Moral Stories in Hindi :आज दीप्ति अपनी मां सुपर्णा जी को अपने साथ अपने घर ले आई, भरपूर कोशिश कर रही थी दीप्ति कि मां का मन लग जाए और मां बेटी के घर रहने की अभ्यस्त हो जाए, पर जो मां कभी बेटी के घर का पानी भी नहीं पीना चाहती थी…. जिसे बेटी के घर रहना गवारा नहीं था, आज किस्मत ने उसे बेटी के घर आकर रहने को मजबूर कर दिया।
दीप्ति की मां तीन बेटियों और एक सबसे बाद में छोटे बेटे मुन्ना की मां थी।यूं तो मां के लिए सभी बच्चे बराबर थे, पर जिस फूल को पाने के लिए उन्होंने ईश्वर की कोई देहली ना छोड़ी, कोई मन्नत कोई मुराद ऐसी न थी जो उन्होंने बेटे के लिए ना मांगी हो ।उसी बेटे का घर छोड़कर बेटी के घर आई मां की आंखों में नीरसता थी।
जिंदगी को मां ढो रही थी या मां जिंदगी को, इतना उनकी निर्मोही आंखों से पता चलता था।आज मां की याददाश्त कुछ काम हो गई थी, पर याददाश्त कम होने पर भी सब कुछ भूल जाती, अपनी दवाई भूल जाती, कभी कभी कितने लोगो के नाम भूल जाती,पर अपने बेटे मुन्ना के लिए प्रार्थना करना कभी ना भूलती। उनकी बातों से ही पता चलता था कि कितना प्यारा है उनका मुन्ना उनके लिए, जिगर का टुकड़ा है मुन्ना, जीने की एक आस है मुन्ना उनके लिए।
बस एक छोटी सी ही तो बात है कि वह अपना संतोषी स्वभाव और बच्चों की चिंता करना नहीं छोड़ पाती ,इस बात के लिए कभी-कभी वह मुन्ना को टोकती रहती । कहते हैं की मूल से भी ज्यादा ब्याज प्यारा होता है ,इसी तरह मां को भी मुन्ना से भी ज्यादा उसके दोनों बेटों से प्रेम था, बेटियों और बहू को भी वह जी भर के प्रेम देती।
सभी बच्चों के परिवार में सभी कुशल से रहे बस इतनी ही प्रार्थना उनकी सुबह शाम होती। प्रेम का समुंदर भरा था उनके हृदय में,जो वो सभी बच्चों पर लुटाना चाहती थी, पर शायद किस्मत की ही बात है कि जिसे जो मिलता है उसे उसका मोल समय रहते समझ में नहीं आता।
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एक दिन मुन्ना ने अपनी बहनों को बुलाया और कहा मां की जिम्मेदारी मेरे अकेले की नहीं है आप सभी भी इस फर्ज में मेरा सहयोग करें ,मां बीच-बीच में टोकती है, बार-बार बात भूल जाती है, हर बार बात दोहराती है, आप सभी को भी अपना फर्ज निभाना चाहिए, मां की जिम्मेदारी निभाने में मेरा सहयोग करें।
अब मुन्ना को कौन समझाए कि तू किस्मत वाला है जिसे एक मां मिली जो सिर्फ और सिर्फ तेरा भला ही चाहती है,जो टोकती है ,समझाती है। क्या बचपन में तुमने कभी कोई सवाल ना किया मां से, तुम्हारी कोई जिद या कोई फरियाद पूरी किए बिना ही क्या तुम्हारी मां ने तुम्हें पाल पोस दिया।
अरे नादान इतना तो समझ यह मां की दुआएं ही हैं, जो तुझे फर्श से अर्श तक लाईं है। मां की दुआओं में कितनी ताकत होती है यह तू नहीं जानता, तुम्हारे साधारण से साधारण टेस्ट के लिए भी मां ने भगवान के दर पर हर समय फरियाद की है। हर परीक्षा हर प्रतियोगिता सिर्फ तुमने नहीं जीती, वो मां की दुआओं ने जीती है। फिर एक सवाल आज का यह है कि एक मां एक साथ चार बच्चों को पाल सकती है, फिर क्यूं चार बच्चे भी मिलकर एक मां को नहीं संभाल सकते।
यह वही मां है जिसने मुन्ना के जन्म के समय बाथरूम में अचानक प्रसव पीड़ा होने पर खुद को चोट लगा ली, लेकिन जब तक कोई नहीं आया ना जाने किस तरह उन्होंने अपने होने वाले बच्चे को संभाले रखा, वह भी उस समय जब उसे यह पता नहीं था कि होने वाली संतान बेटा है या बेटी, बस ये तो अपनी औलाद के प्रति एक मां का एहसास था।
एक बार मुन्ना को स्कूल टूर से आगरा जाना था ,मां कितनी चिंतित थी उसको लेकर, अचानक मुन्ना को टूर पर जाने से पहले वाली रात को कान में भयंकर दर्द उठा तो मां सारी रात जागती रही, रोती रही, भगवान से शिकायत करती रही कि हे प्रभु तूने मेरे मुन्ना को यह दर्द क्यों दिया, उसकी छोटी सी खुशी भी टूर पर जाने की जो थी वह भी तुम पूरी न कर सके।
“मां का मुकाबला शायद ईश्वर भी नहीं कर सकते, क्योंकि अपने बच्चों से एक मां का सिर्फ खून का रिश्ता ही नहीं होता दूध का रिश्ता भी होता है।एक मां दूसरा जन्म पाकर अपनी संतान को जन्म देती है।”
मां की प्रार्थनाएं होती है सिर्फ बच्चों के लिए ,बच्चों के परिवार के लिए। मां में अपना तेरा कतई नहीं था, जब मुन्ना को घर लेना था तो मां ने अपने जेवर रुपए जो कुछ भी उस समय उनके पास था सब कुछ उसे दे दिया, कहा कि बेटा तू बस कर्जा लेकर घर न लेना। वह बात अलग है कि घर की रजिस्ट्री मुन्ना की पत्नी के नाम हुई।
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जिस मां बाप को हमें पलकों पर बिठाना चाहिए उस मां को जीते जी कभी-कभी हम सिर्फ तिरस्कार के अलावा कुछ नहीं दे पाते। माता-पिता को कुछ दो या ना दो, दो मीठे बोल और सम्मान उन्हें इस उम्र में एक टाँनिक का सा काम करते हैं। हमारा इस समय का स्वभाव और संस्कार हमारे बच्चों के भविष्य की संस्कारों की नींव रखते हैं।
समय कितनी तेजी से बदलता है हमें पता ही नहीं चलता ,जिस जगह आज हमारे मां-बाप खड़े हैं,उसी जगह कल हम खड़े होंगे,हमें अवश्य सोचना चाहिए।
कुछ समय बाद…… मां अंदर ही अंदर घुटती रही, बेटी के घर उनका मन नहीं लगता था, अपनी हम उम्र महिलाओं को, अपने मोहल्ले को,अपना परिवार वह बहुत याद करती, बेटी भी मां की व्यथा समझती थी, पर दोनों ही एक दूसरे से कुछ नहीं कह पाती।
और एक दिन अपने सभी बच्चों को अपनी सभी चिताओं से मुक्त कर आज मां चिर निद्रा में हमेशा के लिए सो चुकी थी।
#खून का रिश्ता
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश