मन का रिश्ता – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 फाइनली, आज रोहित ने हमेशा के लिए कोलकाता छोड़कर मुंबई जाने का फैसला कर लिया था। मुंबई में उसने एक अच्छी जॉब भी ढूंढ ली थी,हालांकि कोलकाता से उसका मनका रिश्ता था।आखिर बचपन से वही पला बढा था लेकिन अब बचा ही क्या था वहां उसके लिए। 2 साल का था जब पिताजी गुज़र गए थे मां ने मेहनत मशक्कत करके उसे पढ़ाया लिखाया। यह तो शुक्र है भगवान का कि घर अपना था वरना मां उसे पालती पोसती या घर का किराया भरती। 

 पढ़ लिख कर उसने एक बहुत अच्छी जॉब पा ली थी। उसने माँ से कहा, “माँ अब तुम्हारी तकलीफों के दिन समाप्त हुए।” अब तुम आराम करो उसने मां के लिए घर में कपड़े धोने वाली,डस्टिंग,बर्तन और सफाई सब कामों के लिए मेड लगा दी थी। मां ने कहा खाना मैं खुद बनाऊंगी। 

 मुश्किल से 6 महीने मन सुख से बीते और एक रात उन्होंने रोहित से कहा-” रोहित बेटा तू अब शादी कर ले मेरा क्या भरोसा। ” 

 रोहित-” माँ ऐसा कुछ मत बोलो तुम्हें तो अभी अपने पोते पोतियो को भी पालना पोसना है। ” 

 मांँ हंसने लगी और निश्चिंत होकर सोने चली गई और ऐसी सोई की सुबह उठी ही नहीं। पहले तो रोहित को लगा की मां थक गई होगी,चलो आराम करने देता हूं। नहा धोकर उसने अपनी और मां के लिए चाय बनाई और उन्हें उठाने गया। उन्हें जगाने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया,उसने मां को हिलाया। उनका शरीर एकदम ठंडा था और गर्दन लुढ़क गई थी। 

 उन्हें देखकर रोहित घबरा गया उसने डॉक्टर साहब को फोन करके बुलाया,डॉक्टर ने उन्हें देखने के बाद कहा कि लगभग आधी रात के समय उनकी मृत्यु हो गई होगी। 

 रोहित फूट-फूट कर रोने लगा। 

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अड़ोसी पड़ोसी रिश्तेदार सबकी आंखें नम थी क्योंकि रोहित की मां सबसे विनम्र व्यवहार रखनी थी, रोहित बार-बार यही कह रहा था की मां अब सुख के दिन आए तो तुम क्यों चली गई, पूरी जिंदगी तो तुमने मुश्किलों  में काट दी और अब ईश्वर ने तुम्हें अपने पास बुला लिया,भगवान मेरी मां को वापस भेज दो आपने ऐसा क्यों किया,यह आपने सही नहीं किया। 

 अब उसका कोलकाता में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। उसने अपने घर को ताला लगाया और मुंबई जाने का मन बना लिया। जाने को तो वह, हवाई जहाज से भी जा सकता था, पर उसे याद आ रहा था कि उसकी मां ने एक बार कहा था कि उन्हें ट्रेन का सफर बहुत पसंद है रोहित ने भी ट्रेन से जाने का फैसला किया उसकी मां ने उसे बताया था कि उसके बाबा यानी कि रोहित के नाना जी उन्हें ट्रेन में घूमाते थे। 

 वह जब मुंबई में ट्रेन से उतरा, तो बेहद भीड थी। थोड़ा आगे बढ़ने पर उसे लगा कि कोई उसका नाम लेकर पुकार रहा है फिर सोचा मैं तो यहां पहली बार आया हूं मुझे तो यहां कोई जानता भी नहीं है तभी गाड़ी के चले जाने के कारण प्लेटफार्म थोड़ा खाली हो गया था। 

