मत भूलो की ये मेरा परिवार है – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

“मत भूलो की ये मेरा परिवार है। मैंने हमेशा  सबकी बातों को सम्मान दिया है,हर रिश्ते में समझौता करके निभाया है। हजारों गलतियों के बाद भी हर किसी को माफ किया है। सिर्फ इसलिए रंजन कि मेरे माता-पिता ने मुझे यही संस्कार दिए थे लेकिन आज जब तुमने मेरे घरवालों को सब के सामने अपमानित किया,ये बात मैं कभी भी बर्दाश्त नहीं करूंगी” कंचन तेज से चिल्लाई थी।

कंचन के इस रूप को आज तक किसी ने नहीं देखा था। सभी अचंभित थे कि कंचन ने कभी किसी से ऊंची आवाज में भी बात नहीं की होगी। शायद यही वजह थी कि हर कोई उसको दबाने लगा था।

सास – ससुर तो छोड़ो रंजन का रवैया भी अच्छा नहीं था।

कंचन चार भाई – बहनों में बड़ी थी और समाज का ऐसा चलन था कि बड़ी लड़की ससुराल छोड़कर आ गई तो बाकी भाई बहनों की शादी में भी मुश्किल आ जाएगी, फिर पापा ने अपनी मेहनत की कमाई लगा कर एक जिम्मेदारी बखूबी निभाया था और तीन बच्चों की जिम्मेदारी बाकी थी उन पर।

कांता जी दिनभर में एक दो ताने तो लेन-देन पर सुना ही देती थीं बहू को।कंचन ने भी अपने आपको इन सब बातों का आदी बना लिया था क्योंकि रहना इन सबके साथ ही है तो झगड़े से क्या होगा, शांति से दिन निकल जाए तो अच्छा रहेगा।इसी सोच ने उसका धैर्य खत्म नहीं होने दिया और ये भी मानना था कि अपना ही परिवार है किसी की बातों को दिल पर क्या लगाना।

‘चुप रहने वाले को अक्सर लोग कमजोर समझते हैं’।आज कंचन के पापा – मम्मी बहुत समय के बाद बेटी के घर आए थे। अपनी हैसियत के अनुसार सबके लिए कुछ ना कुछ तोहफे भी लाए थे।

कांता जी ने तोहफे देखते ही रंजन के कान भरने शुरू कर दिए कि,” हमारा अपमान किया गया है। ऐसे कपड़े कौन लाता है। इससे अच्छा खाली हांथ ही चले आते।ना जाने कहां के कंगालों से रिश्ता जोड़ लिया हमने।”

रंजन ने कंचन को बुलाया भीतर और भड़क गया उसके ऊपर। कंचन ने कई बार समझाया कि,” कोई बात नहीं आप लोग किसी को दे दीजिएगा ,कपड़े पर शोर नहीं मचाइए वरना मम्मी – पापा सुन लेंगे।उनको तकलीफ़ होगी और तोहफे कभी भी पैसे से नहीं आंके जातें हैं उनको हमेशा लाने वाले की भावनाओं से देखा जाता है।

रंजन कहां रुकने वाला था। कमरे में आते ही कंचन के मम्मी – पापा को सुनाने लगा।इतनी ऊंची आवाज थी कि वो बेचारे घबरा गए और हांथ जोड़ कर दामाद से माफी मांगने लगे कि आगे से ध्यान रखेंगे वो। कंचन को बहुत बुरा लगा कि उसके घर में उसके माता-पिता के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है और मां जी और पिता जी भी आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। उन्हें तो रंजन को डांटना चाहिए था पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा था।

कंचन पापा को बोली कि,” आप किस बात की माफी मांग रहें हैं? आप बड़े हैं पापा…” रंजन को आपसे ऐसे बात नहीं करना चाहिए था।”

“कंचन बेटी चुप रहो…बात को नहीं बढाओ। दामाद जी की बात का मुझे बुरा नहीं लगा” कंचन के पापा ने उदास मन से कहा पर उनकी आंखें नम हो गई थी।

” नहीं पापा… रंजन को आपसे माफ़ी मांगनी पड़ेगी। अगर मैंने उनके माता-पिता को अपने मम्मी पापा की तरह हमेशा सम्मान दिया है तो उन्हें भी इन बातों का ख्याल रखना होगा” कंचन आज चुप नहीं रहने वाली नहीं थी।

रंजन थोड़ा सकपका गया था और उसको समझ में आ गया था कि वो मां के भड़काने की वजह से अपने सास – ससुर का अपने घर में अपमान कर चुका था।अब उसे लगा कि बात अगर नहीं संभली तो कुछ गड़बड़ी हो सकती है क्योंकि ये सच था कि कंचन ने कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया था।

रंजन ने कंचन के माता-पिता से अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी।” मुझे माफ कर दीजिए पापा जी मुझे ऐसे नहीं पेश आना चाहिए था।”

रंजन की मम्मी को ये बात हजम नहीं हुई की सब किए कराए पर पानी फिर गया और दामाद भला ससुर से क्यों माफी मांग रहा है।

रंजन को आवाज देकर कमरे बुलाया और बरस पड़ी उस पर,” पत्नी के पल्लू से बंधे हुए हो या जोरू के गुलाम बन गए हो जो ससुर के सामने मिमियाने लगे। क्यों माफी मांगी तुमने? क्या ग़लत किया था? जैसा तोहफा लाए थे वही तो बताया था ना ” कांता जी लाल – पीली हो रही थी।

मम्मी!” आप गलत थीं और साथ में आपने भी मुझे गलत संस्कार दिए हैं। आखिर वो भी तो कंचन के माता-पिता हैं जैसे आप दोनों।कल अगर आप उनकी जगह होंगे तो क्या मैं चुप चाप ये सब सुनता। मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया और आपसे उम्मीद करता हूं कि जब तक वो लोग यहां हैं उनकी खातिर और मान सम्मान में कोई कमी नहीं आनी चाहिए और ये बात आप भूलिएगा नहीं।”

कांता जी के तो तोते उड़ गए थे कि मेरा बेटा ऐसे कैसे बदल गया पर अब उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था क्योंकि कंचन के तेवर ने उन्हें पहले से हिला दिया था और बेटा तो अपना ही नहीं रहा,वो तो बीवी की भाषा बोल रहा है , समय के अनुसार चलना ही उचित होगा।

दो दिन तक रहे थे कंचन के माता-पिता खुश और संतुष्ट हो कर गए थे कि सबकुछ ठीक हो गया था।

मान सम्मान पाने के लिए मान सम्मान देना भी जरूरी है।

कंचन खुश थी कि उसके मम्मी पापा का अपमान करने का अब कोई नहीं सोचेगा और सही भी है गुनाह करने वाले से भी ज्यादा गुनाह सहने वाला गलत होता है।

                      प्रतिमा श्रीवास्तव                        नोएडा यूपी

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