“मत भूलो कि ये भी मेरा परिवार है। – परमा दत्त झा : Moral Stories in Hindi

पापा आपने फिर घर गंदा कर दिया -यह बहू मधु थी ।

अरे बेटा -हाथ हिल जाने के कारण -वे सफाई देने लगे।अभी अभी दुकान से आए थे।

फिर तो कपड़े बदलकर खाने बैठ गये-वही भुजिया,रोटी प्याज।

मेरे लिए थोड़ा रसदार सब्जी बना दिया करो-मेरा दांत कमजोर है-वे सफाई देते बोले।

अब दो तरह का खाना नहीं बना सकती -यही खाना है तो खाओ।-बहू का पारा सातवें आसमान पर था।

ये खाना छोड़कर उठ गये और बेटी को फोन कर दिया।वह आधे घंटे में रसदार सब्जी,पतली रोटियां और दही चीनी लेकर आ गयी।

खाना खाकर ये आराम से बेटी के घर चले गये और आराम करने लगे।

अब बहू का गुस्से से बुरा हाल था -यह बुढ़ा हमारी बेइज्जती करा रहा है।

अब मैं दीनानाथ जी का परिचय दे दूं। दीनानाथ दस साल पहले रेलवे से सेवामुक्त कर्मचारी हैं।इनके दो संतान हैं -एक बेटा और एक बेटी।बेटा मोहित जिसे एम बी ए तक पढ़ाया मगर नौकरी नहीं पा सका ,अंत में थककर छः लाख लगाकर दूध की बूथ खुलवा दी।उसका विवाह पत्नी के जीते ही करवाया था आज दो बेटियों के साथ यही रहता है,कहने को दुकान है मगर निट्ठल्ला रहता है और इनके पेंशन और कमाई पर पलता है।

दूसरी ओर बेटी माया जिसकी शादी करीब दस साल पहले करायी।उसका पति अनाथ है सो इन्हीं को सबकुछ मानता है।इनके दिए समान से घर भरा है, पास की गली में फ्लैट में रहता है।उसके दो बेटे हैं।दोनों आई पी एस में पढ़ते हैं।

मेहनती दमाद अपना फ्लैट खरीदा, दुकान चलाता है तो दूसरी ओर बेटी इनका पूरा ध्यान रखती है।इनकी पत्नी रही नहीं बेटे का ब्याह कराकर गुजरी थी।

आज इसी बात का बेटे -बहू को तकलीफ़ है।बूढ़ा वहीं खाता है, वहीं रहता है -कहीं यह घर उसे दे दिया तो–?

बहू कामचोर है,बस दो रोटी नहीं दे सकती।ऐसा नहीं कि जब दोपहर में आते हैं तो चार गर्म रोटी और सब्जी बना दे।थोड़ा दही चीनी दे।

कामचोर बेटा चार चार दिन दुकान नहीं जाता।राशन से लेकर सारा कुछ यही देखते हैं। फिर भी इनकी देखरेख नहीं करते।

दूसरी ओर बेटी पूरा ध्यान रखती है।सो पिछले एक साल से दुकान से वहीं चले जाते हैं।

आज सुबह के गये आये तो पहले घर गंदा को लेकर सुना दिया , फिर ठंढा भोजन परोस दिया। बीमार इंसान की केयर नहीं करते।

अरे बाबूजी गुजरे तो मैं सारा कुछ ले लूं,उसे लात मारकर भगा देंगे।-यह सुनकर ये दुखी हो गये थे।मगर आज एक फैसला ले लिया।

देखो बहू बेटा और बेटी दोनों का परिवार मेरा है। मैं तुम्हारे पूरे परिवार का खर्चा उठाता हूं। मोहित दस दस दिन दुकान नहीं जाता,-अरे क्या हुआ,बाप की कमाई बेटे का होती है।-वह झट बोली।

मगर बाप की देख भाल करना-यह पूछे।

उतना नहीं हो पायेगा।-वह झट बोली ।बस यहीं चुक हो गई।बूढ़ा बेटी के घर चला गया और मकान बेटी दमाद के नाम कर गया।

वहीं से काम पर जाने लगा।

अब पैसे मिलने बंद हो गये।घर चलाने में परेशानी होने लगी तो भागकर आये।

पापा ये क्या हैं?पैसे नहीं दिए –

किस बात के पैसे,अपना कमाओ ,खाओ।-मैं पेंशन खुद पर खर्च करूंगा।जो मेरी देखभाल करेगा उसी का मकान दुकान होगा।-जाओ कहकर भगा दिया।

अब बहू रोती आयी। “मैं सही खाना दूंगी,आपका सारा काम करूंगी ,बस आप मेरा ध्यान रखें।”

देखो बहू दोनों मेरा परिवार है,मेरे बच्चे हैं,बेटी दमाद पराये होकर भी मेरा ख्याल रखते हैं।दूसरी ओर बेटे बहू सगे होकर भी–

फिर क्या फायदा,जो करेगा वह फायदे में रहेगा।पिछले बारह साल से मोहित और तुम्हारा व्यवहार देखा।अभी हाथ पांव चल रहें हैं तब तो यह गति बना दी।घर बैठ गया तो न जाने क्या करोगी।सो बाबा माफ करो-कहते वे उठकर अंदर चले गये।ये दोनों रोते घर आ गये।आज पूरी गर्मी खत्म हो गई थी।

#बेटियाॅ वाक्य कहानी प्रतियोगिता

#दिनांक-4-7-2025

#देय वाक्य-“मत भूलो कि ये भी मेरा परिवार है।

#समय-,(3-7से 9-7तक)

शब्द संख्या -(कम से कम 500)

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)

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