ममता – Moral Short Story In Hindi

रमिया की शादी को दस वर्ष हो चुके थे , लेकिन वो अभी भी संतान के सुख से वंचित थी । उसके सास-ससुर भी बहुत परेशान रहते थे ,क्योंकि शान्तनु उनका इकलौता बेटा था । अगर उसकी कोई औलाद नही हुई तो हमारा वंश आगे कैसे बढ़ेगा ?? ऐसा नही की रमिया और शान्तनु ने डॉक्टर को दिखाया ना हो या कोई इलाज ना कराया हो पर फिर भी आज तक उनका आँगन किलकारी बिन खामोश है ।

जब भी रमिया अपने घर जाती और अपने भाई-बहनो के बच्चों को अपने आस-पास खेलता-कूदता देखती, “तो मन ही मन अपने आप को कोसती “। भगवान मुझसे कौन सी गलती हो गई !! जो मैं आज भी इस एहसास से वंचित हूँ । यें सब देख रमिया की माँ भी उसे ताना मारती हुई कहती जब औलाद नही हो सकती तो गोद ले लो ।

इतने साल हो गए हैं !! नही माँ शायद नियति को यही मंजूर है …. तो क्या सारी उम्र अकेले ही रहोगे ??? अभी ज़रूरत ना लगे पर बुढ़ापे में सब पता चल जाएगा !! क्या माँ आप मुझे डरा रही है ?? डरा नहीं रही जीवन का सत्य बता रही हूँ । बड़ा बच्चा ना सही, तुम छोटे बच्चे को गोद ले लो । माना उसे सम्भालने में मुश्किल आती है ,पर उसकी सब यादें तुम से ही बनेगी । आप ठीक कह रही है माँ !! मैं शान्तनु से बात करती हूँ ।

रमिया ने घर आकर शान्तनु से बात लेकिन उसे ये बात ज़्यादा अच्छी नही लगी । बच्चा अपना हो तो अच्छा होता है , गोद लेना ठीक नही पता नही किसका होगा और बड़ा होकर कैसा निकले ?? शान्तनु की बात सुन रमिया का दिल ना उम्मीदी से भर गया ।अगले दिन हिम्मत कर उसने ये सब बात अपने सास-ससुर से की । ठीक है बेटी ! हमें कोई आपत्ति नही है , हम तो बस इतना चाहते है कि हमारे जीवन में कोई उम्मीद की किरण आए । हमारे कंधो पे बैठ कोई हमें भी दादा-दादी बुलाए । ये सुन रमियाँ की आँखे भीग गयी और वो अपनी सास से लिपट गयी ।




कुछ दिन रमियाँ ने अपनी दोस्त के साथ मिल कर कई अनाथालय की खोज बीन की , बच्चा कौन से अनाथ आश्रम से गोद लेना बेहतर होगा ।आख़िर कार उसे वो अनाथ आश्रम मिल ही गया । वहाँ जाकर उसने पहले पूरी पूछ ताछ की , सब बच्चों का मालूम किया उसे बहुत सारी फ़ोटो दिखायी गयी उसमें से उसने दो बच्चों को फ़ाइनल कर दिया ।कल मैं अपने पति के साथ आती हूँ कह वापस घर चली गयी ।

अगले दिन सुबह कुछ खास थी हर तरफ़ घर में ख़ुशियों की फुआर थी ।आज हमारे घर में नया मेहमान आने वाला हैं । इस एहसास से ही माँ की ममता जाग गयी , वो आएगा तो ऐसा होगा ये करूँगी ?? शान्तनु ! जल्दी करो लेट हो रहे है । गाड़ी की चाबी ढूँढ रहा हूँ ….. चाबी तो मेरे पास है बस तुम जल्दी आ जाओ ।

जैसे ही वो अनाथ आश्रम पहुँचे तो रमिया को घबराहट होने लगी और पैरों को हिलाने लगी । ये देख शान्तनु ने उसके हाथ पे हाथ रखा और कहा चिंता मत करो सब अच्छा होगा !! थोड़ी ही देर में अनाथ आश्रम की करता धरता बच्चों को अपने साथ लेकर आयी । उन्हें देख दोनों का हृदय ख़ुशी के हिचकोले खाने लगा । नमस्ते सर ! आप कैसे हैं ? शान्तनु हड़बड़ाता हुआ जी मैं ठीक हूँ ….

