कांती देवी ने नहा धोकर पूजा पाठ कर यानी अपने नित्य निजी काम निपटा कर आँगन में आती तेज धूप का आनंद लेने के लिए वहीं फर्श पर चटाई बिछाकर लेट गईं और मस्त हो भजन गुनगुनाने लगी। तभी उनकी बहु रत्ना दनदनाते हुए अपने कमरे से बाहर आई और कांती जी से बोली मांजी, मांजी सुनिए आपको तमीज मैनर्स है की नहीं,
मैंने कितनी बार बोला ये भिखारियों की तरह फर्श पर चटाई बिछाकर मत पसरा करें मगर आपके कानों में तो जूं तक ही नहीं रेंगती अरे बैठना ही है तो, अन्दर से कुर्सी ले आइये, उसमें बेठ जाये आप है की हमारे स्टेट्स का बिल्कुल ख्याल ही नहीं रखती है।
आप अच्छे से जानती है आस पड़ोस में मेरी कितनी धाक है। मोहल्ले की सभी अमीर प्रतिष्ठित महिलाओं के संग मेरा उठना बैठना है। अनेक मेरी किटी पार्टी से जुड़ी हुई है। आप के रंग-ढंग देखकर कितनी बेइज्जती होती कितने ताने सुनने को मिलते मुझे आपको बताने का कोई फायदा तो है नहीं ?
कांती देवी ने बहु रत्ना को पल भर नजर उठाकर देखा फिर बोली अरे बहु फर्श पर चटाई बिछाकर मैं बैठी हूँ लोग मुझे कहेंगे जो कहना है तुमको इससे क्या मतलब ? तुम थोड़े न बैठी हो तुमको बैठना तो बैठो कुर्सी में, कौन रोक रहा ?
देखो बहु जब मैं तुम्हारे मामले में कोई दखल अंदाजी नहीं करती तो तुमको भी चाहिए मेरे किसी भी मामले में दखल अंदाजी न करो। कितनी अच्छी घूप निकल रही है
आज जरा चैन से सुस्ताने दो जाओ यहां से, अपने काम देखो कुछ काम न हो तो सहेलियों के साथ बतिया लो अगली किटी पार्टी के लिए योजना बना लो । बहु रत्ना भी सासूमां की बातें सुनकर खिसियाती, बड़बड़ाती पैर पटकते अन्दर चली गई।
कांती देवी ने एक लम्बी हुंकार भरी…हूं म्ह म्ह.. चली मुझे प्रतिष्ठा का मतलब समझाने मेरे फर्श पर बैठने से इसकी बेइज्जती होती खुद को देखे किटी के बहाने क्या अर्धनग्न होकर घूमती रहती ऐसी ये खुद ऐसी मौहल्ले की इसकी सहेलियां बदन भर में ढंग के कपड़े नहीं होते इनके,
ब्लाउज पहना या कतरा लटकाया सारा बदन का प्रदर्शन करती फिरती घूटनों से ऊँची स्कर्ट मेम बनी फिरती हिन्दी तो ठीक से बोलनी नहीं आती इंग्लिश में करती गिटर पिटर पता नहीं जैसे विलायती मेम हो ।
और ये अपनी बहु इस रत्ना की तो बात ही क्या करें ?
साल हुआ नहीं विवाह को अभी कौन कहेगा इसे नई बहु ..
जब निकलती अपनी किटी पीटी के लिए.. ओह..अब कुछ बोलकर मुंह खराब करना ही होगा।
बड़ी आई मुझे धोस जमाने वाली कल की छोकरी अकल की कच्ची नासमझ कहीं की ।
और अब अन्दर जाकर कौन सा चूपचाप बैठ जायेगी मेरे बेटे को फोन लगा रही होगी लगी होगी भड़काने में दो की चार बनाने में रोज रोज का तमाशा बना दिया इसने किसी न किसी बात पर आ जायेगी रोज उलझ जायेगी प्रतिष्ठा का बहाना लेकर राम जाने क्या है इसके मन में ? आखिर चाहती ही क्या है ये, कांती देवी बड़बड़ाती करवट लेकर लेट गई और खुले आसमान को निहारने लगीं ?
