अरे यह क्या, दास बाबू “असिस्टेंट फार्मेसी ऑफिसर” बन गये…. गिरीश सर कहाँ गये?
अमित ने वहाँ खड़े चपरासी से पूछा..
गिरीश सर ने कोटा में ट्रांसफर ले लिया है, अभी 10 दिन पहले ही दास बाबू को प्रमोशन होने के बाद यह पोस्ट मिली है।
कोई नहीं, उनको मेरा यह कार्ड देकर कहना अमित आया है भोपाल से..अमित ने अपना कार्ड देकर दम्भ के साथ कहा।
चपरासी अमित का कार्ड लेकर दास बाबू के पास जाता है, मग़र थोड़ी देर में वह यह कहकर कार्ड वापस कर देता है कि दास बाबू आज व्यस्त हैं, कल आइये…
अमित इस बेइज्जती के बावजूद चपरासी के सामने धीमे से मुस्कुराक़र बोला कोई नहीं कल आता हूँ, और वहाँ के CMD एवम Dy. CMD से मिलकर दूसरे इंस्टीट्यूशन में वर्किंग के लिए चला गया।
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अमित सिप्ला फार्मास्यूटिकल कम्पनी का “इंस्टीट्यूशनल सेल्स मैनेजर” था जो कि भोपाल हेडक्वार्टर से पूरा मध्यप्रदेश कवर करता था, वह सिप्ला कम्पनी की तऱफ से “गवर्नमेंट इंस्टीट्यूशन सेल्स” का प्रतिनिधित्व करता था, आज वह जबलपुर विजिट पर था, इसलिए जबलपुर के “वेस्ट सेंट्रल रेलवे जोनल ऑफ़िस” में अपनी कम्पनी के टेंडर से सम्बंधित कार्य के लिए आया हुआ था।
अगले दिन पुनः अमित उस रेल्वे जोनल ऑफिस में जाकर दास बाबू के चपरासी को अपना विज़िटिंग कार्ड देता है, लगभग एक घण्टे तक तो उसे दास बाबू का कोई बुलावा नहीं आया, परन्तु इस बीच दास बाबू दूसरी छोटी छोटी दवा कम्पनियों के प्रतिनिधियों से मिलते रहे.. सिप्ला जैसी बड़ी कम्पनी के प्रतिनिधि को इस तरह बिठाकर रखना अमित को अजीब लग रहा था, उसे लगा कि दास बाबू शायद उससे अकेले में कोई सेटिंग करना चाहतें हैं, इसलिए उससे अकेले में बात करना चाहते हैं, मग़र आज भी चपरासी लगभग एक घण्टे बाद अमित को उसका कार्ड वापस करते हुये व्यंग्य से बोला, साहब आज बिजी है, कल आना…
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अमित का पारा चढ़ चुका था, मग़र क्या करता उसे अपनी कम्पनी के लिए जो इन्फर्मेशन चाहिये थी, वह “असिस्टेंट फार्मेसी ऑफिसर” की पोस्ट पर बैठा व्यक्ति ही दे सकता था, इससे पहले तो उसकी गिरीश बाबू से इतनी अच्छी सेटिंग थी कि वह गिरीश बाबू से फोन पर ही बात करके अपना सारा काम जबलपुर आये बगैर ही करवा लेता था, बदले में उन्हें कम्पनी के गिफ्ट्स और अपने स्टॉकिस्ट से कुछ न कुछ कमीशन दिलाकर उन्हें खुश रखे हुये था। उस समय दास बाबू सीनियर फार्मासिस्ट थे इसलिए अमित उन्हें कभी तवज्जों नहीं दिया करता था।
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अमित का जबलपुर का दो ही दिन का टूर था जब उसने अपने बॉस को बताया कि नये असिस्टेंट फार्मेसी ऑफिसर दास बाबू अभी व्यस्त हैं इसलिए वह उनसे नहीं मिल सका, तो उसके बॉस ने नाराज़ होते हुये कहा कुछ भी हो जाये, चाहे टूर एक दिन ही क्यों न बढ़ाना पड़े, तुम दास बाबू से मिलकर कम्पनी के उस विशेष काम को किये बिना नहीं आओगे..
