एक सुबह – सुनीता मिश्रा

सुबह के छह बज रहे होँगे,दिसम्बर का महीना,रजाई से निकलने के लिये हिम्मत बटोरनी पड़ती है।।जाग तो हम दोनों ही गये थे।पर उठे कौन।जो पहिले उठेगा वही चाय बनाएगा। पति पत्नी भले ही पूरी जिन्दगी लड़ते झगड़ते बिता दे पर बुढ़ापा सच्चे दोस्त की मानिन्द होता है।चलो आज बुढऊ को चाय बनाकर हम ही पिलाए।रजाई … Read more

मैं सज़ा दूंगी –  सुषमा यादव

,,, ,, कुछ समय की बात है,, मेरे घर में एक महिला खाना बनाने आती थी,, उसकी सबसे बड़ी खासियत ये थी कि वह अपनी बेटी को तो प्रायवेट स्कूल में पढ़ाती थी, और सब गांव वालों की सोच के विपरीत अपने एकलौते बेटे को मेरे सरकारी स्कूल में पढ़ाती थी,,, मैं उससे कहती, तो … Read more

सिसकियाँ – अनुज सारस्वत

“आह सुबक सुबक (सिसकियों की आवाज)” कंचनजंघा(हिमालय की एक चोटी का नाम) ने देखा यह आवाज कहाँ से आ रही है ध्यान दिया तो देखा पर्वतराज हिमालय की आवाज थी फिर वो बोली। “क्या हुआ दादा आज आप इतने व्यथित क्यों हों ?आज से पहले आपका रूदन नही देखा” हिमालय कराहते हुये बोला “बेटा अब … Read more

बारिश और छाता – सुधा जैन

हम दोनों पति पत्नी शाम को 7:30 बजे के करीब प्रतिदिन घूमने जाते हैं ।प्रकाश नगर की ओर करीब 2 किलोमीटर की दूरी होती है। दिनभर की व्यस्तता, मेरा स्कूल, इनका आफिस ,फिर शाम का खाना, संध्या प्रार्थना, फिर घूमने जाना, वहां पर दो तीन मित्रों का परिवार भी मिलता है ।आपस में हंसी, आनंददायक … Read more

  मेरी प्यारी डायरी – सुषमा यादव

एक दिन आलमारी साफ़ करते हुए मेरे हाथ बहुत सारी डायरियां लगी,, मैंने चौंक कर देखा, इतनी सारी ,,,, यहां,कब कैसे,,, मैंने साफ़ करते हुए अपनी  सबसे प्यारी डायरी को उठाया और खुश हो कर उसे माथे से लगाया ,, *** ये मेरी डायरी, तुझको देखा है पहले कभी,, ,,, डायरी ने पलकें झपकाई,, और … Read more

परिवर्तन – गीता वाधवानी

सेठ रायचंद मुंबई के बहुत बड़े हीरा व्यापारी थे। उनकी दो संताने थी। पुत्र अक्षय और पुत्री काजल। सेठ जी का बेटा अक्षय अपने पिता से कुछ अलग व्यापार करना चाहता था और काजल अभी पढ़ाई कर रही थी।      सेठ जी अपने बेटे के कारखाने के लिए शहर से बाहर किसी गांव में जमीन देखने … Read more

प्रीतिभोज – ऋतु अग्रवाल

   मेरे पापा मूलत: राजस्थानी है पर चूंकि लगभग 100 वर्ष पहले उनके दादाजी व्यापार के सिलसिले में दिल्ली आ गए थे तो हमें राजस्थानी व्यवहार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। जन्म से लेकर शिक्षा दीक्षा सब दिल्ली में ही हुई और पापा के बहुत सारे रिश्तेदार भी दिल्ली ही आ गए थे तो … Read more

डोर विश्वास के – किरण बरनवाल

जिंदगी क्या है, किस चक्रव्यूह  में फंसा कर कैसे निकालती है ,ये तो मानव मन कभी आकलन ही नहीं  कर सकता। टेढी मेड़ी पगडंडियों में ना जाने कितने लोग मिलते हैं , कितने बिछड़ जाते हैं । साथ रह जाती है …सिर्फ  यादें जो कभी रुला जाती है तो कभी होठों पर बारीक सी मुस्कान … Read more

तस्वीर – गरिमा  जैन 

मामा जी की पुरानी हवेली जहां उनकी शादी की सालगिरह पर मैं गया था। मैं आज भी नहीं भूल सकता हूं उनके बैठक में लगी वह तस्वीर। उस तस्वीर को देखते ही उससे खिंचाव सा महसूस होने लगा। मैं उसे देखता तो ऐसा लगता मानो आज ही बनी हो। रानी रूपमती की तस्वीर थी ।वह … Read more

प्रणय अपहरण – रवीन्द्र कान्त त्यागी

आजकल न जाने क्यूँ बचपन की यादों के गुब्बारे रह रहकर दिमाग में फट रहे हैं। कहते तो ये हैं कि  इंसान के आखिरी समय में ऐसा होता है मगर, तुरंत तो ऐसा एहसास नहीं हो रहा है। बात पचास साल से भी अधिक पुरानी है। बचपन में हम जोधपुर में रहते थे। हमारा मकान … Read more

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