देर शाम बेटे नरेश ने जैसे ही घर में कदम रखा चिल्लाती आवाज में बोला- माँ कहां है आप?
कांती देवी अभी बाजार से सब्जी भाजी लाकर थकान मिटाने के लिए पलभर लेटी ही थीं बाजार जाना भी जरूरी ही था वरना सुबह बेटे के ऑफिस जाने के लिए ब्रेकफास्ट लंच के लिए सब्जी न होने पर बहु ने तमाशा खड़ा कर देना था
ये नहीं वो नहीं घर है या जंजाल कुछ है भी यहां, क्या बनाऊं ? कुछ हो तो बनाऊं वगैरा वगैरा… उसकी किचकिच से बचने के लिए कांती देवी सब्जी भाजी दो चार दिन की एकत्र कर रखती घर में ।
बेटे के चिल्लाने की आवाज सुनकर कांती देवी एकदम बिस्तर से उठकर बाहर आ गई बोली अरे बेटा आ गया ऑफिस से आज जल्दी आ गया।
हाँ आ गया अब आने वाने की बात तो करो मत ‘माँ आप, बस ये बताओ आप को तमीज वमीज शर्म वर्म है की नहीं अरे भई मैं सरकारी नौकरी पर हूँ एक इज्जत दार क्लर्क हूँ मेरी अपनी इज्जत अपनी मर्यादा है अड़ोस-पड़ोस में नाम है मेरा और आप है कि ये जो नीचे तबके के छोटे लोग हैं उनके साथ उठती बैठती हो ।
रत्ना बता रही थी आप बात बात पर उसके मुंह लगने लगती हो और ये अड़ोस-पड़ोस के जो नीचे तबके के लोग हैं उनके साथ जाकर घन्टों घन्टों बैठ जाती हो ‘माँ आपको समझना चाहिए अब हम बड़े लोग हो गये है ऊंचे लोगों के साथ हमारा उठना बैठना होता है रत्ना भी बड़े बड़े ऊंचे सोसायटी के लोगों से सम्पर्क रखती है।
अब ऐसे में आपका इन नीचे सोसायटी लोगों से सम्बन्ध रखना शोभा नहीं देता है। आपको हमारी इज्जत, रूतबे का थोड़ा तो ख्याल रखना चाहिए। आप अपने कपड़े देखें सूती साड़ी में घूमती रहती हो रत्ना ने आपको कितनी सुन्दर सुन्दर रेशमी साड़ियां लाकर दी है आपको उनको पहनना चाहिए।
कांती देवी बेटे नरेश की बातें सुनकर पहले तो उसे आश्चर्य चकित हो उसका मुंह देखती रह जाती है
नरेश थोड़ा ऊँची आवाज में कहता है ऐसे मेरा मुंह क्या देख रही हो ? सींग उग आए हैं क्या मेरे ?
