अब तक आपने पढ़ा की लक्ष्मी को संतान न होने के कारण उसकी सासू मां ने उसे घर से निकाल दिया और अपने पुत्र जगदीश का दूसरा विवाह लाजो से करवा दिया। लक्ष्मी घर छोड़ने के बाद अपनी आजीविका के साधन ढूंढते ढूंढते”मोतियों वाली अम्मा”के नाम से मशहूर हो गई। अब आगे-
एक बार लक्ष्मी किसी गांव में गई थी, तब उसने वहां लाजो को एक लड़के के साथ घूमते हुए देखा। उस गांव में लाजो का मायका था। लक्ष्मी ने किसी से कह कर लाजो को अकेले में मिलने के लिए बुलाया। लाजो आई, लक्ष्मी को देखकर हैरान रह गई और फिर दोनों गले लगकर बड़े प्यार से मिली। लक्ष्मी ने लाजो से उस लड़के के बारे में पूछा।
लक्ष्मी-“वह लड़का कौन था जिसके साथ तुम घूम रही थी?”
लाजो-“शादी से पहले मैं उसे पसंद करती थी। हम दोनों एक दूसरे के बारे में अपने घरवालों को बताने वाले थे पर तभी अचानक मेरी शादी घर वालों ने जगदीश से करवा दी और हम किसी से कुछ नहीं कह पाए। दीदी, आपके जाने के बाद मैंने एक बार अम्मा जी से कहा था कि हम जगदीश की जांच बड़े डॉक्टर से करवा लेते हैं। अम्मा जी ने पूरा घर सिर पर उठा लिया उनकी नजर में पति की जांच का मतलब है मर्द को नामर्द कहना। वह नहीं समझती कि कमी किसी में भी हो सकती है और उसे दवाइयों से दूर भी किया जा सकता है। सासू मां मुझे भी घर से निकालने की बात करने लगी और मेरे मायके वाले तो बहुत गरीब है। मुझे पूरी उम्र बिठाकर खिला नहीं सकते। जगदीश से भी मुझे कोई शिकायत नहीं है और मैं उनसे अलग भी होना नहीं चाहती। मैंने इस लड़के को सारी बात बताई तो वह मेरी मदद के लिए मान गया।”
लक्ष्मी-“लाजो, यह तो गलत है। यह कैसी मदद हुई भला, संतान के लिए जगदीश को तो धोखा मत दो। कोई बच्चा गोद ले लो।”
लाजो-दीदी, वह भी तो मां की सुनते हैं। मैं भी क्या करूं, उसी घर में रहना है मुझे और फिर क्या आपको लगता है कि सासू मां बच्चा गोद लेने को मान जाएंगी। नहीं, वह कभी नहीं मानेगी।”ऐसा कहकर लाजो चली गई।
उसके बाद लक्ष्मी का मन उस गांव में नहीं लगा। आज बहुत बरस वह अपने गांव आई थी और उस आंगन को देख रही थी ,जहां बच्चे खेल रहे थे।
खंडहर में अकेली पड़ी हुई वह सिर्फ यही सोच रही थी कि मैंने हर रिश्ता ईमानदारी से निभाया। मेरे साथ यह सब क्यों हुआ, ईश्वर मुझे आपने संतान नहीं दी। मैंने तो आपसे यह आशीर्वाद नहीं मांगा था कि मैं दूसरों को संतान का आशीर्वाद दूं। खाली झोली वाली मैं दूसरों को औलाद होने का आशीर्वाद देती फिरती हूं। हे ईश्वर! मुझे देख कर क्या तुम्हारा ह्रदय नहीं फटता। यह सब सोचते सोचते ना जाने कब उसकी आंख लग गई और फिर सुबह वही औरतों का मेला, वही समस्याएं ,वही आशीर्वाद।
समस्याएं सुनते सुनते शाम हो गई और लक्ष्मी ने औरतों से अगले दिन आने को कहा। अंदर जाकर बैठने के लिए चादर बिछाई और घड़े में से पानी लेकर पीने ही जा रही थी कि पायल की आवाज आई, छम -छम ,छम -छम। लक्ष्मी ने बिना देखे कहा-“देखिए, अब कल आइएगा, मैं बहुत थक गई हूं।”
ऐसा कहकर वह पलटी तो देखा कि एक छोटी सी प्यारी सी सुंदर गुड़िया लगभग 2 साल की, उसकी तरफ ठुमकते हुए आ रही है। उसे देखकर लक्ष्मी खिल उठी और उसे गोद में उठाकर उससे बातें करने लगी।”अरे मेरी प्यारी सी गुड़िया, आप कौन हो ,किसके साथ आई हो, केला खाओगी।”
