Moral Stories in Hindi : रात काफी हो गई थी… पर अमन अभी तक ऑफिस से घर नहीं लौटा था… दिव्या बार-बार दरवाजे की ओर देख रही थी… अमन तो आखरी बार फोन पर कहा रहा था कि वह आधे घंटे में घर पहुंच जाएगा… उसके बाद से ना तो उसका फोन ही लग रहा है और ना ही वह अभी तक घर ही आया… दिव्या की घबराहट वक्त के साथ-साथ बढ़ती ही जा रही थी, कि तभी दरवाजे की घंटी बजी…
दिव्या दौड़कर दरवाजा खोलती है तो, अमन को सामने पाकर उसकी जान में जान आई है… पर जहां उसने राहत की सांस ली वही उसका गुस्सा उसे पर हावी हो गया…
दिव्या: आपने आधे घंटे का कह कर इतनी देर लगा दी और तो और फोन भी बंद आ रहा है आपका.. एक बार भी मुझे खबर करने की नहीं सोची..? पता है यहां मेरी जान निकली जा रही थी…
अमन: अरे पति हूं तुम्हारा… बच्चा नहीं जो अपने हर एक कदम की तुम्हें खबर करूं… वह रास्ते में कुछ दोस्त मिल गए थे उन्हीं के साथ समय का पता नहीं चला और मैं जानता था तो मुझे बार-बार फोन कर परेशान करोगी, इसलिए फोन को बंद कर दिया…
दिव्या: अरे वाह… अपने दोस्तों का साथ पाकर मुझे ही भूल गए… इतना भी नहीं सोचा कि मैं कितनी परेशान हो रही होगी… एक बार जो मुझे बता देते कि, आप अपने दोस्तों के साथ है तो क्या मैं आपको परेशान करती..? उल्टा जो मैं यहां छटपटा रही थी टेंशन से, वह ना होता…
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अमन: कह तो ऐसे रही हो जैसे पता नहीं मेरी कितनी फिक्र है..? देखो दिव्या… शादी के बाद मेरी जिंदगी खत्म नहीं हो गई… मेरी भी अपनी इच्छाएं है तो बात बात पर मुझ पर पाबंदियां लगाना बंद करो… मैं तुम्हारी मर्जी में अपना तांग नहीं अड़ाता, तो तुम भी मेरी मां बनने की कोशिश मत करो…
अमन के इस बात से दिव्या को काफी बुरा लगता है और वह मन में सोचती हैं कि परवाह करना क्या रौब जमाना हुआ..? मैंने इनसे कब कहा कि आप मत जाओ कहीं अपनी मर्जी से..? पर जब घर पर कोई आपका इंतजार कर रहा हो, तो उसके बारे में भी तो सोच लो… एक तो आज इन्होंने इतनी बड़ी गलती किया, अपना फोन बंद करके… ऊपर से मुझे ही सुना दिया कि मैं इनकी मां बनने की कोशिश कर रही हूं…
अमन अक्सर ही ऐसा करता, बिना बताए दिव्या को वह बिंदास इधर-उधर चला जाता और उसकी सबसे बुरी आदत थी, की वह दिव्या को नजरअंदाज करने के लिए अपना फोन बंद कर देता था…
एक दिन अमन की छुट्टी थी और वह बैठा घर पर टीवी देख रहा था… दिव्या बाजार जाने का कहकर घर से निकली… सुबह से दोपहर हो गई फिर अमन को होश आया कि दिव्या अभी तक घर नहीं लौटी… पर उसने फिर भी फोन नहीं किया.. क्योंकि दिव्या का उसको भी फोन करना पसंद नहीं था..
. पर फिर शाम भी हो गई अब अमन की बेचैनी बढ़ने लगी… वह बार-बार अपना फोन उठाता, पर फोन नहीं कर पाता… थक हारकर उसने फोन लगा ही दिया… पर जब दिव्या का फोन घर पर ही बजने लगा उससे अब रहा नहीं गया.. वह पहले तो दिव्या के घर पर फोन करता है,
फिर उसके फोन से उसके सहेलियो का नंबर निकालकर उन्हें भी फोन करता है… पर दिव्या का कुछ पता नहीं चलता… वह पागलों की तरह एक बार घर के अंदर एक बार बाहर जाकर झांकता… वह क्या करें उसे समझ ही नहीं आ रहा था, कि तभी उसे दिव्या आती हुई दिखाई देती है…
वह दौड़कर दिव्या को गले लगा कर कहता है, कहां चली गई थी तुम..? सुबह से शाम हो गई समय का कुछ अंदाजा भी है तुम्हें..?
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इस पर दिव्या कहती है.. मैं कोई बच्ची थोड़ी ना हूं और आप मेरे पति हैं, पापा बनने की कोशिश मत कीजिए… वह मेरी एक बहुत पुरानी सहेली मिल गई थी… आज कई सालों बाद, तो उसी के साथ समय का पता नहीं चला… अब से मैंने भी सोच लिया है, ना आप अपनी कोई खबर मुझे देंगे और ना ही मैं अपनी कोई खबर आपको दूंगी… सच में, ऐसे बेफिक्र होकर जीने में बड़ा मजा आता है…
दिव्या की बातें सुनकर आज अमन के चेहरे पर पश्चाताप साफ देखा जा सकता था… वह जानता था कि दिव्या ने उसे सबक सिखाने के लिए ऐसा किया… और आज जिस परिस्थिति से वह गुजरा था, शायद दिव्या हर रोज गुजरती है… फिर वह दिव्या से कहता है… माफ कर दो मुझे दिव्या..
तुमने आज मुझे अच्छे से समझा दिया है कि प्यार में परवाह खुद ब खुद आ जाता है… हम जिसको चाहते हैं उसकी परवाह भी करते हैं.. वह कोई हुक्म या शासन नहीं होता और जहां बेपरवाही हो, वहां तो प्यार का नामो निशान नहीं हो सकता…
दिव्या: चलो आपको आखिर समझ पाई… यह कहकर दिव्या अमन के गले लग जाती है…
दोस्तों… पति-पत्नी के जैसे, यही किस्सा माता-पिता और बच्चों के लिए भी होता है… माता-पिता अपने बच्चों को बात-बात पर रोकते, टोकते और, डांटते हैं… जिसे बच्चों को लगता है कि यह हम पर हुक्म चला रहे हैं… पर वह उनका हुक्म नहीं, उनकी परवाह होती है… क्योंकि उन्होंने बच्चों से कहीं ज्यादा दुनिया देखी है…
बच्चे उनकी इस कड़ाई को देखकर गलत कदम उठा लेते हैं और फिर पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचता… पर एक बात जान लीजिए, जहां प्यार होता है वही परवाह भी होती है…
धन्यवाद
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
#पश्चाताप
रोनिता कुंडू
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