नन्हा चीकू – पूनम सिंह  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : नन्हा चीकू जैसा कि नाम से स्पष्ट है- नन्हा चीकू कोई एक छोटा बच्चा है। जिसकी उम्र लगभग 7-8 वर्ष के आसपास है। वह बहुत ही नटखट चंचल है। वह अपने माँ रेनू, और पिता सतीश वर्मा के साथ रहता है। अपने परिवार के साथ वह बहुत खुश है और खुशी-खुशी मौजमस्ती करते हुए अपने माता-पिता के साथ रहता है ।उसका परिवार गाँव छोड़कर  शहर में बस गया है। चीकू को गाँव के बारे मे कोई जानकारी नहीं है, क्यों कि उसके माता- पिता गाँव जाते ही नहीं। उसके पिता गाँव से रोज़ी- रोटी कमाने के लिए शहर मे आकर बस जाते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं। 

उनके गाँव निहालपुर में उनका छोटा भाई एवं उसका परिवार रहता है। चीकू के दादा- दादी का निधन उसके पिता के बचपन में ही हो गया था, इसलिए चीकू अपने दादा-दादी के बारे में कुछ नहीं जानता था। 

चीकू के पिता रोडवेज में नौकरी करते थे, जिसके कारण वे सुबह जल्दी घर से निकल जाया करते थे। घर में केवल चीकू व उसकी मम्मी ही रहते थे। चीक अब स्कूल जाने लगा है। हर रोज अपनी माँ के साथ स्कूल जाता था।फिर धीरे-धीरे वह अकेले ही स्कूल जाने लगा।स्कूल में  उसके सब नये- नये दोस्त बन गये।

 एक दिन चीक स्कूल से आ रहा था, तभी वह सड़क पार करने के लिए खड़ा हो गया। बार-बार सड़क पार करने की कोशिश करने  लगा लेकिन, वह सड़क पार नहीं कर पा रहा था। वह डर रहा था कहीं कोई गाड़ी टक्कर न मार दे ।तभी वहाँ खड़े एक बुजुर्ग दादा जी की निगाह उस पर पड़ी और वह उसके पास आ गए। प्यार से  बोले – बेटा डरो नहीं, मैं बच्चा पकड़ने वाला व्यक्ति नहीं हूँ।

  मेरा हाथ पकड़ो और चलो मै सड़क के उस पार छोड़ देता है।

 चीकू पहले तो डरा फिर बार- बार बुजुर्ग दादाजी के कहने पर मान गया और उनका हाथ पकड़कर सड़क पार किया।  

 वे बुजुर्ग प्यार से उसके सिर पर हाथ – रखकर उसे खूब प्यार किए और आशीर्वाद भी दिए।

 चीकू के लिए ऐसा प्यार, जीवन में पहली बार मिला था। वह बड़ा खुश होता है। और कहता है दादाजी आपको खूब धन्यवाद! आपने मुझे सड़क पार करवाया और खूब प्यार किया, इसके लिए भी|

 अब मै घर जाता हूँ, मेरी मम्मी मेरा राह देखती होंगी ‘कल फिर मिलूँगा’। बाए बाए दादाजी।

यह कहकर वह अपने घर आ  जाता है और माँ से  खुश होकर बताता है कि – ” माँ आज मुझे सड़क पार करने में बहुत डर लग  रहा था, लेकिन एक बूढ़े दादा जी ने आकर मेरा प्यार से हाथ पकड़ा और मुझे सड़क पार करवाया , खूब प्यार भी किया और आशीर्वाद दिया।

 माँ ने प्यार से चीकू से कहा! बेटा जब अकेले हो तब सड़क पार करते समय दोनो तरफ देखकर हाथ देकर सड़क पार किया करो। 

ठीक है माँ ऐसा ही करूँगा।

 कई दिनों तक वही बुजुर्ग दादा जी उसे सड़क पार करवाते, प्यार से गले लगाते , ढेर सारा आशीर्वाद देते साथ ही उसे खाने के लिए चॉकलेट भी देते।अब यह दिनचर्या रोज की हो गयी थी।

