पान की पेटी – सीमा सरदेशमुख बंगलोवाला : Moral Stories in Hindi

“निम्मी बेटा अंदर से मेरी पान की पेटी तो लाना”घर के आंगन में लगे आम के पेड़ के नीचे दादाजी खाट पर बैठे पेपर पढ़ रहे थे।पास में खेलती नमिता से उन्होंने कहा।

7 साल की नमिता  माँ बाबा के साथ छुट्टियों में दादा दादी के पास गाँव आई थी।

“जी दादाजी , अभी लाई।”कहती निम्मी अंदर दौड़ी।

दादाजी के बिस्तर के पास वाली मेज पर पीतल की छोटी सी पान की पेटी रखी थी।उस पेटी के अंदर चार कटोरियों में कत्था,चूना, सुपारी,लोंग इलायची रहते।कटोरियों के ऊपर एक प्लेट में गीले कपड़े में पान लपेट कर रखे होते थे।

“लीजिए दादा जी”निम्मी पेटी उठा लाई।

दादाजी पान बनाने लगे।निम्मी उन्हें ध्यान से देख रही थी।

उसने पूछा – “दादाजी ,आप पान क्यों खाते हो?”

दादाजी केवल हँस दिए।

“दादाजी जल्दी बताइए।अभी आप पान मुँह में दबा लोगे,फिर किसी बात का जवाब नही दोगे।”निम्मी ने तीव्रता से कहा।उसे डर था कि उसके प्रश्न से पहले अगर पान दादाजी के मुँह में चला गया तो जवाब के लिए प्रतीक्षा बहुत लंबी होगी।

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वो हमेशा ही देखती थी कि दादाजी पान मुँह में दबाने के बाद किसी भी बात का उत्तर केवल सर हिला कर देते थे।

निम्मी की बात ने ही दादाजी जो जवाब सुझाया।

वो मुस्कुराते हुए बोले – “निम्मी बिटिया रानी,तुम्हारी दादी बहुत बोलती हैं बहुत सवाल करती हैं, इसलिए मैं पान का बीड़ा मुँह में दबा लेता हूँ।फिर मुझे कोई जवाब नही देना पड़ता।मुँह बन्द। वो हँसने लगे।

निम्मी को उनकी बात भी समझ आ गई और उनका ये उपाय तो वो आजीवन नही भूली।

निम्मी के हाँथ से छूट कर कांच का गिलास टूट गया।

“निम्मी ध्यान से काम क्यों नहीं करती………..”माँ ने डांटना शुरू किया।

निम्मी मन ही मन सोची,”कहीं से पान लाकर माँ को खिला दूँ तो डांट से राहत मिले।”

स्कूल में शरारत करने पर टीचर ने डाँटा।

निम्मी के मन मे फिर वही विचार आया।

“टीचर के मुँह में कोई पान का बीड़ा दे दे”अपनी सोच पे ख़ुद ही मुस्कुराने लगी।

निम्मी कॉलेज जाने लगी थी।वो बस से कॉलेज जाती।एक दिन कंडक्टर के पास वाली सीट पर बैठी थी।कंडक्टर लगातार बोल रहा था।बस एक स्टॉप पे रुकी।सामने ही पान की दुकान थी।

“भैया, जाओ पान खा लो।यहां पान अच्छे मिलते हैं।”निम्मी बोली।

कंडक्टर उसकी बात पर केवल हंस दिया।बेचारा निम्मी की बात का अर्थ  कैसे समझता।वो क्या, कोई भी नहीं समझ सकता था।

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निम्मी को जिसकी भी बात बुरी लगती।जो भी ज़्यादा बोलता दिखता,उसके मन में पहला विचार यही आता कि इसके मुँह में पान का बीड़ा दे दे।

निम्मी विदा हो कर ससुराल पहुँच गई।सास भी मिली तो तेज़ बोलने वाली।अब तो उसे हर समय पान का बीड़ा याद आता।

एक दिन रात के खाने के बाद सभी लोग बैठे थे।सासुमा निम्मी के पति रवि से बोली,”आज कल मुझे गैस बहुत होती है।”

बस निम्मी को तो जैसे सुनहरा मौका मिल गया।वो तपाक से बोली,”माँ जी पान खाने से गैस नही होती।उसका चूना कैल्शियम की कमी की पूर्ति भी करता है।”

“रवि मेरे लिए पान ला दिया कर।”माँ जी ने कहा।

“अरे!पान लाने की क्या आवश्यकता।पान बनाने का सामान ले आओ। माँ जी को जब मन करेगा पान बना कर खा लेंगी।”निम्मी मन ही मन इतनी प्रसन्न थी मानों खज़ाना हाँथ लग गया हो।

रवि ने हामी भर दी।

अगले ही दिन निम्मी रवि के साथ बाज़ार से कत्था,चूना, पान सब ले आई और साथ ही बहुत ढूंढ कर छोटी सी पान की पेटी भी।

सासुमा बड़े चाव से पान खाती।कई बार तो निम्मी ही दो पान को मिला कर बड़ा पान का बीड़ा उन्हें खिलाती।

निम्मी ख़ुद सास बन गई थी। अक्सर बहु से कहा सुनी हो जाती।

आज सुबह ही से निम्मी पुराने सामान में कुछ खोज रही थी।

“क्या ढूंढ रही हो?”रवि ने पूछा।

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“कुछ नहीं, आजकल मुझे गैस बहुत होती है। माँ जी की पान की पेटी ढूंढ रही हूँ।पान बनाने का सामान ला देना।मैं भी पान खाना शुरू करूंगी।”ठंडी सांस लेते हुए निम्मी ने जवाब दिया।

*सीमा सरदेशमुख बंगलोवाला*

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