कांती देवी कहती हैं बेटा सींग तो नहीं उगे लेकिन मैं देख रही हूँ इंसान कितनी जल्दी बदल जाता है। अरे तुम कैसे अपने दिन इतनी जल्दी सब भूल भाल गये हो । इंसान की फितरत ही ऐसी पैसे आये नहीं पल्ले अपने को हाई सोसाइटी ऊँचे दर्जे का साबित करने लगे जाता है ।
कांती देवी रूआंसी होकर कहती हैं- बेटा नरेश तुम कैसे भूल सकते हो तुम किस मां के बेटे हो तुम्हारे पिता तुम्हारे बचपन में ही हमें छोड़कर चले गए थे। मैंने किन परिस्थितियों में तुमको पाल पोसकर बड़ा किया है। मै तुम्हारे पिताजी के परलोक वासी होने इस संसार से जाने के बाद उनकी जगह फैक्ट्री में मजदूरी करती और जिनको तुम नीचे तबके का कह रहे हो “मत भूलो की ये भी मेरा परिवार है “।
इन सबने उस गरीबी के दौर में हमारी बहुत मदद की है और ये ऊंचे हाई सोसाइटी के लोग जिनको तुम कह रहे हो मदद करना तो दूर हमारी गरीबी का मजाक बनाया करते थे। कभी रहमत की नजर से देखना भी मुनासिब नहीं समझा इन लोगो ने,
दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाने वाले इन लोगों से सम्बन्ध जोड़ना तो दूर मैं बात करना भी पसंद नहीं करती हूँ । जब जरूरत होती थी तब इन नीचे तबके के लोगों के पास ही मैं तुमको छोड़कर जाती और वो भी तुमको अपने बच्चों की तरह ही देखभाल करते संभालते
दुख सुख में रात रात साथ जागते। इन नीचे तबके के लोगों के बच्चों के साथ ही रहकर तुम पले बड़े हुए हो यही कारण है जब आज उनको मेरी जरूरत होती है मैं उनके दुख सुख में शरीक होना नहीं भूलती।
तभी कांती देवी जी की बहु रत्ना बीच में बोल पड़ती है लेकिन मांजी कान खोलकर सुन लीजिए अगर आपको हमारे साथ रहना है तो ये सब नहीं चलेगा अगर आपने ऐसे लोगों से दोस्ती रखनी है…ऐसा कीजिए आप उनके ही साथ
जाकर रह लीजिए हम आपको अपने साथ नहीं रख सकते। हमारी बहुत बदनामी होती है जब आप इन लोगों के साथ उठती बैठती है। अरे उठना बैठना…उनके साथ रह-रह कर उनके ही गुण अपनाती जा रहीं हैं। जहां देखो वहीं भिखारियों की तरह पसर कर बैठ जाती है।
फिर वो अपने पति राकेश की तरफ मुंह करके कहती हैं अरे क्या बताऊं कल की ही बात है कल जब मैं अपनी सहेलियों के सामने शर्म से पानी-पानी ही हो गई जब यें बस्ती के बच्चों को सीने से लगा दुलार रहीं थी और वो भी इनके पैर छुए जा रहे।
फिर सासूमां की तरफ देख कहती हैं – मांजी आपने कभी सोचा है कल हमारे भी बच्चे होंगे और आपको ऐसे लोगों से घुलते मिलते देखेंगे तो उन पर कितना गलत प्रभाव पड़ेगा…नहीं नहीं हमें नहीं रखना आपको अपने साथ बहु रत्ना ने दो टूक जवाब दे दिया।
बहु रत्ना की बातें सुनकर कांती देवी बोली मुझे तुम्हारी बुद्धि पर तरस आता है।
माना की तुम कल की आई हुई हो सभी बातों से अज्ञान हो
लेकिन बेटा नरेश तुम तो सब जानते हो ।
तुम कैसे भूल रहे हो… ?
जिनको तुम झुग्गी वालों के बच्चे कह रहे हो न, इनके माता-पिता की सिफारिश मदद से ही नरेश बेटा तुमको सरकारी दफ्तर में नौकरी मिली है। इनके पिता वहां चपरासी का कार्य किया करते थे। उन्होंने ही मेरे कहने पर कह सुनकर इसको अल्पकालिक कार्य दिलवाया इसकी नौकरी तो बाद में पक्की हुई है शायद इसने तुमको कुछ नहीं बताया है तुम क्या सोच रही हो ?
