‘सुधा जरा तेल गरम करके ले आ, पैरों की मालिश कर दें, आज बहुत दर्द हो रहा है।” आटा गुंथती सुधा जी के कानों में ये आवाज पड़ी तो उसके हाथ जल्दी से चलने लगे, उन्होंने फटाफट आटा ढका और तेल लेकर सासू मां दमयंती जी के कमरे में चली गई।
“बड़ी देर लगा दी, आखिर इस बुढ़िया की घर में सुनता कौन है? तुझे सेवा करवाने के लिए ही तो ब्याह कर लाये थे, पर तू तो बड़ी आलसी निकली, पिछले पच्चीस सालों से मै तुझे बर्दाश्त कर रही हूं, और कोई सास होती तो धक्के मारकर दूसरी बहू ले आती।”
अपनी सास के तानों से सुधा जी का मन छलनी हो गया, पर अब तो ये रोज की ही बात है, वो पिछले कई सालों से बर्दाश्त कर रही थी।
वो पढ़ाई में होशियार थी, पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होकर जीवन आत्मनिर्भरता से बिताना चाहती थी पर अचानक से सोमेश बाबू का रिश्ता आ गया, वो शादी के लिए जरा भी तैयार नहीं थी, उम्र भी ज्यादा नहीं थी, पर घरवालों को अमीर घर के सोमेश बाबू पसंद आ गये, उनका मानना था कि उनकी बेटी ऐसे घर में जायेगी तो राज करेगी, गहनों कपड़ों की कोई कमी नहीं रहेगी, ज्यादा पूछताछ भी नहीं करी, और ये भी दिमाग नहीं लगाया कि इतने बड़े घर के लोग उनकी सुधा को अपनी बहू क्यों बनाना चाहते हैं?
सुधा जी ने विरोध भी किया, “मां मै ये शादी नहीं करना चाहती, मुझे कपड़े और गहनों का कोई लालच नहीं है, मै अपनी जिंदगी खुले से जीना चाहती हूं, छोटा घर, छोटी कार मुझे सब मंजूर होगा, लेकिन वहां मैं अच्छे से खुश रहूंगी, मुझे बड़े घरों और इन अमीरजादों से डर लगता है।”
लेकिन उनकी मां कुछ ना कर सकी, पिताजी ने रिश्ता तय कर दिया, सुधा जी बहू बनकर आ गई, पर इन बड़े घरों में कुछ ही दिनों में उनका दम घुटने लगा, सोमेश बाबू कभी-कभी पति का हक जताने आ जाते थे, और अधिकतर गायब ही रहते, सुधा जी अपनी सास से कुछ कहती तो वो ये ही बोलती, “कभी अमीरी नहीं देखी तूने तो पता नहीं होगा, अमीर घरों के आदमी कैसे अपनी जिंदगी बिताते हैं? तुझे बड़ा घर मिला, कपड़े,गहने मिले, ये सब कम है क्या? ज्यादा से ज्यादा बच्चे भी मिल जायेंगे, एक पत्नी को और क्या चाहिए?
सुधा जी के पास और कोई चारा नहीं था, पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी, मां के घर वापस जाना संभव नहीं था, उन्होंने नियति के इस फैसले को स्वीकार कर लिया,
धीरे-धीरे समय बीतने लगा, वो तीन बच्चों की मां बन गई, अब सोमेश बाबू की उपेक्षा उन्हें अखरती नहीं थी, वो बच्चों के पालन-पोषण में व्यस्त रहने लगी, बड़ी बेटी नीलू पढ़ाई में अच्छी थी, और उनकी ही तरह कुछ करना चाहती थी, बाकी दो छोटे बच्चे पिता के साथ ही व्यापार में लग गए।
अत्यधिक शराब पीने की वजह से सोमेश बाबू का लीवर खराब हो गया, और वो बिस्तर पर आ गये, और एक दिन इस दुनिया से चले गए, अब घर में सुधा जी की सास दमयंती जी की पहले की तरह ही चलती थी, सुधा जी आज भी उनके सामने कुछ ना बोल पाती थी।
एक दिन सुधा जी के पैरों के तले जमीन सरक गई, जब उन्हें पता चला कि दमयंती जी ने उनसे बिना पूछे ही नीलू का रिश्ता तय कर दिया।
नीलू भी ये जानकर अपनी मां से लिपटकर रोने लगी, उसने बचपन से अपने पिता और दादी का व्यवहार मां के साथ देखा था, वो कुछ कहती भी थी तो दोनों उसे चुप करा देते थे।
सुधा जी ने बेटी को गले से लगाकर कहा, “जो मेरे साथ हुआ वो तुम्हारे साथ नहीं होगा।” मै ये अनर्थ नहीं होने दूंगी, और वो नीलू को साथ लेकर दमयंती जी के कमरे में चली गई।
“मां जी, नीलू अभी शादी नहीं करना चाहती है और अपनी ही तरह के अमीर घराने में तो बिल्कुल नहीं, क्यों कि उसे पता है, इस तरह के घरानों के आदमी कैसे होते हैं? जो अपनी पत्नी को कपड़ों और गहनों से तो लादकर रखते हैं, पर कभी इज्जत,सम्मान, प्यार
और आजादी नहीं देते हैं।”
“सुधा तू ज्यादा ही बोल रही है, मैंने रिश्ता तय कर दिया है, मेरी जबान का भी कोई मोल है।” वो कड़कड़ाती आवाज में बोली।
“मां जी, आपकी जबान का मोल है, पर मेरी बेटी की जिंदगी भी अनमोल है, मै उसे बर्बाद नहीं होने दूंगी, और ये एक मां का फैसला है, मेरी बेटी की जिंदगी का फैसला करने का मुझे पूरा हक है, नीलू जब तक चाहें पढ़ेंगी और जब उसकी मर्जी होगी, अच्छे से देखभाल कर शादी करेगी, सुधा जी अपना फैसला सुना चुकी थी, आज बहू का ये रूप देखकर दमयंती जी की बोलती बंद हो गई थी, ये सब देखकर नीलू के चेहरे पर मुस्कान छा गई।
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित