तन्वी स्टेशन पर बैठी थी ,अभी ट्रेन आई नहीं ,पापा कमलेश तन्वी के सामनों को ठीक करने के बहाने अपनी गीली आंखों को चुपके से पोंछ ले रहे थे ,तन्वी समझ रही थी पिता को उसका बिछोह दुख दे रहा ,उसने तो मना किया था पर पापा ने कहा था ,”तेरे सामने भविष्य पड़ा है तू जा अपनी डाक्टर की पढ़ाई कर और एक मुकाम पर पहुंच ,जहां तू हर तरह से सशक्त हो “
“पापा मै आपको अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहती हूं “
“पगली ,तुझे आत्मनिर्भर बनने के लिए पढ़ना जरूरी है ,भावुकता से जिंदगी नहीं चलती ,मै तुझे सशक्त देखना चाहता हूं “।
और कमलेश जी तन्वी के बाहर जाने की तैयारी करने में व्यस्त हो गए ,बिल्कुल उसी तरह सामानों की फेहरिस्त बना कर पैक कर रहे थे जैसे एक मां करती है ,तन्वी की आँखें भर आई ,मां का गुस्सा चरम सीमा पर रहता था ,पर पिता की ऊंची आवाज उसने कभी नहीं सुनी।
आज प्लेटफार्म पर बैठी तन्वी अन्मयस्क थी ,याद है जब पांच साल की थी तब मां ने अपने कैरियर के लिए पापा से लड़ाई कर हमेशा के लिए घर छोड़ दिया था ,तन्वी को भी छोड़ गई थी ,तन्वी मां के पीछे दौड़ी थी लेकिन मां ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा ।
हतप्रभ तन्वी को कमलेश जी ने सीने से लगा लिया था ,लोग कहते है पिता निर्मोही होता है लेकिन उसकी तो मां ही निर्मोही निकली ।
ट्रेन आने की सूचना सुनते है सब यात्री अपने सामानों के साथ खड़े हो गए , प्लेटफार्म पर ट्रेन लग गई ,तन्वी का सामान सेट कर कमलेश जी बैठ गए , सुबह दिल्ली पहुंच तन्वी को हॉस्टल में छोड़ रात की ट्रेन से वापस लौट आयें ,खाली घर उन्हें कचोटने लगा ,पर कुछ पाने के लिए कुछ त्याग तो करना ही पड़ता ।
तन्वी पढ़ाई के दौरान कभी कमलेश जी के पास आती तो कभी कमलेश जी तन्वी के पास चले जाते ,इसी तरह तन्वी की डाक्टर की पढ़ाई पूरी हो गई डॉ.तन्वी बन जब कमलेश जी के पास लौटी तो कमलेश जी अपने को रोक नहीं पाए ,अब तक का दुख दर्द अपना बांध तोड़ बह गया
आज तो बिटिया लौट आई पर कल को शादी के बाद फिर जुदा हो जाएगी ।
पिता को अपने सशक्त बाहों में ले तन्वी बोली ,”पापा मै अब सशक्त हूं और मुझे आपके सिवा किसी और की जरूरत भी नहीं है “
दिल्ली के बड़े अस्पताल में तन्वी ने कार्यभार संभाल लिया और कमलेश जी को भी साथ ले आई ,।व्यस्त होने के बावजूद तन्वी पिता का बहुत ध्यान रखती ।
एक अल सुबह इमरजेंसी केस आया ,ड्यूटी पूरी कर डॉ तन्वी घर जाने वाली थी ,नर्स से सूचना मिलने पर तन्वी रुक गई ,दो कारों की टक्कर से एक महिला बुरी तरह जख्मी थी, चेहरे के ज़ख्मों को साफ करने के बाद तन्वी को चेहरा कुछ पहचाना सा लगा ,वैसे भी जाने क्यों उसको इस महिला का स्पर्श कुछ अलग सा लग रहा था ,।
कुछ देर बाद महिला होश में आ गई ,तन्वी ने राहत की सांस ली ,घर लौट आई ,। अलमारी से आज बरसों पुराना एल्बम निकाली,मां के बालों को सफेद करके ,थोड़ा चेहरे पर लकीरें बना देखा , हां वो उसकी मां ही थी ,पर मां लोग पत्थर दिल नहीं होते,न वो मां नहीं है ,
वो तो एक कंपनी की चेयरमैन थी ….,एक कैरियर बनाने वाली महिला …..,पर मन उसी वहीं पर अटका था ,उसको अनमना देख कमलेश जी ने पूछा तो तन्वी ने सब बता दिया ।
“वो महिला बहुत कुछ मां जैसी है “
“तुझे पहचाना नहीं उसने “पिता के चेहरे पर असंख्य चिंता के साये उभर आए ।