 चीकू अब रोज आकर खुशी-खुशी अपनी मम्मी को सारी बातें बताता । अब यही  चीकू की बुर्जुग दादाजी के साथ दिनचर्या बन गयी।

एक दिन दादा जी चीकू को अपने घर ले जाते हैं और उसे उनकी पत्नी सरला देखकर बड़ी खुश हो जाती हैं और उसे गले लगाकर खूब प्यार करती हैं। जो देखकर चीकू को बड़ा अच्छा लगता है। सरला जी उसे उसकी पसन्द का खाना बनाकर अपने हाथों से खिलाती हैं। यह सब देखकर चीकू को उनसे बड़ा लगाव हो जाता है। वह उन बुजुर्ग दम्पत्ति से बड़ा घुल-मिल जाता है।

 वह घर आकर अपनी माँ को यह बताता है कि -“माँ मै आज उन बुजुर्ग दादाजी के घर गया था।  वो लोग बड़े अच्छे हैं, मुझे बहुत प्यार करते हैं।मैं भी उन्हें बहुत प्यार करता है। माँ चलो उनसे आपको मिलवाता हूँ। 

माँ को अपने बेटे की बात  सुनकर उन बुजुर्गों से मिलने की उत्सुकता जगी। आखिर उन्हें भी जानना था कैसे लोग हैं ।उन्होंने चीकू से कहा चलो कल मैं चलूँगी मिलने । 

बच्चा खुशी से उछलने लगता है । यह बात अपने  पिता को भी बताता है। किसी तरह रात बीतती है। 

जैसे ही सुबह हुई तैयार जोकर वह अपने माता-पिता को लेकर बुजुर्ग श्याम जी के घर पहुँच जाता है। और अपने माता-पिता का परिचय श्यामजु तथा सरलाजी से कराता है। सभी एक दूसरे से मिलकर बड़ा प्रसन्न होते है।

 रेनू , सरला जी से उनके बच्चों के बारे में पूछती है, तब सरला आँख में आँसू लेकर उदास हो जाती हैं।

 वह रोते हुए बताती हैं कि वे निःसन्तान दम्पत्ति हैं। उनकी अपनी कोई औलाद नहीं है।उनके कान तरस गए हैं माँ शब्द सुनने को । 

 जानती हो बेटी- “औरत तब पूर्ण होती है, जब वह माँ बनती है।और माँ बनना दुनिया का सबसे बड़ा मुश्किल व सुखदाई क्षण है।”

सरला जी को रेनू को  बताती  हैं कि  उनका आँचल एक नन्ही  जान को छिपाने के लिए वंचित रहा तथा आँगन में कभी किलकारी नहीं – गूंजी। मैं बाँझ की बाँझ रह गयी बेटी।

  रोते हुए आगे कहती हैं कि मै बच्चे के लिए किस- किस अस्पताल नहीं गयी, कहाँ- हाँ मत्था नहीं टेका, कहाँ- कहाँ मन्नते नहीं माँगी, सभी देवी- देवता तक पूज लिए पर फिर भी भगवान प्रसन्न नही हुए, न जाने – मेरी पूजा में क्या कमी रह गयी कि मेरी झोली नहीं भरे । तब से मेरा भगवान से भरोसा ही उठ गया है।कोई देवी -देवता नहीं होते सब पाखंड है, छलावा है।तबसे हमने पूजा- पाठ सब बंद कर दिया है।

 रेनू , सरला जी को अम्मा कहकर उनका आँसू पोछती है और कहती है अम्मा जी अब आप रोइये नहीं, हम सब हैं न आप ही के बच्चे हैं। हम आपसे रोज मिलने आएँगे।आप हमारे बुर्जुग माता- पिता हैं, आप दोनों के साथ हमारा रिश्ता बन गया। हमारा बेटा भी आप लोगों के साथ कितना घुलमिल गया है। ऐसा लगता है आप लोग उसके सगे-दादा-दादी हैं।

