मनमुटाव – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

ट्रिक ट्रिक ……..के घंटी की आवाज़ के साथ रेखा दरवाज़ा खुलने की प्रतिक्षा करने लगी।इतने में

भीतर से कौन की आवाज के साथ दरवाज़ा खुला।

खुलते ही रेखा को सामने देख भतीजा राहुल बोल उठा अरे! बुआ आप नमस्ते आइये आइये।

मां देखो बुआ आईं हैं।कहता हुआ भीतर चला गया और वो जवाब देकर वही लगी कुर्सी पर बैठ गई।बैठे ही उसकी नज़र सामने लगी तस्वीर पर टिक गई मानों वर्षो पुरानी यादें ताजा हो गई।बात उस समय की है जब वो बहुत छोटी थी ऐसे ही रक्षा बंधन के दो चार दिन पहले उनके घर अम्मा के साथ किसी काम से गई थी और बातों बातों में अम्मा को पता चला कि उनकी कलाई पर राखी बांधन वाला नही है तो उन्होंने कहा कोई बात नही ये भी तो तुम्हारी बहन है इसी से बंधवा लिया करो ।बस तभी से वो हर साल उनकी कलाई पर राखी बांधने लगी। यहाँ तक की शादी हो गई तब भी हर साल वो ससुराल से राखी बांधने आती।

और ये भी तब तक कुछ ना खाते पीते जब तक की राखी ना बंधवा लेते ।ये सिलसिला वर्षो चला और चलता रहा।

पर एक साल उसकी उसके जायके से थोड़ी अनबन हो गई जिसकी वजह से वो अपने भाई को राखी नही बांध पाई अब उन्हें तो नही बांधी पर उनको भी बांधने नही आई। जबकि कई फोन आया। पर उसने रिसिव ही नही किया।फिर हार कर वो इंतज़ार करना बंद कर दिये।

हलाकि दो तीन सालों बाद इसके मायके से मामला सलट गया। ये घर नही जाती पर भाई आकर राखि बंधवा लेता था। पर वहां से इसका रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो गया।

इस तरह वक़्त बीतना रहा यादें और रिश्ते दोनों धूमिल हो गए पर एक दिन अचानक इसे पता चला कि उनकी मृत्यु हो गई तो अपने आप को नही रोक सकती और उस समय तो नही पर यही कुल पंद्रह से बीस दिन बाद पहुंची।

बस आज ये वही दिन है ।वो सोच ही रही थी कि हल्के रंग के कपड़े पहने भाभी आई और जैसे ही पैर छूने के लिए झुकी उसने उठा कर उन्हें सीखने से लगा लिया।

और दोनों फफक पड़ी।

इतने में भतीजी भी अंदर से आ गई नमस्ते बुआ जैसी है।

तो वो बोली मैं ठीक हूं तुम कैसी हो ।मैं भी ठीक हूं बुआ बस कल घर जाने की तैयारी है। बहुत दिन हो गए आये।

बच्चों की पढ़ाई और इनके आफिस का नुकसान हो रहा ।

इस ज़र ये बोली हां वो तो है तो क्या भाजी को भी ले जाओगी।

इस पर वो बोलूं हां सोच तो रही हूं थोड़ा दिल भी बहल जायेगा  मगर जब ये जाये तब तो।

इतने में भतीजे चाय की ट्रे लिये आया और बोला।

बुआ आप क्यों नही आई थी हम सब तो पापा की मिट्टी में ही आपका इंतज़ार कर रहे थे।मानों कहते कहते उसकी आंखें भर आई पर वो पानी के बनाने भीतर चला गया।

सच कहूं तो मेरे पास उसके इस प्रश्न का कोई जवाब नही था। इसलिए बिना कुछ बोले चाय की प्याली उठा चाय पी और बिना नाश्ता किये ही धीरे से प्याली ट्रे में रख दी ।इस बीच माहौल को हल्का करने के लिए पति देव ने उनके पेंशन वगैरा की बात छेड़ दी ।साथ और भी घर परिवार की बातें होने लगीं।पर थोड़ी ही देर में हम चलने को हुए तो उसने फिर एक अंत : घाती घाव दिया।मानों उसे साल रहा था वर्षो से उसका नाम आना फिर उस समय और जब पापा की मृत्यु हुई उसके ।और आज मौका पाकर मन की बात कह देना चाह रहा था या हो सकता हो उसके न पहुंच ने पर  पिता के मन की झटपटाहट महसूस की हो।कुछ भी हो सकता है तभी तो उसने निकलते निकलते कहा – बुआ पापा की कलाई सुनी रह गई।ये सुन मानों मेरा कलेजा मुंह को आ गया।मैं कुछ ना बोल सकी पर हां एक संकल्प उस ढेहरी पर जरूर लिया।कि आगे से ऐसी गलती कभी नही करूंगी।एक से अनबन हो तो दूसरे को राखी बांधने जरूर जाऊंगी चाहे कितना भी मनमुटाव हो  त्योहार नही छोडूंगी।।

Leave a Comment

error: Content is protected !!