ये अपने ही बल पर यहां तक पहुंच गया अरे बच्चों मुझे ही पता है इसे यहां तक पहुंचाने में किस किस का कितना योगदान रहा और मुझे कितने पापड़ बेलने पड़े हैं। आज तुम मुझे सिखाने चले हो किस के साथ रहना है किसके साथ नहीं रहना। इतनी भी खुदगर्जी ठीक नहीं। इंसान हैं तो इंसान की तरह रहना तुम सीखों मुझे मत सिखाओ समझे तुम दोनों…
और हाँ बहु अभी तुम क्या कह रही थी जरा एकबार फिर से तो कहना “मुझे तुम्हारे साथ रहना है तो “…
अरी बहु मै तुम्हारे साथ कहां रह रही हूँ .. बल्कि तुम मेरे साथ रह रहे हो तुम दोनों अपनी खुदगर्जी में ये तक भूल गये ये जहां तुम रह रहे हो ये मेरा घर है मेरा अपना मेरी अपनी मेहनत का आशियाना इसे मैंने अपने खून पसीने से खड़ा किया है। इतनी बेवकूफ नहीं हूँ..अभी तुम्हारे नाम नहीं किया मैंने जो तुम मुझे इससे बेदखल कर दोगे।
अब सुन लो कान खोलकर तुमको मेरे साथ रहना है तो रहो वरना चली जाओ अपने पति के साथ दूसरे मकान में। मुझे तुम्हारे जाने का कोई अफसोस नहीं होगा क्योंकि मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं है। अपनी जिन्दगी बिताने के लिए समझदारी संवेदना और सादगी को मै समझती हूँ मैंने महसूस किया है।
माँ कांती देवी की बातें सुनकर बेटा नरेश और बहु कांती बहुत लज्जित होते हैं।और उनको अच्छे से समझ आ जाता है वो दोनों कितने गलत थे ये मकान तो माँ का ही है जिस पर वो अधिकार जमा रहे थे। अब अगर अलग जाकर रहते हैं तो तनख्वाह का बड़ा भाग मकान के किराए में ही चला जायेगा ।
नरेश अपनी पत्नी रत्ना से कहता है देखो रत्ना माँ सही कह रहीं हैं उनकी जिंदगी वो जिस तरह चाहें उसे जीना चाहें मै कैसे भूल गया आज मैं जो हूँ मां की ही बदौलत हूँ ? सच में उन्होंने बहुत कठिनाई परिश्रम से मुझे यहां तक पहुँचाया ।
पति की बातों से रत्ना को भी गलती का अहसास होता है वैसे भी उसके पास बात मानने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह जाता । इसलिए वो सासूमां कांती जी से पैरों पर गिरकर माफी मांग लेती है।
कांती जी कहती हैं बच्चों मेरा तुम्हारे सिवाय और है भी कौन ? तुमको अपनी ग़लती का अहसास हो गया। यही बहुत बड़ी बात है मेरे लिए। बहु रत्ना तुम मेरे घर की बहु हो इस घर की जिम्मेदारी बागडोर आगे तुमको ही संभालनी है।
याद रखो इंसान की एक जिद एक बहकावा रिश्ते निगल लेता है। बेटा मुझे ग़लत मत समझना आज जमाना उस मोड़ पर है जहां रिश्ते पैसो के बिना दो कदम भी नहीं चल सकते मैंने नरेश के पिता के दुनिया से जाने के बाद अकेले रहकर बहुत कुछ सीख लिया है। अपने जीते-जी अपनी सम्पत्ति संचित पूंजी औलाद के या किसी दूसरे के हाथों में सौंपना बुढ़ापे को संकट में डाल सकता है।
अब बच्चों जब तक मैं हूँ मुझे मेरे तरीके से जीने दो बाद में सब तुम्हारा ही है जैसे चाहे वैसे रहना । हाँ एक बात फिर दुबारा कहे देती हूँ ये नीचे तबके के लोग जिनको तुम कह रहे हो न “ मत भूलो की ये भी मेरा परिवार है “ मेरी जरूरत पर साथ चलने वाला परिवार साथ खड़े रहने वाला परिवार। मैं कभी भी किसी के अहसान को जीते जी नहीं भूला सकती
कांती देवी ने फिर बहु बेटे की तरफ देखा और मुस्कुराकर आँगन में चटाई बिछाकर लेट गई और खुले आसमान को निहारने लगीं।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
#मत भूलो की ये भी मेरा परिवार है