 यह बात रेनू के मुँह से सुनकर सरला जी बहुत खुश होती हैं। और उन तीनों को ससम्मान विदा करती हैं।कुछ साड़ी और कुछ गहने देकर विदा करती हैं। 

रेनू उपहार लेने से मना करती है। इस पर सरला जी कहती हैं देखो बेटी हमने तुम्हे अपनी बेटी माना है इसलिए यह सब तुम्हें लेना ही पड़ेगा। आखिर तुम्हीं तो हो मेरी आँख की तारा कोई दूसरा नहीं। तुमने हमे माँ कहा है। अब हमारा माँ बेटी का रिश्ता है। 

रेनू बोलती है -ठीक है माँ आप इतना कह रही हैं तो मैं यह उपहार रख लेती हूँ।

उसके बाद चीकू और उसके माता- पिता तीनों वापस घर आ जाते हैं।

घर आकर रेनू सतीश से कहती हैं क्यों न हम उन दोनो बुजुर्ग माता- पिता को अपने साथ रख लें। हम दोनों को माँ- बाप मिल जाएंगे और चीकू को जान से ज्यादा प्यार करने वाले दादा -दादी | 

इस पर चीकू के पिता कहते हैं कि रेनू ” तुमने तो मेरे मन की बात कह दी। मैं भी रास्ते भर यही सोचता रहा पर तुमसे कहने की  हिम्मत न कर सका।पर अच्छा हुआ तुमने कह दिया।

 चलो उन्हें भी बेटा-बहू और पोता मिल  जायेगा। मुझे भी माता-पिता का प्यार क्यों कि बचपन मे ही मेरे सिर से माता-पिता का साया उठ गया था। माँ – बाप के स्नेह के लिए मैं तरसता रहा ।

दूसरे दिन  सतीश बुजुर्ग श्याम और सरला के घर जाता है तथा उन्हें सारी बात बताकर अपने साथ रहने को कहता है। 

वे दोनों सतीश की बात मान जाते है। और उनके साथ रहने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि उन्हें, बेटा-बेटी पोते का प्यार मिल रहा है।

।श्याम जी  सरला से बातें करते हुए कहते हैं -“आज के जमाने मे इतने अच्छे लोग कहाँ मिलेंगे ? जो हम जैसे बुजुर्ग को अपने साथ रखने को तैयार हैं। आज के जमाने में लोग अपने बुजुर्ग माता- पिता को साथ नहीं रखते ऐसे में ये लोग बड़े ही नेक व दिलदार हैं। “

 सतीश घर आकर रेनू को बताता है कि वे बुजुर्ग माता-पिता हमारे साथ रहने को तैयार हो गये हैं। 

रेनू कहती हैं हमारे बुजुर्ग ही हैं जो हमारे बच्चों को अच्छी परवरिश और अच्छा संस्कार देते हैं। हम जहाँ थक कर, हार कर बैठ जाते है वहाँ आगे का रास्ता यही दिखाते हैं। हम क्यों भूल जाते हैं कि बुजुर्ग पुराने हैं, बेकार नहीं, वे हमारे अमूल्य धरोहर है। अपने पोते-पोतियों को हमसे ज्यादा लाड प्यार करते हैं। हमारे बच्चों के पहले दोस्त यही बुजुर्ग होते हैं और बुजुर्गों के आखिरी दोस्त यही बच्चे होते हैं।फिर क्यों उनसे यह अधिकार छीन लिया जाता है ?

यही बुजुर्ग उन्हें अपने कंधे पर बैठाकर पूरी दुनिया दिखाते हैं। उन्हें नैतिकता व संस्कारों का पाठ पढ़ाते हैं। यही बुजुर्ग ही हमे बोलना सिखाते हैं। दुनिया से अच्छे बुरे का ज्ञान कराते है। हम उनके एहसानों को भूल क्यों जाते हैं ? 

