“कोई जरूरत नहीं” – राम मोहन गुप्त
( बैरी पिया बड़ा रे बेदर्दी ) ‘अब बस भी करो, सुबह से लेकर शाम तक एक ही रट लगाए रहती हो… अब मुझ से नहीं होता, किसी को लगा लो।’ कहते-कहते समीर, सुनैना पर बरस पड़ा और क्यों न बरसता आये दिन सुनैना की एक ही रट सुनते-सुनते थक जो गया था वह। यूँ … Read more