पिता के गले में प्यार से हाथ डाल तन्वी बोली ,”मेरी मां भी आप हो ,पिता भी “।
अगले दिन तन्वी जल्दी ही अस्पताल चली गई ,वह महिला अब काफी ठीक थी ,उनको देख कर जाने लगी तो उन्होंने पूछा “क्या मै आपके माता- पिता नाम पूछ सकती हूं “
“,जी मेरी मां नहीं है ,मेरे पिता ही मेरी मां है “कठोर स्वर में बोल तन्वी वापस चली गई ,तनुजा आंखों में आँसू लिए चुप थी ।
पांच साल की ही थी बेटी , जब कैरियर के जुनून में वो पत्थर दिल हो गई थी,उसने पति और बेटी को छोड़ दिया था ।ऊंचे पद के गुरूर में गृहस्थी उसे जी का जंजाल लगती थी ,उम्र के ढलान पर अब अकेलापन उसे डसने लगा ,
उसकी सहेलियां ,उसके पुरुष मित्र,जो कहते थकते नहीं थे ,”तनुजा तुम घर के लिए बनी नहीं हो तुम तो कॉरपेट जगत के लिए बनी हो ,तुम्हारा रूप ,तुम्हारा ज्ञान तुम्हे अलग रखता है” ,वही अब उसे छोड़ कर जा चुके है ।वो नितांत अकेली है ।जिस कैरियर के लिए मातृत्व की भी छोड़ दिया उन्होंने ,वही कैरियर अब उन्हें शूल की भांति चुभने लगा ।अब वापसी संभव नहीं है ।
अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद तनुजा डॉ तन्वी से मिलना चाहा लेकिन उसने इंकार कर दिया ,उसका पता अस्पताल वालों ने देने से मना कर दिया ।
तनुजा खामोशी से चली गई ,जानती है उसका अपराध क्षमा के काबिल नहीं है ,गलती तो उसने की है ,सजा भी उसे भुगतना होगा ।
पर तन्वी को देख आंखे तृप्त हो गई , कमलेश जी ने बेटी की परवरिश बहुत अच्छी की है ,तभी अपने अस्पताल में अपने व्यवहार के लिए प्रसिद्ध है ।
कॉरपेट जगत का चमकता सितारा अपनी धूमिल रोशनी लिए खड़ा था ,उसके कर्मों और उसकी जिद्द ने आज उसे तन्हा कर दिया । वो कैरियर के सोपान पर थी लेकिन किस मूल्य पर …??
काश समय रहते उसने अपनी गलतियां सुधार ली होती ,क्यों वो भावनाओं से शून्य हो वो पत्थरदिल की हो गई थी ।पर अब तो उम्र के इस पड़ाव पर कुछ नहीं हो सकता ।
तन्वी के सपनों में शहर का वो स्टेशन जिसकी पटरियों पर बैठ वो मां की वापसी का इंतजार करती थी ,आज खत्म हो गया ,अब उसे किसी की वापसी नहीं चाहिए ,वो अपनी दुनिया में अपने पिता के साथ खुश है ।
समय अपनी गति से चल रहा था , तन्वी को शादी के कई प्रपोजल आए लेकिन एक कड़वे अनुभव की वजह से तन्वी शादी नहीं करना चाहती थी ,कमलेश जी के जोर देने पर उसने अपने साथ काम करने वाले डॉ. शुभम से शादी की सहमति इस शर्त पर दी कि उसके पिता उसके साथ ही रहेंगे।
कमलेश जी ने उसे बहुत समझाया ,
“ऐसा कहीं होता है ,पिता बेटी की ससुराल में रहे “
“होता है या नहीं होता है ,मुझे इससे कोई मतलब नहीं ,मै आपको छोड़ कर नहीं रह सकती “
शुभम के माता – पिता ने भी कमलेश जी से कहा ,
“आप भी साथ रहेंगे तो बच्चे अपने काम पर ज्यादा ध्यान देंगे।”
हार कर कमलेश जी को शुभम के घर में शिफ्ट होना पड़ा ,।
एक दिन देर रात मोबाइल बज उठा , किसी ने खबर दी तनुजा जी नहीं रही ,उन्होंने अपनी सारी संपति अपनी बेटी के नाम कर दी है ,।
पिता की सहमति से तन्वी ने वो सारी संपति ,एक एन. जी .ओ. को तनुजा जी के नाम से दान कर दी ।
तन्वी ने मां को माफ कर दिया ,लेकिन क्या वो समय जो चला गया वापस आ सकता ,
तन्वी पहली बार मां बनी तो अस्पताल से छुट्टी ले ली ,,बेटी को वो बिल्कुल अकेला न छोड़ती,वो तनुजा नहीं ,कमलेश जी बनना चाहती थी ,जो निस्वार्थ भाव से अपनी बेटी के लिए पूरा जीवन लगा दिए ।
—- संगीता त्रिपाठी