तभी एक आवाज आई-“ये मेरे साथ आई है, मेरी बिटिया है और इसका नाम है छाया।”
आवाज की दिशा में देखते ही लक्ष्मी भौचक्की रह गई, सामने जगदीश खड़ा था। लक्ष्मी ने तुरंत उसकी तरफ अपनी पीठ कर ली।
जगदीश ने कहा-“मुझे पता है, तुम लक्ष्मी हो। लाजो ने मरने से पहले हमें सब सच बता दिया था। अपना सच भी और तुम्हारा भी।”
लक्ष्मी उसकी तरफ पलटी ।उसकी निगाहों में अनगिनत सवाल दिखाई दे रहे थे। दोनों वही बिछी चादर पर बैठ गए और जगदीश ने बताना शुरू किया-“मेरे और लाजो के तीन बच्चे हैं। बड़े बेटे की सच्चाई लाजो ने मरने से पहले बता दी थी। उसके बाद हमारा एक बेटा और बेटी छाया ने जन्म लिया। लाजो ने माफी भी मांगी थी।
बड़े पोते को पाकर अम्मा जी बहुत खुश थी और लाजो को घूमने फिरने की छूट भी मिल गई थी। अम्मा जी को बच्चे के साथ व्यस्त करके हम दोनों घूमने के बहाने शहर में डॉक्टर के पास जाते थे और अम्मा जी को भनक भी नहीं लगती थी। इलाज करवाने के बाद लाजो का और मेरा एक बेटा हुआ और उसके बाद छाया। छाया के समय जब लाजो गर्भवती थी तब वह सीढ़ियों से गिर गई थी और उसे शायद आभास हो गया था कि वह अब बचेगी नहीं। उसने अम्मा जी को और मुझे पहले बेटे की सच्चाई और तुमसे मुलाकात की सारी बातें हमें बता दी थी।
तब उसे लेकर अम्मा जी को पल भर के लिए भी चैन नहीं आया है। रात दिन यही कहती रहती है कि निर्दोष लक्ष्मी को मैंने घर से निकाल दिया। उसे कहीं से ढूंढ लाओ तो मैं माफी मांग लूं। रात रात भर अम्मा जी को नींद नहीं आती ,भूख भी नहीं लगती। कहने को तो वह तीनों बच्चों को संभाल रही हैं लेकिन उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। सारा सारा दिन खुद से बातें करती रहती है। “
यह सब सुनकर लक्ष्मी जार जार रोती जा रही थी।
लक्ष्मी-“मैं एक बार अम्मा जी से मिलना चाहती हूं।”
जगदीश उसे लेकर घर पहुंचा तो लक्ष्मी घर के बाहर ही रुक गई। जगदीश ने उसे अंदर आने को कहा पर वह अंदर नहीं गई।
जगदीश अंदर गया और अपनी मां को हाथ से पकड़ कर बाहर की ओर लाता हुआ बोला-“चलो अम्मा बाहर चलो, देखो कौन आया है?”
अम्मा-“मुझे किसी से नहीं मिलना।”
जगदीश जबरदस्ती अम्मा को दरवाजे तक ले आया। अम्मा लक्ष्मी को देखकर हैरान रह गई और फिर उसे खींच कर अपने गले से लगा लिया। दोनों सास बहू बहुत देर तक गले मिलकर रोती रही। रो-रो कर जब दोनों का मन हल्का हो गया ,तब सासु मां ने लक्ष्मी से कहा-“लक्ष्मी बहू ,मुझे माफ कर दे, तू तो निर्दोष थी। मैंने तेरे साथ बहुत गलत किया। ले अब संभाल अपना घर, मुझसे नहीं संभलते तेरे बच्चे।”
ऐसा कहकर उन्होंने सबसे पहले बड़े बेटे को आगे किया और बोली-“बड़ों की गलती में, बच्चे का क्या कसूर।”लक्ष्मी अपनी सास का यह बदला हुआ रूप देखकर बहुत हैरान भी थी और खुश भी कि उन्होंने कितनी सरलता से बच्चे को स्वीकार कर लिया था।
बाकी दोनों बच्चे भी लक्ष्मी के गले लग गए और अगले दिन सुबह घर में खूब चहल-पहल थी। दोनों बेटे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे। अम्मा जी का तनाव खत्म हो चुका था और वह खुशी-खुशी लक्ष्मी की रसोई में मदद कर रही थी और सबसे ज्यादा खुश थी लक्ष्मी ,अपनी तीन संतानों को पाकर।
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गीता वाधवानी दिल्ली
Nice story