हकीकत में महिलाओं के बिना संसार का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन आज मर्दों की बहुत तादाद जो महिलाओं की कद्र नहीं करते ।इस संसार में ऐसे इंसान भी मौजूद है जो औरत को पैरों की जूती के समान समझते हैं। यह बात अलग है ऐसी सोच रखने वाले ज़िन्दगी भर जूते ही खाते हैं कभी थाने में, कभी कोर्ट में तो कभी समाज में। ऐसी ही सोच रखने वाले इंसान को लेकर मेरी कहानी “पैरो की जूती “
यूनिवर्सिटी में लैक्चरार माधुरी का विवाह गत दो बर्ष पहले मयंक से हुआ। माधुरी सुन्दर सुशील शालीन नम्र स्वभाव की सहनशक्ति तो कूट कूट कर भरी व्यवहार में अपने माता-पिता की इकलौती संतान पिता राममोहन रिटायर सरकारी ऑफिसर माँ रामप्यारी घर संचालिका एक दम साधारण सम्पन्न इज्जतदार परिवार से सम्बन्ध रहने के कारण खुद उसके व्यवहार में भी शालीनता झलकती। विवाह हुआ तो मयंक का परिवार भी खाता पीता सम्पन्न व्यवसायी अपना जमा जमाया खानदानी
बिजनेस परिवार में तीन बेटे एक परिवार सहित सदा के लिए विदेश में ही बस गया दूसरा बेटा बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में मुम्बई में अपनी नौकरी के चलते परिवार सहित वहीं बस गया । अब सबसे छोटा मयंक जो बहुत अधिक लाड़ प्यार से पला बढ़ा हुआ बचपन से ही पैसा पानी की तरह बहाने वाला झूठ बोल कर कभी एग्जाम की फीस कभी किसी कोर्स की फीस कभी कहीं चन्दा देना माता-पिता से खूब पैसा मांग ले जाकर अपनी अय्याशी पर लुटाता । काम-धाम के मामले में एकदम
निकम्मा माता-पिता ने बचपन में ध्यान नहीं दिया बस अधिक लाड़ प्यार के चलते सबसे छोटा है करके अधिक सर पर चढ़ा दिया। कभी सोचा ही नहीं अधिक पैसों के बल पर वह बिगड़ भी सकता है। वैसे देखने भालने में मयंक बहुत सुंदर बातें बनाने में महारथी अंदाज लगाया नहीं जा सकता हकीकत में इतना बिगड़ैल आवारा व दिल फैंक इंसान भी हो सकता है।
जब माधुरी से रिश्ता तय हुआ तब माधुरी स्वयं और उसके माता-पिता मयंक को पाकर बहुत ही खुश हुए । इतना सुन्दर लड़का और सम्पन्न परिवार मिल गया। बड़ी ही धूमधाम से शादी हुई सभी रस्मों रिवाज के चलते हफ्ते भर तो घर में खुशी का माहौल रहा धीरे धीरे परिवार में आये सभी मेहमान अपने अपने घर वापस चले गए बड़ा भाई भी अपने परिवार साथ मुम्बई लौट गया ।
अब रह गये परिवार में माधुरी मयंक और सास ससुर। माधुरी की छुट्टियां खत्म हुई वो यूनिवर्सिटी में पढ़ाने जाने लगी। मयंक अपनी आदतों के अनुसार सारा दिन तफरी बाजी करता एकदम निखट्टू आलसी इंसान सदा बैठे बिठाए पिता से पैसे ऐंठने दो के चार बनाने की ही सोचता रहता। धीरे धीरे उसका असली रूप माधुरी के सामने आने लगा। शुरू शुरू में उसने सोचा अभी अभी शादी हुई धीरे-
धीरे सम्भल जायेगा उसने कहने की कौशिश करी वो पिता के साथ व्यवसाय देखे पिता नित्य अकेले सुबह जल्दी अकेले ही चले जाते हैं मगर बात समझने की जगह गुस्सा करता माधुरी को फटकार देता तुम औरत हो औरतों की तरह ही रहो । तुम जैसी महिलाएं मेरे पैरों की जूती के समान है जिनको सर पर बैठाना मुझे बर्दाश्त नहीं है । मैं कुछ करूं या न करूं तुमको कोई मतलब नहीं होना चाहिए तुम बस अपने काम से काम रखो ।
और वो बोला आगे से ध्यान रहे मुझसे ऐसे प्रश्न मत करना।
वरना याद रखना मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा अब इसे मेरी धमकी सयझो या कुछ और ।
उसके पिता दीनदयाल जी और माँ पार्वती ने भी कई बार समझाया कह कह कर हार गये बेटा अपना खानदानी बिजनेस सम्भाल लो तौर तरीके सीख लो जब तक हम है काफी होशियार हो जाओगे जान पहचान भी खूब हो जायेगी तुम्हारी। मगर मयंक एक कान से सूनता दूसरे से निकाल देता उसज्ञपर पिता की बातों का भी कोई असर नहीं होता। एक दिन जब वह पिता से पैसे मांगने आया तो पिता