 एक बूढी औरत भागती हुई आई और उसका हाथ पकड़ कर बोली-“तू आ गया रोहित,मुझे पता था तू एक दिन जरूर आएगा। ” 

 रोहित हैरान परेशान उनसे कहता है -” माई, आप मुझे कैसे जानती हैं आपको मेरा नाम कैसे पता लगा मैं तो आपको नहीं जानता। ” 

 उसे औरत ने कोई जवाब नहीं दिया। तभी एक पुस्तक विक्रेता जिनकी वहां प्लेटफार्म पर दुकान थी वह अंकल आए और कहने लगे’-” बेटा आप जाओ, यह बेचारी तो पगली है, चल इधर चल, वह औरत से कहने लगे। ” 

 रोहित ने पूछा -” पर अंकल इनको मेरा नाम कैसे पता लगा? ” 

 अंकल-” क्या इसने आपको रोहित कहकर पुकारा “

 रोहित-जी, इन्होंने मुझे रोहित कहा। ” 

 अंकल-“बेटा,इसके बेटे का नाम भी रोहित था, इत्तेफाक है बेटा, इसकी कहानी बड़ी पुरानी और दुखद है। ऐसा कहकर वह उसे औरत का हाथ पकड़ कर ले जाने वालों पर उसे औरत ने रोहित का हाथ नहीं छोड़ा, दुकानदार भी हैरान था कि वैसे तो थोड़ा डांटने पर यह अजनबियों के हाथ छोड़ देती है पर आज तो मान ही नहीं रही, बल्कि बिल्कुल शांत होकर रोहित को निहारती जा रही थी। 

 रोहित ने कहा-” अंकल कुछ बताइए इनके बारे में” 

 अंकल-” अरे बेटा छोड़ो, जाओ आपको देर हो जाएगी। ” ‘

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 रोहित-” नहीं देर होगी मुझे,  आप बताइए। ” 

 अंकल-” यह औरत इसी स्टेशन पर उतरी थी, यह लगभग 25 साल पुरानी बात है। यह लोग कहां से आए थे किसी को नहीं पता। ट्रेन में भीड़ होने के कारण यह अपने 5 साल के बेटे रोहित को लेकर  ट्रेन के बाहर बहुत मुश्किल से उतर पाई, लेकिन चढ़ने वाले यात्रियों ने इसके पति को उतरने नहीं दिया और डिब्बे में पीछे धकेल दिया, बड़ी मुश्किल से वह किसी तरह दरवाजे पर पहुंचा और उसके उतरने से पहले ही ट्रेन चल पड़ी।

पीछे से किसी का धक्का लगा और वह ट्रेन से गिरकर,  ट्रेन और प्लेटफार्म के बीच उलटता पलटता ट्रेन की गति के साथ लुढ़कने लगा। उसके कमर तक का हिस्सा ट्रेन के नीचे आ गया था और वह वहीं पर कट गया। मौके पर ही उसकी मौत हो गई। ट्रेन के जाने के बाद उसकी उतनी बुरी हालत देखकर ये  बेहोश हो गई

और पुलिस वाले शव को उठाकर ले गए। होश में आने पर  इसने अपने बेटे रोहित को ढूंढा, लेकिन दुर्घटना का फायदा उठाकर शायद कोई रोहित को उठा कर ले गया था। यह पागलों की तरह उसे ढूंढती रही लेकिन रोहित नहीं मिला। तब से इसका दिमागी संतुलन ठीक नहीं है। यह यही प्लेटफार्म पर पड़ी रहती है

और कहती रहती है कि देखना एक दिन मेरा रोहित जरूर आएगा। जब तक वह नहीं आएगा मैं यहां से नहीं जाऊंगी, नहीं तो वह मुझे ढूंढेगा। उसे रोहित तो याद है लेकिन उसके पति की मृत्यु उसे याद नहीं है। कभी-कभी कहती है कि रोहित के पापा भी उसके साथ आएंगे। कभी-कभी तो इतनी समझदारी से बात करती है