लाचार अमित अपना टिकिट केंसिल करके दूसरे दिन सुबह 9 बजे से ही दास बाबू के चेम्बर के बाहर बैठ गया, दास बाबू उसके बाद ही अपने चेम्बर में आये थे, मग़र उसे देखकर अनदेखा करके चले गये..
अमित ने एक बार फिर से चपरासी को अपना विज़िटिंग कार्ड दिया और बैग से एक पेन निकालकर चपरासी से देकर बोला, जरा जल्दी मिलवा देना.. चपरासी खुश होकर पेन जेब मे रखकर बोला जी बिल्कुल सर…
मग़र दोपहर लंच तक दास बाबू ने अमित को अंदर नहीं बुलाया, जबकि इस अवधि में वह दूसरी छोटी छोटी दवा कम्पनी के प्रतिनिधियों से मिलते रहे। अमित समझ चुका था कि दास बाबू उससे नाराज़ हैं इसलिए वह उससे नहीं मिलना चाहतें, मग़र क्या करता, बॉस का इंस्ट्रक्शन था कि दास बाबू से मिलकर ही आना है।
हताश सा अमित दास बाबू के चेम्बर के बाहर ही प्रतीक्षा करता रहा, इस बीच लंच टाइम हो गया तो दास बाबू अपने चेम्बर से बाहर निकलकर लंच के लिये निकले…
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अमित अपना बैग और विज़िटिंग कार्ड लिये उनके पीछे पीछे भागकर बोला “Sir, Myself Amit From Cipla..”
जानता हूँ, दास बाबू ने कहा..और आगे बढ़ गये..
सर आप मुझे जानतें हैं तो दो दिन से मुझे मिल क्यों नहीं रहें थे, जबकि छोटी-छोटी कम्पनी के प्रतिनिधियों से आप बराबर मिल रहें थे, मैं आपके साथ गिरीश बाबू जैसी ही सेटिंग करना चाहता हूँ.. अमित ने वक़्त का पूरा फायदा उठाते हुये अपना दांव फेंका।
दास बाबू चलते चलते रुक गये और अमित से कहा, तुम्हारी यही आदत कि “चढ़ते सूरज को प्रणाम करना” कि वजह से मैं तुमसे नहीं मिलना चाहता, और मैं कोई गिरीश बाबू की तरह बिकाऊ नहीं कि तुम्हें नियमों के खिलाफ जाकर स्पोर्ट करूँ, जो छोटी छोटी कम्पनी के दवा प्रतिनिधियों से मैं आज मिल रहा हूँ, वह मुझसे तब भी मिला करतें थे, जब मै एक छोटा सा फार्मासिस्ट था, फिर सीनियर फार्मासिस्ट बनकर और अब असिस्टेंट फार्मेसी ऑफीसर बनकर मैं उनके लिए अपना व्यवहार क्यों बदलूँ।
जाइये अमित जी मैं नियमों को ताक में रहकर आपका कोई फेवर नहीं करने वाला, और जो नियमानुसार होगा, उसके लिए आपको मुझसे मिलने की आवश्यकता नहीं हैं, कहकर दास बाबू आगे बढ़ गये।
आज अमित को अपनी आदत “चढ़ते सूरज को ही प्रणाम करना” और दूसरों को ध्यान न देने की वजह से “पछतावा” हो रहा था।
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चढ़ते हुये सूरज को तो सभी प्रणाम करतें हैं, कभी हम बिना काम के भी किसी कार्यालय के अन्य सामान्य व्यक्तियों से यदि सिर्फ मुस्कुराक़र दो मिनट बात कर लें, तो कई बार ऐसे सम्बंध बन जातें हैं, जो पैसे देकर भी नहीं बन सकते।
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अविनाश स आठल्ये
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