दीनदयाल जी ने कुछ भी देने से साफ इंकार कर दिया क्योंकि दो दिन पहले उन्होंने उसे एक माल में किसी लड़की को शौपिंग कराते देखा। दोनों ही काफी निकटता बनाये चल रहे थे । अपना एक शादी शुदा बेटा अपनी सुन्दर सुशील पत्नी के रहते पराई लड़की को घूमाये खरीददारी कराता फिरे गले में हाथ डाल घूमता फिरे,भला कौन शरीफ पिता यह सब बर्दाश्त करेगा ? झंगडा व बात काफी बढ़ गई तो पिता दीनदयाल ने बेटे मयंक को घर से निकाल दिया कहा तुम ऐसे नहीं सुधरोगे तुम अपना घर अलग जाकर बसाओ जब सर पर जिम्मेदारी पड़ेगी तब आटे दाल का भाव पता चलेगा ।
माधुरी की सासूमां ने उसे भी साथ जाने को कहा और समझाया बहु तुम समझदार हो इसको सुधारने की कोशिश करना और इसका ध्यान रखना। हम तो पूरी कोशिश करके हार ही गये है।
माधुरी और मयंक किराये का मकान लेकर रहने लगे। आस-पास तो सभी मयंक की आदतों को जानते तो किसी ने किराये का मकान नहीं दिया मगर माधुरी की यूनिवर्सिटी के पास उसकी पहचान से किराये का मकान मिल गया। वहां आसपास माधुरी के साथ लैक्चरार और भी बहुत परिवार रहते थे। मयंक माधुरी अकेले रहते तो मयंक की मनमानी और अधिक बढ़ गई वो प्रतिमाह माधुरी की
तनख्वाह झपट लेता पचास बहाने नया बिजनेस नया काम शुरू कर रहा हूँ.. वगैरा वगैरा, शुरू शुरू में माधुरी उसके झांसे में फंसती पैसा दे दिया करती और मयंक की सभी उजूल फूजूल फरमाइशें पूरी करती रही।वो काम धाम कुछ नहीं करता मगर रहन सहन रइशों जैसे रखता ।
एक दिन माधुरी यूनिवर्सिटी से घर आती है तो कुछ अस्वस्थ्य महसूस कर रही जैसे ही घर पहुंती है देखती है एक आधुनिक वस्त्रों में लड़की मयंक के गले में बाहें डाल बैठी है। माधुरी को देख भी वैसे ही बैठी रहती है।।
माधुरी को बहुत गुस्सा आता है पत्नी के सामने गैर मर्द के गले लिपटी कैसी निर्लज्ज लड़की है ये, वो कहती हैं ?
कौन है ये, बैशर्म बेहया निर्लज्ज ?
मयंक जवाब देता है। तुम पैरों की जूती हो और ये मेरे सर का ताज है ये सविता रानी मेरी महारानी ।
माधुरी गुस्से से तमतमा कहती हैं तुम्हारी मति इतनी खराब हो गई है, पत्नी को तो सीता के रूप में देखना चाहते हो और खुद ये सविता बबीता की खोज में रहते हो ।
फिर मयंक वो उस लड़की को गले से लिपटा कहता है तुम जैसी औरत को न ताज चाहिए न तख्त और चाहिए वो है एक झापड़।
और पलट कर माधुरी के गाल पर दो चार झापड़ मार देता है।
उस लड़की के जाने के बाद मयंक माधुरी से कहता जल्दी से खाना बना दो उसको बहुत भूख लगी है। माधुरी कोई ध्यान नहीं देती। बड़बड़ाता हुआ मयंक भूखा ही सो जाता है।
दूसरे दिन सुबह माधुरी कुछ ताप सा महसूस कर रही होती हैं उसका सर दर्द से फटा जा रहा होता है। पूरी रात वो सो नहीं सकी थी वर्तमान भविष्य के जंजाल में फंसी ताना बाना जो बुनती रही सोचती माता-पिता को सारी बातें बता दे मगर पिता जो हार्ट के मरीज कुछ समय पूर्व ही सर्जरी भी हुई सोचकर बताना सही नहीं समझती माँ भी अस्वस्थ्य ही रहती ज्यादा चिंता करने वाला स्वभाव उसका तो सोचती खामख्वाह और बीमार हो जायेगी ज्यादा दुखी करना सही नहीं है वैसे भी बेटी का दुख माता-पिता को तोड़कर रख देता है ।
सोचती है खुद ही इस समस्या का समाधान खोजेगी । क्योंकि मयंक के साथ ज़िन्दगी बिताने की सोचना खतरे से खाली नहीं है। जो परायों के सामने पत्नी की बेइज्जती करे उसे पैरों की जूती कहे भला ऐसे पति के साथ लम्बा रास्ता तय करने का कोई मतलब ही नहीं बनता जितना जल्दी उसको अपना रास्ता अलग करना होगा।
तब तक मयंक उठ जाता है और माधुरी से कहता उसे जल्दी अच्छा सा खाना बना कर दे । माधुरी अनसुनी कर देती है मयंक चिल्लाने लगता है।
सुना नहीं तुमने माधुरी मैंने कहा खाना बना कर दो
