नीति और मधुर की शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे और नीति माँ बनने वाली थी. सब कुछ सही चल रहा था, दोनों उत्साहित भी बहुत थे. हर समय दोनों के मन में अपने बच्चे को लेकर नये सपने पनप रहे थे. और ऐसा हो भी क्यों न! माता-पिता बनने से बड़ी ख़ुशी भला और क्या ही होगी!
मार्च का महीना चल रहा था और तभी कोरोना जैसी भयावह, घातक बीमारी धीरे-धीरे पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले रही थी. फिर लॉकडाउन और सब कुछ बंद! नीति की गर्भवस्था लगभग पूरी होने वाली थी. ऐसे में चिंता यह कि अब सब कैसे होगा! न कोई आ सकता है न जा सकता है. घर की सहायिका का आना भी निषेध था.
इन सब उलझनों और चिंताओं का परिणाम था कि नीति को समय से पहले डिलीवरी का दर्द उठा और सर्जरी से नन्ही-सी परी ने जन्म लिया. इससे पहले कि नीति को कोई और नई चिंता सताती उसने देखा कि मधुर बड़ी कुशलता से अपनी बेटी को चम्मच से दूध पिला रहे थे,
उसकी नैप्पी बदल रहे थे और डॉक्टर से सब सलाह मशवरा भी कर रहे थे. नीति सोच रही थी कि क्या ये वही इन्सान है जो कल तक पानी भी अपनी पत्नी से लेकर पीता था! आज पिता बनते ही कैसे सब कुशलता से किए जा रहे थे!
एक विकराल समस्या और थी, मधुर के ऑफिस की. ऑफिस तो जाना था पर नवजात बच्ची और पत्नी को छोड़कर कैसे! ऑफिस में बात किया तो उन लोगों ने वर्क फ्रॉम होम या छुट्टी देने में असमर्थता जताई. ऐसे में मधुर ने बहुत बोल्ड डिसिशन लेते हुए नौकरी के त्यागपत्र का मेल ऑफिस को भेज दिया और नीति को कुछ पता भी न लगने दिया.
घर आने के बाद मधुर नियम से अपनी बेटी को सुबह की धूप दिखाते, मालिश करते और नहलाते थे. समय से नीति को नाश्ता, दवा देते और घर के बाक़ी काम भी बड़ी सहजता से कर रहे थे. उनका यह रूप तो नीति ने देखा तो छोड़िये, सोचा तक नहीं था. लेकिन कुछ दिन बीतने पर भी जब मधुर ऑफिस नहीं जा रहे थे तब नीति को कुछ अटपटा लगा. पूछने पर जवाब मिला, छुट्टी ली है.
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ऐसे ही दिन बीतते रहे. बेटी अब 10 दिन की हो गयी थी. मधुर कुछ काम से बाहर गए थे और बार-बार उनके मोबाइल पर कॉल आ रही थी. कई बार इग्नोर करने के बाद नीति को लगा शायद बहुत आवश्यक होगा तभी इतनी कॉल आ रही है.
देखा तो उसकी बड़ी ननद का था. कॉल रिसीव करते ही ना दुआ ना सलाम, वो उधर से चिल्ला रही थी कि ऐसे कोई नौकरी छोड़ के घर बैठता है क्या? सबके बच्चे हुए हैं पर बच्चा सँभालने के लिए कोई पुरुष तो नौकरी नहीं छोड़ता. और भी न जाने क्या-क्या?नीति ने धीरे से कॉल डिसकनेक्ट किया और मधुर के आने का इंतजार करने लगी.
उनके आते ही जब सारी बात बताई और नौकरी वाली बात पूछी तब बड़ी सहजता से मधुर ने कहा, देखो नीति! नौकरी छोड़ना मेरी मजबूरी नहीं, मेरी पसंद है. तुम इस स्थिति में नहीं हो कि सब संभाल सको. कोई और आ भी नहीं सकता.
और इसमें महिला, पुरुष वाली तो कोई बात नहीं. जब औरतें नौकरी छोड़ती हैं तब कोई सवाल तो नहीं पूछा जाता! फिर अगर एक पुरुष ने छोड़ा तो बवाल क्यों? क्या ये मेरा दायित्व नहीं कि अपने परिवार का ख्याल रखूं?
और फिर मेरा भी तो मन करता है कि अपनी बेटी के साथ थोड़ा समय बिताऊँ. वैसे सच कहूँ तो जब तुम्हें डिलीवरी के दर्द में देखा था तभी सोच लिया था कि तुमको थोड़ा आराम दूंगा और जितना हो सके ख्याल रखूंगा.
अपनी बेटी के लिए तो कुछ भी. और जहां तक नौकरी की बात है, उससे अच्छी कंपनी में, अच्छी पोस्ट और अच्छी सैलरी पर जॉब मिल गयी है पर ज्वाइन 1 महीने बाद करूंगा. तब तक मैं आप दोनों की सेवा में हाजिर हूँ, जो चाहिए बताओ.
नीति झट से मौके का फायदा उठाते हुए बोल पड़ी, तो चलो एक कप चाय और हो जाये. मधुर हंसकर चाय बनाने किचन में चल दिए. नीति को आज समझ आया कि वास्ताव में पुरुष वो नहीं जो दम्भ दिखाए. असल तो वो है जो उसका “हमसफर” है. बड़े-बड़े ख़्वाब न दिखाए, छोटी-छोटी खुशियाँ दे. आज भले कोई उन पर हँस रहा होगा, नाराज होगा. पर उन्होंने जो किया वो कोई और नहीं कर सकता था.
स्वरचित
पूजा गीत
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