मन की पीड़ा – उषा सक्सेना : Moral Stories in Hindi

जीवन को विकास की गतिशीलता ही उसे जीवन्त बनाती है ,जिस दिन यह गति रुक जाये समझो उल्टी गिनती शुरू।व्यक्ति के जीवन की सबसे कठिन अवस्था होती है वृद्धावस्था जो उसेअपने साथ ही लेकर जाती है ,छोड़ती नहीं । इससमय शरीर की सारी इन्द्रियां शिथिल होकर

शक्तिहीन होने लगती हैं ‌कभी बचपन में सुना था * एक कुँआ सारे गाँव को प्यास बुझाता है किंतु सूखने पर सारा गांव मिल कर भी उसकी प्यास नहीं बुझा पाता *।आज ऐसी ही हालत श्यामलाल जी की होरही थी ।

उम्र के इसपड़ाव पर उन्हें इन्हीं पीड़ादायक क्षणों से गुजरना पड़ रहा था ‌।उम्र केकीमती सत्तर वर्ष

कहां गुजर गये ,घर परिवार को सजाने संवारने अपने भाई बहिनों से लेकर अपने बच्चों तक के पढ़ाने लिखाने से लेकर उनकी नौकरी और विवाह शादी तक

सभी कुछ तो कियाथा सभी के लिये केवल अपने आप और पत्नी की सुख सुविधाओं का त्याग कर।किसी को किसी भी प्रकार की कोई कमीं नहीं होने दी ।भरा पूरा परिवार हंसते खेलते

कब समय निकल। गया पता ही नहीं चला ।

आज अचानक ही उन्हें उन पलों की याद आकर सता रही थी औरमन उदास हो रहा था । एक बार फिर वह वर्तमान को भूल कर अतीत की विस्म।त स्मृतियों में खो गये ।मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति वह अपना बीता हुआ अतीत और बचपन कभी नहीं भूलता । ऐसा ही कुछ तो उनके साथ भी हो रहा था। वह पत्नी रमा से एक कप गरमा-गरम चाय के लिये कह कर फिर बिस्तर पर जाकर लेट गये । लेटते ही कुछ ठंडक महसूस होने पर कम्बल को पैरों से खींच कर गलेतक ओढ़ लिया। पत्नी सुशीला के चाय बना कर लाने पर उठकर बैठ चाय की चुस्कियां लेते हुये वह रमा से ही तमाम पुरानी विस्मृत हुई बातों को दोहराते हुये बतियाने लगे ।

बातों बातों में ही सारे गिले शिकवे भी कहडाले । उनके स्मृति पटल पर यह सब एक चलचित्र की तर्ह चल रहा था जो अपनी झलकियां दिखाकर उनके मनमस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाल रहे थे ।

बीतेहुये कल का भूल पाना आसान नहीं होता ।अतीत की नींव पर ही तो उसका वर्तमान खड़ा होता है ।अतीत की पुख्ता जड़ों पर ही तो उसका वर्तमान और भविष्य छिपा होता है ।

आज उनके अपने बच्चे भी तो उनके पास नहीं थे ।बेटा विवैक इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिये

अमेरिका जाकर बाद में वहीं नौकरी करते हुये अपने ही साथ की किसी अमेरिकन लड़की से विवाह कर वही बस गया ।शादी का‌ निमंत्रण पत्र भेज कर फोन पर ही आशीर्वाद देने के लिये कहर उसने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी ।

बेटी  सरिता ने मेडीकल की पढ़ाई करते हुये बाद में अपने साथ पढ़ रहे डाक्टर लड़के से विवाह करने की बात कही तो उन्होंने भी सहर्ष 

उसका कन्यादान करते हुये अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पाई ।

बेटे के विषय में सोच कर आज उनका मन दुखी हो रहा था । पहले तो उन्होंने यह सोच कर कि हमेंअब बेएटेसे कुछ भीलेना देना नहीं मन को समझा लिया था पर सोच लेने मात्र से ही तो कुछ नही होता । खून के रिश्ते पल में भुलाये भी नहीं जाते आज बरबस मन  भूले हुये बेटे को याद कर रहा था ।

