जब भी मां का फोन आता वह एक ही बात कहती ” बेटा जल्दी आजा कब आएगा….? ” मैं कहता “हाँ माँ मैं जल्दी आ रहा हूं तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊं…? ” फिर मां कहती ” बेटा तू परदेस में कितनी मेहनत करता होगा सब कुछ है बस सिर्फ तेरी कमी है तू आजा “
34 वर्ष पहले अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर में अमेरिका आ गया था, और यहां पर सब कुछ व्यवस्थित करने में 4 वर्ष लग गए इंडिया नहीं जा पाया l इंडिया में भरा पूरा परिवार था, भाई बहन थे, मैं सिर्फ अपने परिवार के साथ अकेला यहां था, सब की बहुत याद आती थी, और सबसे ज्यादा मां की याद आती थी, मेरे यहां आने के 6 वर्ष बाद पिता जी का देहांत हो गया l आर्थिक रूप से सभी संपन्न थे, फिर भी मुझसे जितना ज्यादा से ज्यादा हो पाता था, मैं लगातार पैसे भेजता रहता था, मैंने मां को नया घर बनवा दिया, वहां पर वो बहुत ही खुश रहती थी, नौकर जाकर थे l
और दूसरे भाई बहनों के परिवार भी बिल्कुल पास पास में रहते थे l वह सब भी मां की बहुत सेवा करते थे, फिर सबसे बड़ी बहन जो हम सब भाई बहनों में बड़ी थी, इनके पति का देहांत हो गया l तो मैंने उनसे कहा कि तुम यहीं आकर मां के पास में रहो, और पैसों वगैरा की और किसी भी चीज की कोई चिंता मत करना आराम से खर्चा करो और खुश रहो l फिर सर्दियों में हम सह -सपरिवार इंडिया चले जाते थे, और मां के पास और सारे परिवार के साथ में रहते थे l सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था l फिर एक दिन पता चला कि मां को कैंसर है l बहुत से डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टरों ने यही कहा कि ” इनकी ‘ किमो ‘ नहीं हो सकती क्योंकि इनकी उम्र बहुत ज्यादा है,और कमजोरी भी बहुत है बस आप इनकी सेवा कीजिए, जितनी ज्यादा हो सकती है “l सेवा करने में परिवार के किसी भी सदस्य ने कोई कमी नहीं रखी, फिर छोटा भाई मां को अपने साथ अपने घर ले गया जो पड़ोस में ही रहता था, उसकी पत्नी और वो और परिवार के सारे लोग हर समय मां के पास रहते, माँ को कभी भी अकेला नहीं छोड़ते थे, नर्स भी दो टाइम आती थी, डॉक्टर भी घर देखने आ जाते थे,
करोना का कहर सारी दुनिया पर बरस रहा था और मां की हालत खराब होती जा रही थी, सब फ्लाइट्स भी बंद थी, मैं इंडिया भी जा नहीं सकता था, बस वीडियो कॉल हो जाती थी l माँ एक ही रट लगाए थी ” बेटा आ जा एक बार आकर मिल जा ” ईश्वर से प्रार्थना करती कि ” मेरे बेटे से मुझे मिला दे ” मां को हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया था, 15 दिन बाद माँ घर आ गई, बहुत ज्यादा कमजोर हो चुकी थी l मुझे यहां पर चेन नहीं था कि कैसे मां के पास जाऊं l
फिर दो वर्ष बाद फ्लाइटस का आना-जाना शुरू हुआ l एयरपोर्ट पर बहुत सारी औपचारिकताएं पूरी करके मैं मां के पास पहुंच गया l मां का दर्द देखा नहीं जाता था, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था, और कहीं भी आया गया नहीं बस मां के पास ही बैठा रहता था l बहुत ज्यादा डिप्रेशन में चला गया था, 25 दिन मां के पास रहने के बाद में वापस लौट आया l फिर मेरे आने के 40 दिन बाद मां का स्वर्गवास हो गया हो गया l और मैं मां का अंतिम दर्शन नहीं कर पाया, सिर्फ वीडियो पर ही मां को देखा था l अब मैं बहुत पछता रहा हूँ और सारी उम्र पछताता रहूंगा, कि काश मैं और रुक जाता, तो अंत समय में मां के पास होता, सारा परिवार था सिर्फ मैं ही नहीं था l
मौलिक एवं स्वरचित
# पछतावा
लेखक : रणजीत सिंह भाटिया