हमारे बुजुर्ग बोझ नही आशीर्वाद है, संस्कारों की खान है। घर- आँगन के तुलसी -नीम हैं।अनुभवों के गहरे सागर है। उनके पास हर समस्या का निवारण  है, इसलिए घर मे बुजुर्ग का होना जरूरी है। एक कहावत है – ‘जिनके घर बूढ़ नहीं उनकी नवका डूबी।’ 

सतीश  कहता है सही कह रही हो रेनू । न जाने कैसे लोग हैं, जो अपने बुजुर्ग माता- पिता को वृद्धाश्रम मे छोड़ आते हैं या घर में ही उन्हें एक किनारे कर देते है। माँ- बाप बड़े भाग्य से मिलते हैं ।जिनके सिर पर माँ बाप का हाथ होता है, वह दुनिया का सबसे ताकतवर व्यक्ति होता है। घर का में बुजुर्ग का होना बिल्कुल माथे पर तिलक के होने जैसा होता है। बुजुर्गो  के हाथ में लाठी जरूरत होती है वो कमजोर नहीं होते हैं। परिवार के लिए लाठी के सहारे की तरह होते हैं। हमे जीवन जीने का रास्ता बताते है।

रेनू कहती है सतीश को कि सही कह रहे हैं आप- जब हम घर पर नहीं होते तो यही बुजुर्ग हमारे बच्चों की देखभाल करते हैं, तभी हम बाहर सुकून से कार्य करते हैं।बच्चों को पालने के लिए हम आया तो रख सकते हैं परंतु आया हमारे बच्चों को उतनी अच्छी परवरिश नहीं करेगी  और न ही उतना अच्छा संस्कार देगी। आज यही कारण है कि अधिकांश बच्चे संस्कारविहीन होते हैं जा रहे हैं। जरूरत है हमारे बच्चों को अपनों का प्यार व संस्कार मिले। यह तभी सम्भव है जब हम बुजुर्गों का सम्मान करेंगे।यह बुजुर्ग ही  हमारे घर की शोभा होते है। 

       जिस प्रकार एक सूखा पेड़ हमे फल नहीं देता , पर लकड़ियाँ देता है, उसी प्रकार हमारे बुजुर्ग कोई काम न करें, पर हमारे बच्चों की अच्छी परवरिश वही करते हैं एक अच्छा संस्कार भी वही देते हैं। दादा-दादी के बीच प्ले बढ़े बच्चों में एक अलग ही संस्कार झलकता है।बुजुर्ग उस वह वृक्ष के समान है, जब वह हरा भरा रहता है, तो वह छाया,  फल व पत्ती देता है और सूख जाने पर उसकी लकड़ी भी हमारे काम आती है। 

 सही कह रही हो रेनू -जो बच्चे बुजुर्गों के साथ अमानवीयता करते है, उन्हें अपना नजरिया बदलना चाहिए और बुजुर्गों को प्यार, मान व सम्मान देना चाहिए। यही हमारे बड़े बुजुर्ग जीवन रूपी मकान के आधार स्तम्भ हैं। उनमें जीवन का अनुभव और ज्ञान सागर की तरह गहरा है। उनके प्यार, दुलार, वात्सल्य की छात्र छाया में रहकर बाल-बच्चे संस्कारी बनते हैं। बुजुर्गों के मार्गदर्शन में पूरा परिवार फूलता-फलता है। आज हमारा परिवार भी पूरा हो गया। चीकू को उसके दादा-दादी मिल गये। हम दोनों के माता- पिता और श्याम जी सरला जी को एक पूरा परिवार ।

इस प्रकार आज उनका परिवार पूरा हुआ और सभी खुशी -खुशी एक साथ रहने लगते हैं। एक अपने सगे परिवार की तरह।

                            पूनम सिंह 

असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी

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