बेटी सरिता के एक बेटा और एक बेटी थी वह दोनों जब भी समय मिलता बच्चों के साथ  मिलने चले आते । उनके आजाने से घर एकबार फिर भरापूरा हो जाता पर उनके जाते ही फिर वही सूना पन । आज ना जाने क्यों उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ।मन है कि दूर कहीं कल्पना के पंख लगाकर उड़ जाना चाहता ।

पत्नी से बातें करते करते ही अचानक उन्हें नींद आ गई और वह कब सो गये पता ही नहीं चला । अचानक ही सोते हुये उन्हें ऐसा लगा कि जैसे उनके पंख उग आये हैं और वह सुदूर आकाश में

सफेद बादलों पर सवार होकर उड़े चले जा रहे हैं।अपने उगे सुनहले पंखों के सहारे उड़ने में उन्हें कोई भय नही लग रहा।आकाश की ऊंचाईयों को छूते  हुये उनका शरीर भी सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होता जा रहा था ।उनके देखते ही देखते वह बादलों से परे अंतरिक्ष मे लीन हो रहा है ।

रमा उनके इस प्रकार से बोलते हुये अचानक चुप होकर प्रगाढ़ निद्रा मे सो जाने पर आश्चर्य करने लगी । वह सोचने लगी “कहां तो इन्हें रात के बारहबजे से पहले नींद नहीं आती थी ।आज क्या हुआ इतनी जल्दी कैसे ? नहीं कुछ तो गड़बड़ है । सोचते हुये जब उससे नहीं रहा गया तो उठ कर धीरे से हाथ लगा कर देखा । श्यामलाल का शरीर एकदम बर्फ सा ठंडा हो रहा था। उसका माथा ठनका ! हे भगवान!अब मैं क्या‌ करूं?किसको बुलाऊं घड़ी में देखा तो गग्यारह बज रहे थे ।

शीध्रतासे दौड़कर पड़ोसियों के दरवाजे खटखटाने लगी ।सभी इस समय सोने की तैयारी में बिस्तर पर जा रहे थे ।रमा कोइस बदहवासी की हालत में देखकर सभी दौड़े आये । उन्होंने तुरंत अपनी गाड़ी निकालकर श्याम लालजी को अपनी गाड़ी में लिटाया और रमा एवं अपनी पत्नी को साथ लेकर पास के नर्सिंग होम में पहुंचे । डाक्टर ने उन्हें इमरजेंसी में भरृती तो कर लिया लेकिन वह इस भयंकर हाआर्ट अटैक से बच भी पायेंगे या नहीं कहने से इंकार कर दिया।

उनकी हालत बहुत ही नाजुकथी ।सारु रात डाक्टर और नर्स यहां से वहां भागते रहे । कभी कोई इंजेक्शन लगाते कभी कोई ।।भोर की पहली किरण के साथ ही उनकी हालत में कुछ सुधार हुआ अब भी वह डाक्टरों कीउ निगरानी में गहन चिकित्सा कक्ष में ही थे । डाक्टरों का कहना था कि अच्छा रहा आप समय पर इन्हें लेकर आगये अन्यथा इनके कोमा में चले जाने परहमेंइनका बचाना मुश्किल हो

जाता ।समाचार पाकर बेटी दामाद आ गये और उन्होंने डाक्टर होने के कारण उन्हें अपनी देखरेख में  जल्दी संभाल लिया ।। बेटे ने टिकट न मिलने का बहाना कर सरिता तो है आपकी देखभाल के लिये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया । आज रमा की आंखें कृतज्ञता मे अपने उन पड़ोसी के सामने झुकी हुई थी जिन्हें वह कभी हेय दृष्टि से देखती थी आज वक्त पड़ने पर वही काम आये कैसे धन्यवाद.. बहुत छोटा शब्द है…।

उषा सक्सेना:-स्वरचित

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