आप दोनों बच्चों में से कौन सा गोद लेना चाहते है बता दिजीए । शान्तनु रमिया की ओर देखता हुआ ….रमिया जी समझ नहीं आ रहा ?? मुझे तो दोनों बच्चे बहुत प्यारे लग रहे है !! तभी आश्रम की आया एक छोटे बच्चे को लेकर आयी मैम ये बच्चा रोए जा रहा है चुप नहीं हो रहा मैं क्या करूँ ??? रमिया ने जैसे ही उस बच्चे को रोता हुआ देखा तो अपने आप को रोक नहीं पायी और जाकर उसे अपनी गोदी में ले लिया ।




उसकी गोदी में आकर वो चुप हो गया और ममता के लिए प्यासी नज़रों से उसे देखने लगा । रमिया भी उसे देख खो गई …. शान्तनु ने उसे झकझोर के बोला रमिया क्या हुआ बोलो ! कौन सा बच्चा ?????

अपनी गोद में उठाए बच्चे को देखते हुए मैं इसे अपने साथ ले जाना चाहूँगी । लेकिन मैम ये तो बस दस-पंद्रह दिन का ही बच्चा है !! आप कैसें सम्भालेगी !! मैं सम्भाल लूँगी माना सब बच्चे अच्छे है ! पर इससे एक एहसास सा जुड़ गया है । इस लिए मैं इसे अपने साथ ले जाना चाहूँगी ।

ठीक है मैम आप ये सब कागज़ी कार्यवाही पूरी कर लीजिए फिर आप जा सकते है । शान्तनु रमिया से पूछते हुए तुम ध्यान रख लोगी ना क्योंकि इतने छोटे बच्चे को बहुत ध्यान और समय की जरूरत होती है ।

हाँ मैं अपने बेटे का अपनी जान से भी ज़्यादा ध्यान रखूँगी । सब कार्यवाही के बाद वो तीनों जिंदगी के नये सफर पे निकल गए । घर पहुँच कर शान्तनु की माँ ने उनकी आरती उतारी और उस नन्हे मासूम को अपनी गोदी में ले गले लगाया । तभी पीछे से आवाज़ आई कि पंडित जी बच्चे की नामकरण विधि के लिए बुला रहे है ।

रमिया ने बच्चे का नाम अनमोल रखा ।क्योंकि वो मेरे जीवन का अनमोल रिश्ता है ,जिसने मुझे माँ कहलवाने का हक़ दिया है । इस लिए मैं इसका नाम अनमोल रखती हूँ । ये नाम सुन दादा दादी दोनों खुश थे , लाओ बहू अब हमारे पोते को हमे दे दो। जानते हो हम कौन है ….. हम तुम्हारे दादा दादी है ! हम तुम्हें खूब खिलाएगे , बाहर घूमाएँगे ,सब मिलकर खूब मजा करेंगे । अरे बहू ! ये तो रोने लगा , लगता है इसे भूख लग रही हैं ।

रमिया उसे अंदर ले गई उसे दूध पिला सुला दिया । थोड़ी देर में शान्तनु अंदर आया और रमिया का हाथ थामते हुए कहने लगा” तुम ख़ुश हो ना “!! हां मैं बहुत खुश हूँ , क्या आप खुश नहीं है ?? मैं भी बहुत खुश हूँ….. पता है मैं इतने दिनों से डर रहा था कि हम बच्चे को घर लाकर कोई गलती तो नहीं कर रहें ?? क्या हम उसे वो प्यार अपनापन दे पाएगे जो हम अपने बच्चे को देते ।

लेकिन आज मैं ग़लत साबित हो गया रिश्ते खून से नहीं दिल से एहसास से बनते है और आज जब इसकी उंगली को मैंने पकड़ा तो वो डर वो झिझक सब खत्म हो गयी । जो नियति में लिखा होता है वहीं मिलता है । शायद हमारी अपनी औलाद इस लिए नहीं हुई कि हमे एक दूसरे का सहारा बनना था । थैंक यू रमिया अगर तुम जिद ना करती तो शायद मैं इस एहसास को कभी महसूस ही नहीं कर पाता ।

#नियति

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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