Moral Stories in Hindi : नीरज और नेहा एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, और शादी करना चाहते थे। परंतु दोनों के घरवाले उनकी शादी के खिलाफ थे इसलिए दोनों ने घर से भाग कर शादी कर ली। दोनों ने शादी तो कर ली परंतु गृहस्थी चलाने के लिए ना तो पैसे थे और ना ही मकान। दोनों अपने घर से जो पैसे लेकर आए थे , वह कुछ दिन बाद ही खत्म हो गए। नीरज ने वही एक छोटी सी कंपनी में काम शुरू कर दिया और एक किराए का मकान ले लिया। धीरे-धीरे घर का खर्चा चलने लगा।
कुछ दिन बाद ही उनके आंगने में नन्ही बेटी की
किलकारी गूंजी।
बेटी का नाम रीना रखा गया। सभी बहुत खुश थे परंतु एक ही बात का दुख था । बेटी का लालन-पालन नाना- नानी और दादा-दादी के स्नेह अभाव में हो रहा था। कुछ दिन बाद ही नीरज को कंपनी की ओर से दुबई भेजा गया।
नीरज और नेहा बहुत खुश थे कि अब तनख़ाह बढ़ जाएगी और वे धीरे-धीरे अपना मकान खरीद लेंगे। दुबई जाकर नीरज हर महीने नेहा को पैसे भेजता। इस तरह 6 वर्ष बीत गए। नेहा अकेले ही अपनी बेटी का पालन पोषण कर रही थी। कुछ दिन बाद उसकी तबीयत खराब रहने लगी डॉक्टरी जांच में पता चला उसे ब्रेस्ट कैंसर है।
अब वह अकेले अपनी बेटी और बीमारी दोनों को सहन कर रही थी।
बीमारी की वजह से वह बहुत चिड़चिड़ी हो गई थी जब भी नीरज दुबई से घर आता, तभी दोनों में झगड़ा होता । नीरज का मोह धीरे-धीरे नेहा से भंग हो रहा था। घर की रोज रोज कलह की वजह से उसका झुकाव दुबई में एक लड़की की तरफ बढ़ने लगा।अब वह सुख दुख की बातें उसी को बताता। इसलिए ज्यादातर दुबई में ही रहता।
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इन सब का प्रभाव रीना पर पड़ रहा था। बारहवीं कक्षा के बाद उसका दाखिला मेडिकल कॉलेज में हो गया। रीना की माॅं बहुत खुश थी कि कम से कम अब बेटी का भाग्य उज्ज्वल है। कुछ दिन बाद ही नेहा चल बसी। इस पूरी दुनिया में रीना अकेली थी ।मकान मालिक ने उसे घर से बाहर निकाल दिया। इस महानगर में उसका कोई भी नहीं था।
उसके पिताजी ने पैसे देने भी बंद कर दिए । अब उसके पास जीविका चलाने के लिए भी कोई साधन नहीं था। उधर हॉस्टल में लड़कियां आए दिन झगड़ा करती और शराब पीती। यह माहौल उसके लिए बहुत ही असहनीय और असुविधाजनक था। कोई भी उसे अपने साथ कमरे में नहीं रखना चाहता था ।ऐसे में उसका जीवन दूभर हो रहा था। ना ही उसके पास हॉस्टल की फीस भरने के पैसे थे और ना ही अपनी जीविका चलाने के।
वह मन ही मन सोचती
हे भगवान! इन सबके भीतर मेरा क्या दोष है? मेरे साथ इतना अन्याय क्यों? अभी तो मेरा जीवन शुरू हुआ है।’
परंतु उसने कभी हिम्मत नहीं हारी। अपनी पढ़ाई के साथ साथ उसने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और थोड़े थोड़े पैसे इकट्ठे करने शुरू कर दिए।
अब वह जान चुकी थी इस दुनिया में वह अकेली आई है और एक दिन अकेली चली जाएगी।
वह खुद ही अपने जीवन को संवार सकती है।
अनीता चेची,मौलिक रचना