ये क्या मां…?
इतने सारे पुए क्यों बना रही हो…? आजकल कौन खाता है ये सब….? सभी लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते हैं….और तुम हो कि पुए पे पुए बनाए जा रही हो…!
बेटी भैरवी ने मां शैली से शिकायती भरे अंदाज में कहा….।
अरे बेटा… वो रामदीन काका , दूध वाले भैया , दाई नौकर , सब्जी वाली…. सभी को तो त्यौहार का इंतजार रहता है ना…. उन्हें साल भर इंतजार रहता है बेटा , इन त्योहारों का…. और उन्हें खाने वाने से कोई परहेज भी नहीं है……भगवान उन्हें सब कुछ खाने की अनुमति दे रखे हैं …..शैली ने अपना पक्ष रखते हुए कहा…!
मां , तू भले ही बड़े शहर में रहती है पर तेरे दिमाग से वो गांव वाली छोटी मानसिकता अभी तक नहीं निकल पाई है…!
क्या कहा…? छोटी मानसिकता..?
अरे तू इतनी ” पत्थर दिल ” कैसे हो गई बिटिया रानी…?
ओहो मां… मैं पत्थर दिल… और तेरा दिल…. बड़ा मुलायम है ना….
अरे मां तू बेवकूफ है…. आज के जमाने में कौन इतना मेहनत करके बना बना कर लोगों को देता है…. यदि मदद करनी ही है तो पैसे दे देती…!
ऐसी तीखी बातें लगभग हर त्यौहार पर भैरवी और शैली के मध्य हो ही जाती थी…. हालांकि शैली भैरवी को समझाने की भरपूर कोशिश करती..।
सोच के देख भैरवी….. उन्हें त्यौहार मनाने के लिए , अच्छे-अच्छे पकवान बनाने के लिए ….अपने कितने जरूरी जरूरतों को दफन करना पड़ेगा….!
यदि त्यौहार के बहाने ही उनकी थोड़ी मदद हो जाए तो हर्ज क्या है….?
और मेरे मायके में तो मैंने बचपन से यही देखा है …और जो देखा है वही अपने घर में भी करने की कोशिश करती हूं…..!
शैली एक मध्यम वर्गीय परिवार की बिटिया थी… जो गांव में पली बढ़ी थी सारे संस्कार , रीती रिवाज , परंपरा को बखूबी जानने , समझने व मानने वाली लड़की शैली की शादी भी एक प्रतिष्ठित परिवार में हुई थी…!
……. एक दिन ……….
मीठी मंईया ….मीठी मंईया.. हां यही आवाज देते हुए कोई दरवाजा की कुंडी बजा रहा था……डाइनिंग टेबल पर बैठे सभी लोग आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह देखने लगे…. अचानक शैली हड़बड़ा कर कुर्सी से उठते हुए ….एक पल के लिए ….मीठी मंईया अपना घरेलू पुकारू नाम सुनकर सुखद आश्चर्य से भौचक्की रह गई….!
आनन फानन में दरवाजा खोला… सीधे पल्लू में गांव की भोली भाली महिला…. हाथ में एक दर्जन केला लिए हुए खड़ी थी ….दरवाजा खुलते और शैली को देखते ही उस महिला के मुख से एक बार फिर अनायास ही निकल गए….मीठी मंईया…!
झारखंड के कुछ हिस्सों में बहन बेटियों के नाम के बाद मंईया लगाना आदर सूचक माना जाता है…!
भगवती काकी आप…?
मीठी मंईया सुनने के लिए शैली के कान तरस गए थे… शादी के बाद जैसे बहुत कुछ छूट गया…वैसे ही पुकारू नाम भी लगभग समाप्त ही हो गए थे…!
मीठी मंईया …मीठी मंईया की आवाज ने सारे घर के सदस्यों को आश्चर्य में डाल दिया था….मीठी शैली के मायके में पुकारू नाम जरूर था पर ससुराल में उसे सब शैली के नाम से ही पुकारते थे…. हालांकि सबको ये मालूम था कि शैली का पुकारू नाम मीठी है…!
आज भगवती काकी के मुंह से अपना पुकारू नाम सुनकर शैली ने सुखद आश्चर्य से पूछा….
भगवती काकी आप यहां…
हां मीठी मंईया….बड़ी मुश्किल से घर पूछत पूछत आइल ही..(पूछते पूछते आई हूं )
दरअसल शैली के मायके में एक नाउन (भगवती ) का आना जाना लगा रहता था….शादी ब्याह के अलावा जब भी वो आती.. मालिश करना… पैरों में आलता लगाना जैसे कई काम कर दिया करती थी…।
मोहल्ले की ही एक आंटी उसे अपने भाई की शादी में यहां लेकर आई थी…. जबसे भगवती काकी को पता चला की मीठी मंईया का ससुराल यहीं पर है .. वो आने को और उत्सुक हो गई थी..!
अरे , आइए ना काकी …अंदर आइए ….भगवती काकी केले से भरा पॉलिथीन शैली को पकड़ाते हुए बोली…मीठी मंईया इ रख लीहूं…( ये रख लीजिए )…
अरे इसकी क्या जरूरत थी काकी…?
भगवती काकी को सोफे पर बैठाकर शैली अंदर गई… तब तक डाइनिंग टेबल पर बैठे सभी लोगों की उत्सुकता और बढ़ गई थी… पति समीर शायद झांक कर देख चुके थे…. काकी के हाव भाव और पहनावा देखकर उन्हें लगा…. शायद शैली के गांव की चाची होंगी…!
शैली ने धीरे से सभी को भगवती काकी के बारे में बताया भगवती काकी बड़े स्नेह से खुश होते हुए बोली….. बहुत बड़े घर में ब्याहल हई मंईया, खुश तो होईबे करब…(बहुत बड़े घर में शादी हुई है आप खुश तो होंगी ही )
हां काकी …बहुत खुश हूं…. शैली को एक बार तो लगा… आज सारे बंधन तोड़कर एक बार खुलकर बोल ही दूं….
हां काकी ….बहुत खुश हूं… धन दौलत , भौतिक सुख सुविधा सब कुछ है ….पर वो गांव वाला …प्यार , परवाह , भावनाएं , अपनापन…बहुत याद आती है काकी….बहुत याद आती है…!
काकी वहां पर घर में सब कैसे हैं…?काम करने वाली नौकरानी से लेकर दूध वाले भैया तक सबका हाल समाचार शैली ने पूछ डाला ….अंदर गई ….काकी के लिए खाने की थाली लगाकर काकी को बैठाया…!
भगवती काकी भी कम थोड़ी ना थी… अरे मीठी मंईया पहिले गोडवा ( पैर) में आलता तो लगवा लिहुं (लीजिए)…!
शैली को आलता लगाए बिना भोजन को हाथ तक नहीं लगाया भगवती काकी ने…।
अब तक भैरवी समेत सभी काकी से मिलने पहुंच चुके थे…भगवती काकी ने भैरवी की और इशारा करते हुए कहा… आंउ मंईया रउरो आलता लगा दीहूं ( आइए आपको भी आलता लगा दूं )
अरे , नहीं .. नहीं…. भैरवी ने इंकार तो जरूर किया… पर भगवती काकी के स्नेह भरे व्यवहार , अपनत्व… यहां आने की खुशी …देखकर आज भैरवी को समझ में आ रहा था….
मम्मी का उन सबके लिए …प्यार , त्योहार पर सौगात ये कितना मायने रखते हैं…!
कुछ देर बाद भगवती काकी जाने की इजाजत मांगी..
शैली ने रखी हुई साड़ी में से एक साड़ी और कुछ रुपए देते हुए कहा…. काकी इसे आप पहनिएगा जरूर…..बड़े प्यार से भगवती काकी प्यार भरा उपहार लेकर विदा लीं…!
भगवती काकी के जाने के बाद भैरवी ने कहा…. मां मुझे माफ कर दे…. मैंने हमेशा तुझे गांव वाली समझ कर न जाने कितनी बार तिरस्कार किया है पर….
” छोटी जगह के कुछ मूल्यों का कोई मोल नहीं होता…. वो अनमोल होते हैं मां …..आज मैंने देख लिया….”
प्लीज मां…..तू दुनिया के किसी भी कोने में चले जाना…. पर अपनी परंपरा , रीति रिवाज …इन नैतिक मूल्यों को कभी मत भूलना …..जिस तरह निभा रही है ना मां …वैसे ही निभाते रहना…!
अब मुझे भी इनकी अहमियत समझ में आ रही है मां…
अरे भैरवी….तेरा पत्थर दिल तो अब मुलायम हो चला… और वो मेरी गांव वाली मानसिकता…..शैली ने भी मजाककिए अंदाज में भैरवी को छेड़ा…
शैली सोच रही थी …जो चीज मैं वर्षों से नहीं बता पाई, नहीं सीखा पाई आज भैरवी ने वो सब महसूस कर , सीख लिया …. भैरवी को उन संस्कारों की अनिवार्यता का ज्ञान हो गया…! जो शहरों में…आज के हमारे युवाओं में धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं…!
समीर भी घर में खुशनुमा माहौल देखकर प्रसन्न हो रहे थे…!
मीठी मंईया …नाम के आवाज की कल्पना कर कर के शैली मुस्कुरा देती…
कितना अपनापन महसूस कराता है हमारा…” निक नेम “
निक नेम से पुकारने वाला व्यक्ति कोई करीबी ही होगा इसका एहसास भी तो कराता है हमारा … ” निकनेम “
निक नेम सुनकर शैली रोमांचित हो रही थी …और हो भी क्यों ना…
वहां गांव में …कामवाली , नौकर चाकर, दूध वाले , धोबी , नाई सभी तो अपने ही होते हैं……सभी से भैया , फूफा , काका , मामा ….जैसे आत्मीय रिश्ता भी तो होता है..।
भगवती काकी के जाने के दो दिनों के बाद ही शैली के मायके से मां का फोन आया…..
मीठी बिटिया …तूने ऐसी क्या आवभगत कर दी है भगवती की …?पूरे गांव में तेरा और तेरे घर की तारीफ करते नहीं थक रही है ….जहां भी साड़ी पहन के जाती है बिन पूछे ही बताती है ….मीठी मंईया के घर की साड़ी है…!
ओह मां… ये तो भगवती काकी का बड़प्पन है…. इतना ही तो कह पाई थी शैली…!
साथियों …आज के आधुनिक युग में छोटी-छोटी मान्यताएं ,संस्कार… लुप्त हो रहे हैं….नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है ….रिश्तो की अहमियत कमजोर पड़ती जा रही है ….आवश्यकता है हमें इसे संजोकर रखने की…. ये हमारी अमूल्य धरोहर है…!
( स्वरचित,मौलिक,सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय : # पत्थर दिल
संध्या त्रिपाठी