पंचायत – परमा दत्त झा : Moral Stories in Hindi

आज रमेश झा और गीता देवी के ऊपर पंचायत बैठी थी।

क्यों मैंने क्या किया है –रमेश जी बोले।

पापी ,बहू का दूध तक पी लिया,जबकि मैथिल ब्राह्मण में भावहु की परछाई तक से–पंच रघुवीर बोले।

अरे मैं बीमार था, मुझे कुछ पता नहीं -वह बोले ।

इधर बहू भी चिल्लाते बोली-बुलाओ जो बुलानी है।

फिर तो सच में उसी दिन शाम के चार बजे मंदिर प्रांगण में पेड़ के चबूतरे पर पंचायत बैठी।

करीब सौ लोग आये थे, ज्यादातर लोग वे थे जिनका सामाजिक व्यवस्था से सरोकार नहीं था,बस मज़ा लेने आये थे।दूसरी ओर गीता और रमेश बाबू मुजरिम सा खड़े थे।

बोलो तुम्हे क्या कहना है-सरपंच बोले।

पंचायत जरूरी है, क्योंकि एक विधवा बहू ने अपने जेठ की जान बचाई, समाज को मान देना चाहिए।

घटना सही से बताओ-तभी पंच कुछ समझ और सही विचार कर पायेंगे।

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कुछ नहीं पंच परमेश्वर, अत्यंत सरल घटना है।

आपको पता है कि मेरे पति और इनकी पत्नी यानि देवर और भावज मधुबनी आज से दो साल पहले जा रहे थे तो सड़क दुघर्टना में दोनों नहीं रहे,-अबकी बार गीता बोली।

यह बात पूरे गांव को मालूम है।

फिर मैं विधवा,साल भर की बेटी की मां कहां जाती,कोई देखने वाला नहीं।सो यहीं रह गयी। इन्होंने आधी जायजाद देने ,दूसरी शादी करने को कहा था।

मगर ऐसा महान कोई दूसरा नहीं मिलता वहीं इनमें कोई कमी नहीं है,सो मैंने अपनी बेटी के साथ शेष जीवन गुजारने का फैसला किया।

ये शिक्षक हैं, सुबह जाते हैं,शाम वापस आ जाते हैं।

इनकी भी पत्नी नहीं है, मगर दलान पर सोते हैं,जेठ की मर्यादा का पालन करते हैं।

अब केस पर आते हैं,ये अचानक रात में बेहोश हो गये, हाथ पैर ठंढे हो गये, मैं अकेली क्या करती,गर्म तेल से पूरे बदन की मालिश की और अपनी छाती का दूध पिला दिया।

क्यों जेठ को लोग छूते नहीं, तुम्हें ऐसा करते शर्म नहीं आयी।

काहे का शरम,एक बीमार, परिवार को चलाने वाला अकेला आदमी है।मेरी बेटी और मेरा पूरा खर्च उठा रहें हैं।

सो मैं मरते कैसे छोड़ देती,वहीं किया जो जरूरी था।

आज ये ठीक हैं, पूरा काम कर रहे हैं,-यही घटना है।

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आप कुछ कहना चाहेंगे -सरपंच ने इनसे पूछा।

मेरी बहू साक्षात लक्ष्मी है,उसने मौत के मुंह से मुझे निकाला। मैं अपना काम करता हूं।छोटे भाई रहा नहीं सो पूरी जिंदगी ये दोनों मेरी जवाबदेही हैं।रही बात मैं बेहोश था,सो जो बहू बोली वही सही है।आजतक कभी बहू ने मर्यादा नहीं तोडी।मेरा जान बचाकर एक अद्भुत उपकार किया है।

अब समाज जो कहे -*

पूरा मामला समझने के बाद समाज और पंचायत आप दोनों को निर्दोष करार देती है।आप दोनों पर लगायें आरोप गलत थे।वैसे जेठ को छूना,गलत नीयत से छूना पाप है,मगर जान बचाने के लिए उठाया कदम सराहनीय है। अतः पंचायत आप दोनों को सम्मान बरी करती है और आराम से रहने को कहती है, साथ ही बहू को सम्मानित भी करती है।

अब तो सरपंच,सभी पंच का जय-जयकार होने लगा।सच में पंच परमेश्वर होते हैं।
रचनाकार —-परमा दत्त झा भोपाल।

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