माधुरी कोई जवाब नहीं देती गुस्से से मयंक आसपास की चीजे उठा कर उसके ऊपर फैंकने लगता है।
फिर अपनी बैल्ट उठा माधुरी पर एक के बाद एक प्रहार करता है। माधुरी ज़ख्मी होकर अपना फोन उठाये दरवाजे से बाहर भाग दरवाजे की कुण्डी बन्द कर देती है।और पड़ोस में रहने वाले अपने संगी लैक्चरार को सब बताती है उनसे सहायता मांगती है। उसके जख्म चोटों के निशान पड़ोसी जल्दी से पूलिस को सूचना देते हैं। सभी लोग एकत्रित होकर पूलिस के आने पर मयंक की अच्छे से धुनाई करवा देते हैं।
माधुरी कहती हैं मयंक मैंने तुम्हारी माँ के कहने पर उनकी बात का मान रख तुमको बहुत बर्दाश्त किया तुम्हारे साथ अलग रहने चली आई, मैंने तुमको सुधारने की बहुत कोशिश भी की लेकिन तुम लातों के बुत हो बातों का तुम पर कोई असर नहीं होने वाला ये मैं अच्छी तरह समझ गई हूं तभी मैंने ये फैसला लिया।
तुम जैसे लोग जो औरत को पैरों की जूती समझते हैं भूल क्यों जाते हैं? तुम घर की नौकरानी नहीं जीवन संगिनी बना कर लाये हो जो तुम्हारे वंश को आगे बढाती है तुम्हारे परिवार को चलाती है। तुम्हारा जीवन संभालती है। अगर तुम उसको पैरों की जूती बना कर सीने से लगा कर रखोगे तभी जीवन का आनंद प्राप्त कर सकोगे।भूलो मत पत्नी पति का आधा अंग होती है घर की मालकिन होती, पैरों की जूती नहीं
माधुरी गुस्से से तमतमाते हुए कहती हैं ।
आज तो जैसे वो अपने वश में ही नहीं थी अंगारों की तरह मयंक पर बरस पड़ी…
तुम जैसे इंसानों के सर पर जब तक चार जूतियां नहीं मारी जायेंगी तब तक तुम्हारे होश ठिकाने नहीं आने वाले घर की लक्ष्मी के पैरों की जूती जब तक सर पर नहीं पड़ती कैसे पता चलेगा कितनी तकलीफ़ होती है। ये तुमको मैं अब समझाऊंगी ।
माधुरी के घाव और मारपीट के निशान देखकर पूलिस मयंक को गिरफ्तार कर लेती है। उसको जेल की सलाखों के पीछे डाल देती है। एक बार माधुरी को इंस्पेक्टर जेल आने को कहता है कुछ जरूरी कागजात हस्ताक्षर करने के लिए माधुरी फोन करके अपने माता-पिता राममोहन और रामप्यारी और सास ससुर दीनदयाल और पार्वती जी को पूरा विवरण देती है। सब जेल पहुंच जाते हैं। दोनों परिवार
उसका पूरा पूरा साथ देते हैं। मयंक अपने को छुड़वाने की सबसे प्रार्थना करता है मगर मयंक के पिता दीनदयाल जी उसको सलाखों के पीछे बंद देखकर कहते हैं बेटा तुम्हारी करनी तुम्हारे कर्म तुम्हारे सामने है। जिनको भुगत कर ही तुम्हारे होश ठिकाने आयेंगे। आशा करते हैं अब तुम सुधरने की कोशिश करोगे।वो क्रोधित आवाज में कहते हैं –
“ तुम्हारी गलत विचार धारा कि औरत पैरों की जूती वह तुम जैसे मर्द के लिए है जो खुद को पांव समझता है और औरत सर का ताज उस मर्द के लिए है जो खुद को बादशाह समझता है “ ।
मयंक की माँ पार्वती लज्जित होकर कहतीं हैं जब तुम अपनी धर्म पत्नी को पैरों की जूती समझते हो तो तुम्हारे लिए तो अपनी माँ बहन भी वो ही होंगी ।
मयंक को जेल की सलाखों के हवाले करके सभी घर वापस जाते हैं। माधुरी को कुछ समय बाद महाविद्यालय के हाॕस्टल में ही रहने की व्यवस्था मिल जाती है। फिर वो चैन की जिंदगी बसर करने लगती है।
वास्तव में महिलाओं को पैरों की जूती समझने वालो अगर संसार को सुखी सम्पन्न बनाना है तो भूलकर भी पत्नी को पैरों की जूती न समझकर ही उससे प्रीत करें । समाज में सकारात्मकता की जरूरत है -“ पैरों की जूती संज्ञाओं में इंसान की बीमार भावना,नारी से बुरा व्यवहार वर्ताव वाली मानसिकता के दर्शन होते हैं।जिसे बदलकर सकारात्मक रूप अपनाना चाहिए उसके लिए आवश्यक है कि घर की सभी नारियों को एक दूसरे और स्वयं का सम्मान करना होगा और बच्चों को जिसमें विशेष कर घर के लड़कों को नारी सम्मान करना सीखना चाहिए “ ।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया