आज सुबह-सुबह ही श्यामली मेरे पिछे पड़ गई! कहने लगी मां तुम कहो ना ! तुम कभी थकती क्यों नहीं !
तुम हर वक्त क्यों काम में लगी रहती हो ! तुम दो घड़ी भी आराम क्यों नहीं करती हो?
मैं जब बड़ी हो जाऊंगी ! मेरा ब्याह हो जाएगा तो क्या मुझे भी तुम्हारी तरह ही सारे काम करने पड़ेंगे ! मैं बीमार रहूंगी तभी भी क्या मुझे सब कुछ करना होगा ! तुम्हारी तरह ही जब मुझे भूख लगेगी तो क्या मुझे खुद ही बना कर खाना होगा । मुझे पूछने वाला कोई नहीं होगा मां ??
श्यामली की मासूम बातें सुनकर गंगा उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोल उठी ! ना ना बिटिया तुझे तो एक राजकुमार लेने आएगा! जो तुझे डोली में बैठा कर ले जाएगा ! मेरी बिटिया बहुत राज करेगी कहते-कहते वह खुद सोचने लगी ! क्या मैंने अपनी जिंदगी में यह सब पाया है !
शायद नहीं जिस पति का साथ मिलना चाहिए था! जब उसका साथ ही कभी नहीं मिला तो वह किसी और से क्या उम्मीद करती ! शादी के बाद से ही वह जब भी बीमार पड़ती थी ! पति जग्गू के यही उलहाने ही सुनने को मिलते थे कि तुम दिन भर घर में करती क्या हो??
मैं तो खेत पर चला जाता हूं। तु और तेरी ये बेटी श्यामली तो रोटियां ही तोड़ते रहती हो और भला क्या काम होता है । इन उलहानों को सुनकर भी गंगा चुप रह जाती क्योंकि कहा तो उसे जाता है,जो इंसान समझे। यहां तो समझदारी से दूर-दूर तक कोई नाता ही नहीं था तो वो क्या कहे ।
अरे घर गृहस्थी कोई ऐसे ही थोड़ी चलती है। अमीरों की बात अलग है। एक दिन ना कमाया तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता मगर हम जैसे गरीबों के घर तो अगर एक दिन नहीं कमाया जाए तो खाने के लाले पड़ जाते हैं ।
ईश्वर ने पेट तो सबका एक जैसा बना दिया । जो समय-समय पर आवाज देने लगता है। हां ये बात अलग है की कोई उसकी पुकार सुनकर पिज़्ज़ा बर्गर से उसकी इच्छाएं पूरी करता है तो कोई मजबूरी में पानी से ही उस कुएं को भरने की कोशिश करता है ।
यहां तो मेरा पति दिन भर में जो भी कमाता हैं । वही शाम को जुए में सब हार कर खाली हाथ घर आ जाता हैं और फिर बेवजह मुझ पर गुस्सा करता हैं। यहां तक कि उसे तो श्यामली भी नहीं भाती क्योंकि उसे तो यही लगता है कि जब यह बड़ी होगी तो इसका ब्याह करना पड़ेगा ।
जिम्मेदारियां से तो जग्गू कोसों दूर भागता था। कभी भी वह प्रेम से अपनी बेटी श्यामली को नजर उठाकर नहीं देखता था। दिन-ब-दिन जग्गू को जुए की आदत इतनी ज्यादा हो गई कि अब तो उसने खेत पर जाना भी छोड़ दिया
एक दिन जुए के लिए गंगा के गहने बेचने के लिए गंगा से ही झगड़ने लगा और कहने लगा । देख गंगा तु श्यामली को लेकर इस घर से अपने मायके चली जा वरना आज मेरा हाथ उठ जाएगा ।
तब उस वक्त गंगा में न जाने कहां से इतनी हिम्मत आ गई । उसने अपने शब्दों को कठोर करते हुए जवाब दिया । क्यों चली जाऊं मैं इस घर से।
ब्याह कर लाए हो तुम मुझे। इस घर में बड़े सम्मान के साथ मेरे बाबूजी ने तेरे साथ मेरा ब्याह किया था। हां मगर आज तुमसे मैं एक बात कहना चाहती हूं।
आज के बाद समाज की नजर में हम पति-पत्नी रहेंगे मगर अब तुमसे मेरा कोई नाता नहीं रहेगा और ना ही मेरी श्यामली का क्योंकि तुमने तो परिवार की कोई जिम्मेदारी कभी नहीं निभाई । मैं मानती हूं मेरा मायका भी है मगर ये मत भूलो कि ये भी मेरा परिवार है तो मैं अपने मायके क्यों चली जाऊं ??
क्या इसी दिन के लिए मुझे ब्याह कर लाए थे कि जितने दिन मन किया साथ रहे और जब मन किया छोड़ दिया। क्या यह मेरा परिवार नहीं है । सुनों मैं श्यामली की जिम्मेदारी इसी घर में रहते हुए ही निभाऊंगी ।
आज गंगा की इतनी हिम्मत देखकर जग्गू से कुछ कहते नहीं बना । वह शांत होकर झोपड़ी के दूसरे कमरे में जाकर लेट गया । और इसी तरह दिन गुजरने लगे । अब गंगा दूसरों के घर पर काम कर के श्यामली का और अपना गुजारा करने लगी।
इसी वजह से उसने अपने मन की सारी इच्छाओं को खत्म कर लिया और श्यामली की बेहतर परवरिस में लगी रही !
वो अपनी बिटिआ के लिए ऐसी जिंदगी नहीं चाहती थी इसीलिए उसने श्यामली को बहुत मन लगाकर मेहनत कर के पढ़ने की शिक्षा दी और बेहतर संस्कार भी दिए !
कभी किसी के आगे बेवजह नहीं झुकने की सलाह दी क्योंकि अक्सर ऐसा देखा जाता है! हम जितना झुकते हैं सामने वाला हमारा उतना ही इस्तेमाल और ज्यादा करता है !
उसे अब तक की जिंदगी ने यही सीखाया था !आज वही उसने अपनी बेटी श्यामली को भी सिखाया!
यह कहानी हमें बताती है! हमें अपने फर्ज पूरे जरूर करने चाहिए मगर अपना इस्तेमाल नहीं होने देना चाहिए! जिंदगी हमें कदम कदम पर यही तो सिखाती है पर सीखने वाला चाहिए!
स्वरचित
सीमा सिंघी