नमक की मिठास* – सरला मेहता

शेखर जी बेटी के सास ससुर ममता जी व अनुपम जी से हाथ जोड़ते हुए विनती कर रहे हैं, ” जी, अपनी ओर

से मैंने बेटी को सारे संस्कार दिए हैं। आज मैं जीवन भर की पूंजी आपको सौप रहा हूँ। बिन माँ की बेटी से कोई गलती हो तो माफ़ कीजिएगा। “

सासू जी, लावण्या को आगोश में भरते हुए बोली, “ आज से यह मेरी

बेटी है, आप निश्चिन्त रहे। “

रसोई के मुहुर्त होने के पूर्व वे बहू को समझाती है, ” देखो थकान के कारण सब लोग देर से उठेंगे, हम दोनों मिलकर जल्दी से सब काम निपटा लेंगे।तुम दाल सब्ज़ी बना लेना । हलवा,पुलाव,रायता आदि मैं फटाफट निपटा दूँगी। “

लावण्या घबराहट में सब्ज़ी में दुगना नमक व डाल में नमक डालना ही

भूल जाती है।

सभी बहू के हाथ का भोजन चखने को उत्सुक हैं। टेबल भी ऐसी सजी थी कि देख कर ही लार टपकने लगे। जैसे ही भोजन शुरू हुआ सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे। फूफाजी फट से बोल पड़े, ” सब्ज़ी तो नमक की बनी है और दाल से तो नमक नदारद है।”


सासू माँ बात संभालते हुए बोली, ” अरे ! मैं सास क्या बनी कि अभी से सठियाने लगी।मसालदानी में नमक नहीं था तो मैंने ही बहु को कहा कि नमक मैं डाल दूँगी और लावण्या को टेबल सजाने का कह दिया। “

बहू के ढलकते आंसू देख पल्लू से गाल पोछते हुए बोली, ” देखो आटा लगा है। “

पत्नी जैसे ही अनुपम जी को पूड़ी परोसने लगी, वे बुद्बुदाए, ” हलवे में तो तुम्हारे हाथ का स्वाद आ रहा है। ”  

मुस्कुराते हुए ममता  ने झट से बहू को आदेश दिया,” ससुर जी तुम्हारा सारा हलवा चट कर जाएगें, हमारे लिए शायद ही बचे। “

लावण्या, सासू माँ से भावुक होकर लिपटते हुए बोल पड़ी, ” माँ ! अब बस भी…पापा और हलवा लाऊं। “

उसी दिन से रिश्तों में नमक की मिठास ऐसी घुली कि लावण्या को इस नए घर में माँ व पापा दोनों मिल गए। वरुण एक कोने में खड़ा अपनी माँ की साजिश समझ कर मुस्कुरा रहा था।

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