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दादी मां को अस्पताल से डिस्चार्ज मिल गया था.. सौरभ उनको घर ले आए थे.. पिछले महीने ब्रेन स्ट्रोक आया था.. इतने दिन वहां रह कर भी कुछ विशेष सुधार नहीं हो रहा था.. सिर्फ आंखें कभी-कभार खोलती पर ना किसी बात पर एक्सप्रेशन देती और ना ही कुछ रिएक्ट करतीं.. रिकवरी बहुत स्लो थी.. समझो नहीं के बराबर.. तो रख कर भी क्या करते.. कारण एज फैक्टर बताया!
घर में ही सारा अरेंजमेंट कर दिया गया था.. साथ में एक नर्स भी अप्वॉइंट कर दी थी.. उनकी देखरेख के लिए!
सौरभ मम्मी और डैडी जी.. कभी भी उनके कमरे में जाकर देख आते थे.. पर मैं रात को सारा काम निपटाने के बाद.. आराम से उनके कमरे में जाती.. और हाथ पकड़ कर पन्द्रह-बीस मिनट उनके पास जरूर बैठती.. अगर आंखें खुली हो तो दिन भर के कुछ कहानी किस्से भी सुनाने की कोशिश करती!
शादी के दूसरे दिन से.. ऐसे मन के तार उनके साथ जुड़ गए थे.. तो साज छेड़े बिना.. खाना पचे कैसे!
यह तुम इतना टाइम अम्मा के कमरे में बैठकर करती क्या हो.. आज जरा बताओ तो!
उनसे बातें! सौरभ ना जाने क्यों मुझे लगता है.. अम्मा कुछ कुछ समझती है!
अच्छा! इतनी बड़ी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स भी फेल है.. तुम्हारी अक्ल के आगे.. साइंस का मानूं या तुम्हारा.. अब सो जाओ मेरी मां.. यह तुम्हारे दिमाग का वहम है और कुछ भी नहीं!
और हां.. ईशान के एडमिशन की मेल आ गई है.. अगले हफ्ते अपने को बेंगलुरु जाना पड़ेगा!
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गए तो दो दिन के लिए थे पर सारा प्रोसेस निपटाते निपटाते और हॉस्टल वगैरह देख कर.. सेट कराने में चार-पांच दिन का समय लग गया!
वापस आकर.. सीधे मैं अम्मा के कमरे में मिलने के लिए चली गई.. सौरभ भी मेरे पीछे-पीछे आया!
कुर्सी पर बैठकर जैसे ही मैंने अम्मा का हाथ पकड़ा.. स्पर्श से उनकी बंद आंखें खुल गई.. और कोरों से आंसुओं की धार बहने लगी!
सौरभ आज रोज की तरह कमरे से गया नहीं.. दूसरी कुर्सी खींचकर.. अम्मा के साथ मेरी बातें सुन रहा था!
स्वरचित एवं मौलिक
चांदनी~ खटवानी