विश्वनाथ और सावित्री बहुत खुश थे ।वृद्वाश्रम खोलने पर न जाने कितने बुजुर्ग लोगों ने दुआएँ दी थी उन्हें।
विश्वनाथ की मृत्यु के बाद सावित्री ने वृद्वाश्रम का कार्यभार सँभाल लिया ।
“माँ,मुझे कम्पनी एक वर्ष के लिए विदेश भेज रही है ,आप वृद्वाश्रम में रहें, आपको अकेलापन नहीं लगेगा “, कहकर गए बेटे का दस वर्ष बाद फोन आया,”माँ,मैं आ रहा हूँ ।”
उसके आने से उम्मीद बँधी तो थी पर ….
“माँ, घर बेचकर वापिस जा रहा हूँ, लीज़ा और तुम्हारा पोता वहाँ अकेले हैं “
सुनकर सावित्री पत्थर सी हो गई ।
सब कहते, ” विदेशी मेम ने बेटे के मन से माँ का प्यार मिटा दिया “
कुछ समय बाद सावित्री की बेटी भी यह कहकर विदेश चली गई कि मुझे भी भाई की तरह विदेश में नौकरी करनी है ।
जब भी शकुन्तला विमल को फोन करती , जवाब मिलता ,”माँ , लौटते ही मिलूँगा “
वृद्धाश्रम के लोग कहते,” चालाक बेटा ,माँ को छोड़कर विदेश चला गया । और बेटी को देखो, उसने भी माँ की तरफ से मुँह मोड़ लिया। “, भीतर से टूट चुकी शकुन्तला की तीन साल बाद मृत्यु हो गई।
मृत्यु की सूचना देने पर पता चला ,विमल को मरे तो ढाई साल हो गए । बहन भी भाई की बीमारी के कारण ही विदेश आई थीं ।
” कौन है ?” जिससे शकुन्तला पिछले तीन साल से फोन करती थी ।
“मैं डा० विमल का डॉक्टर। उनके मोबाइल में विमल की रिकार्डड आवाज है। विमल नहीं चाहता था कि उसकी बीमारी माँ को पता चले ।वो तो जीते जी मर जाएगी । उनके बाद उनका मकान और जमीन वृद्धाश्रम को दे दिया जाए।”
सबकी आँखे पश्चात्ताप के आँसुओं से छ्लक उठी ।
हृदय ग्लानि से भर गया…. उन्होने माँ-बेटे और बेटी के बारे में क्या क्या सोच लिया था।
समिधा नवीन वर्मा
Samidha Naveen Varma
सहारनपुर (उ० प्र०)