहकती हुई बोली… 

तुम्हारा दिमाग खराब हैं… तुम ऑफिस जाओगी तो मीठी को कौन देखेगा घर पर ?? 

तुम तो उसके बाप हो… अब तुम छुट्टी ले लो… वैसे रहने दो… मैने एक आया की व्यवस्था कर दी हैं… वो सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे रहा करेगी…. कई बच्चे देखे हैं उसने पहले भी… अच्छे से रख लेगी… 

मुझे ये मंजूर नहीं…. कि मेरी मीठी को कोई आया पाले… तुम पर नहीं हो रही उसकी देखभाल तो तुम जा सकती हो यहां से…तुम्हारे होने का मतलब ही क्या फिर जब तुम अपने बच्चे को नहीं पाल सकती…मैं नौकरी कर रहा हूँ…. अच्छा खासा कमाता हूँ… तुम्हे क्या ज़रूरत नौकरी करने की… नहीं संभल रही मीठी तो मैं देख लूँगा…. तुम आजाद हो…. 

यह सुन श्वेता पागल सी हो गयी… उसने संतोष से कुछ नहीं कहा ..अपने कपड़े उतार अपनी मेक्सी पहन मीठी को दूध पिलाने लगी… संतोष अपने ऑफिस निकल गया … श्वेता उसके ज़ाते ही उठी.. मीठी को गुस्से में ऊँचाई से जमीन पर पटक दिया… वो बोलती रही.. तूने मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी हैं… तू ही नहीं रहेगी तो संतोष कुछ नहीं कहेगा मुझसे… सारे फसाद की ज़ड़ तू हैं… जबसे मेरे जीवन में आयी हैं ज़िन्दगी नरक हो गयी हैं मेरी… 

पर जब मीठी के शरीर में कुछ भी हलचल नहीं हुई… उसके सर से खून बहनें लगा तो श्वेता मीठी को गोद में उठा उसे बाहर ला  चीखने लगी… कोई तो बचा लो मेरी मीठी को… वो इतनी जोर जोर से चिल्ला रही थी कि सारे  पड़ोसी आ गए… किसी ने संतोष को भी फ़ोन कर दिया…. बगल वाले भाई साहब मीठी को गोद में उठा अस्पताल ले आयें… पर वहां श्वेता के बार बार यह कहने पर कि मैने मार डाला अपनी बच्ची को… यह सुन सभी पड़ोसी पुलिस केस का सुन वहां से निकल गए….. तभी ओटी से डॉक्टर साहब बाहर आयें… दौड़ता हुआ संतोष उनके पास आया… जी मेरी मीठी…. 

अब वो खतरे से बाहर हैं… अन्दूरूनी चोट हैं… घाव भरने में समय लगेगा… बच्ची छोटी हैं जल्दी रिकवर कर लेगी… 

यह सुन संतोष गुमसुम सी बैठी श्वेता के पास आया… उसको  झकझोर कर बोला.. तुमने सुना श्वेता… हमारी मीठी अब खतरे से बाहर हैं.. यह सुन श्वेता संतोष के गले से लग गयी… उसके पश्चाताप के आंसू बहकर संतोष के गालों को भिगो रहे थे…. 

वो दौड़ती हुई अपनी मीठी के पास गयी उसे घंटो निहारती रही…. 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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