निमित्त मात्र – सुनीता मिश्रा

प्लेटफार्म पर लगभग दौड़ते हुए वे अपने  ट्रेन के कोच नम्बर एस  पांच तक पहुंचे ,गाड़ी ने रफ्तार ले ली थी।गाड़ी की उसी रफ्तार मे वे  दरवाजे की रॉड पकड़ लटक गये ।उनका  एक पैर पायदान पर और दूसरा पैर हवा मे लहरा रहा था।उनकी पीठ पर पिट्ठू बैग लदा था ,उसका वजन और गाड़ी … Read more

संयुक्त परिवार –  डॉ अंजना गर्ग

“शैलेश आज तुम फैसला कर लो मैं इस चकचक में अब और नहीं रह सकती।”कोमल ने अपने पति को लगभग चीखते हुए कहा। “कम्मो, धीरे बोल कोई सुन लेगा।”      ” सुनने दो । मैं इतनी भीड़ में कभी नहीं रही। चपाती बनाने लगो तो 2 घण्टे चपातिया बनाते जाओ,  कपड़े धो तो दोपहर हो जाए … Read more

“वो  लड़का उसके घर क्यों आता है ?” – दीपा साहू “प्रकृति”

मैंने तो कभी नहीं सोचा कि उस लड़की ने उस लड़के का हाथ क्यों पकड़ा है? अरे वो एक आदमी उसके घर रोज क्यों आता है?वो तो अकेली है उसका न पति है न पिता न भाई ।पर आस-पास की औरते बस ऐसे ही निंदा रस में मग्न रहती है। क्यों ?  कभी समझ ही … Read more

जब किसी दूसरे का दुख अपना सा लगे – मुकेश कुमार

राधिका का परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार था उसके ससुर बैंक में मैनेजर से रिटायर हुए थे और पति बिजली विभाग में नौकरी करते थे।  शादी से पहले राधिका भी प्राइवेट स्कूल में टीचर थी लेकिन शादी के बाद उसने अपना जॉब छोड़ दिया था।  राधिका की इकलौती बेटी भैरवी का कल जन्मदिन था उसकी मां … Read more

बड़ा भाई हो तो राम जैसा  – पुष्पा पाण्डेय

देवरानी और जेठानी दोनों ने मिलकर चावल की तीन बोरियों का कंकड़-पत्थर चुनकर एक दिन में ही रख दिया। संयुक्त परिवार था, एक साथ ही खरीद कर आ जाता था। सस्ता भी पड़ता था। राम और श्याम दोनों भाई का परिवार मिलकर एक साथ ही रहता था। दोनों भाईयों का प्रेम मोहल्ले में उदाहरण था। … Read more

समाजसेवा – सुषमा चौरे

“आज भी मेट्रो के रुकते ही वो लड़का दौड़कर आया और एक सीट पर बैठ गया “ ये उसका रोज का नियम था ,वर्माजी उसी मेट्रो से रोज़ ऑफिस जाते थे । वो रोज़ उस लड़के की ये हरकत देखते थे। वो लपक के चढ़ता सीट के लिए ,पर कुछ ही मिनटों में वो अपनी … Read more

बेबसी….. शुभांगी

आज नीला का मन बहुत उद्गिन था, जितनी तेजी से हाथ चल रहे थे उससे भी ज्यादा तेजी से मन के विचार चल रहे थे, अलमारी साफ़ करते हुए 25 साल का रिश्ता धराशाई हो गया, राघव कभी नीला से सीधे मुहँ बात नहीं करता था एक शो पीस की तरह इस्तेमाल करता था या … Read more

निस्वार्थ प्रेम – शुभांगी

बड़ा भाई पिता तुल्य आज मंजुल बहुत खुश था उसके भाई का विवाह था, अंशुल उससे 15 साल छोटा था,  गीता अपने देवर की बार बार बलैया ले रही थी, विवाह बहुत अच्छे से सम्पन्न हुआ और रूपाली बहु बनकर उनके घर चली आयी । लेकीन सिर्फ 5 दिन बाद ही अंशुल रूपाली को लेकर … Read more

इंकलाब – अरुण कुमार अविनाश

इंकलाब जिंदाबाद। जिंदाबाद — जिंदाबाद। आवाज़ दो – हम एक है। शाम के पाँच बज रहें थे – विशाल मैदान में विशाल भीड़ को नेता जी सम्बोधित कर रहें थे – नारें लगवा रहें थे। ” प्यारे दोस्तों,  जिस तरह कम्पनी की नीतियां है – अधिकारियों का कर्मचारियों के प्रति रवईया है – काम बढ़ता … Read more

अनजानी फ्रेंड रिक्वेस्ट – डा. पारुल अग्रवाल

अवनी एक ज़िंदगी से भरपुर लड़की हुआ करती थी कभी पर आज पता नहीं क्यों हर बात पर चिड़चिड़ी होती जा रही है,आँखो के नीचे काले घेरे,किसी से ना बात करना,ना कहीं जाने की इच्छा करना बस किसी तरह अपने घर के थोड़े बहुत काम निबटाना फिर बस जाकर अपने रुम में बैठ जाना यही … Read more

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