कि लगता है कि यह पागल है ही नहीं। कभी कहती है कि मैं उसे पहचान तो लूंगी ना, बड़ा हो गया होगा, पर वह तो मुझे पहचान ही लेगा, अपने आप से बातें करती रहती है, कभी पागलों की तरह रोज एक टॉफी, टॉफी वाले से लेकर अपने पल्लू में बांध लेती है और कहती है कि रोहित को दूंगी। कभी कहती है कि बड़ा हो गया होगा और कभी उसे छोटा समझकर टाफी देने की बात करती है। 

 हमसे अक्सर रो-रो कर पूछती है अब तो बहुत समय हो गया आप ही बताइए मेरा रोहित कब आएगा। रोहित आजा ना बेटा मैं बहुत थक गई हूं। मुझे नींद भी नहीं आती तेरे बिना। कब आएगा तू। ” 

 इतना बता कर दुकानदार की आंखें भी भर आई और वह बूढी औरत को जबरदस्ती वहां से ले गया। 

 रोहित भी घर चला गया लेकिन पूरी रात उसे नींद नहीं आई। वह रात भर उस औरत के बारे में सोचता रहा और उसे अपनी मां की बहुत याद आ रही थी। सुबह 4:00 बजे उसकी आंख लग गई और 15 मिनट बाद वह जाग भी गया। उसे लगा कि जैसे मन कह रही हो, बेटा उस  माई के साथ तेरा मन का रिश्ता जुड़ गया है और वह तुझे अपना बेटा रोहित समझ रही है। 

      रोहित कुछ सोच कर रेलवे स्टेशन पहुंचा और उस अंकल से मिला। अंकल बोले-” जब से आप गए हो, बैठी रो रही है, कुछ खा भी नहीं रही, पहले तो इसने ऐसा कभी नहीं किया, दिन में 10 लोगों के पीछे भागती थी और फिर भूल भी जाती थी, देखो वह लेटी है साइड में। ” 

 रोहित उसके पास गया और उसके सिर पर हाथ फिरा कर बोला-” मां उठो” 

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माई-“अरे रोहित तू आ गया, आंसू पोंछ कर बोली,  चल अपने घर चलते हैं। ” 

 रोहित-” हां चलो” 

 अंकल ने रोहित से कहा-” बेटा मुझे तो हैरानी हो रही है कि इसने आपकोआज पहचान लिया। वरना यह तो 5 मिनट बाद ही भूल जाती थी। ” 

 रोहित-” अंकल, मैंने कुछ दिन पहले अपनी मां को खो दिया था। मुझे ऐसा लग रहा है कि उनके रूप में मुझे मां मिल गई है। क्या मैं इन्हें अपने साथ ले जा सकता हूं। मैं अभी कुछ दिन तक मुंबई में ही हूं, अगर इनके बारे में कोई पूछने के लिए आए तो मैं आपको अपना फोन नंबर देकर जाता हूं। कुछ दिनों बाद मैं इन्हें कोलकाता लेकर जाऊंगा  और वहां का एड्रेस भी आपको दे जाऊंगा। हो सकता है इलाज करवाने पर यह ठीक हो जाएं। ” 

 अंकल-“हां बेटा ले जाओ, इसे पूछने आज तक कोई नहीं आया और ना ही कोई आएगा, इसे सहारे की जरूरत है, ईश्वर तुम्हें सारी खुशियां दे और तुम्हें हमेशा सुखी रखें। ” 

 रोहित-” अच्छा अंकल नमस्ते” चलो मां, और वह उसके साथ ऐसे चल पड़ी जैसे रोहित उसका खोया हुआ बेटा उसे मिल गया हो, यही था दोनों का मन का रिश्ता।

 स्वरचित अप्रकाशित, गीता वाधवानी दिल्ली

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