अपने नगर में सेठ जुगल किशोर जी का नाम था।थोड़े ही समय मे जुगल किशोर जी ने अपने व्यवसाय में काफी उन्नति कर ली थी।उन्होंने अपने बेटे विपिन को अपने ही व्यवसाय में साथ लगा लिया था।बेटी की खूब धूमधाम से शादी कर दी थी। जुगल किशोर जी ने आरम्भ में दुर्दिन भोगे थे,सो उन्हें अभावग्रस्त दिनों का अनुभव था सो उन्होंने अपने छोटे भाई यानि विपिन के चाचा की भी खूब मदद की ताकि उसे जीवन के संघर्षों का सामना ना करना पड़े।
ये जुगलकिशोर जी के सहृदयता का ही परिणाम था कि उनका छोटा भाई और बेटी के ससुराल वाले उनका बहुत सम्मान करते थे।जुगलकिशोर जी कभी किसी त्यौहार के बहाने तो कभी किसी के जन्मदिन आदि के बहाने अपने भाई और बेटी के यहां काफी महंगे गिफ्ट तथा नकद धनराशि देते रहते।वो अपने बेटे विपिन को भी यही समझाते कि अपनो का पूरा सहयोग करना चाहिये,इससे अपना घटता नही है,ईश्वर अधिक ही देता है साथ ही आत्म संतोष अलग से प्राप्त होता है।विपिन ने पिता के दिये संस्कार ही अपने अंतर्मन से स्वीकार किये थे।
अचानक ही एक दिन जुगलकिशोर जी हृदयाघात कारण दुनिया को अलविदा कह गये।अब घर व्यवसाय और दुनियादारी निभाने की पूरी जिम्मेदारी विपिन पर आ गयी थी।पिता द्वारा दिये संस्कार तथा सीख ग्रहण करने के कारण विपिन को समस्या नही आयी।व्यवसाय पिता के सामने से ही अच्छे से जमा था, विपिन ने उसमे इजाफा ही किया।
एक दिन चाचा का बेटा चिंटू आया ,उसे देख विपिन ने उसे गले से लगा लिया।अच्छी आव भगत की।उसने कहा भैय्या मुझे बाइक लेनी थी,उसमे बीस हजार कम पड़ रहे हैं, आप दे दो,मैं कुछ दिनों में वापस कर दूंगा।अरे कोई बात नही,मैं दे देता हूँ।और विपिन ने अपने चचेरे भाई चिंटू को बीस हजार रुपये तभी दे दिये।विपिन की पत्नी सुधा ने बाद में कहा भी,क्यूँ जी देवर जी रुपये चाचा जी से नही मांग सकते थे,उन पर कोई कमी थोड़े ही है।विपिन हँस कर सुधा की बात टालते हुए बोला,भई मुझे तो उसका अपने पर हक मानना अच्छा लगा।पिता जी भी कहते थे,देने से ईश्वर अधिक ही देता है।बात आई गयी हो गयी।
कुछ दिनों बाद ही चाचा जी के दामाद और उनकी बेटी घर पर आये। अपनी छोटी बहन जैसा ही आदर सत्कार विपिन और सुधा ने उनका किया।बाद में चाचा जी की बेटी पिंकी ने अकेले में विपिन से कहा, भैय्या आज तो मैं आपसे कुछ मांगने आयी हूँ, बोल ना विपिन ने कहा।भैय्या ये कुछ बिजिनेस करना चाह रहे हैं, उसमे दो लाख रुपयों की जरूरत है।भैय्या हमारी मदद कर दो,हम आपका पैसा लौटा देंगे।विपिन ने कहा कि इस समय तो घर पर रुपये नही है,लेकिन मैं आजकल में भिजवा दूंगा, तू चिंता मत कर।मेरा भैय्या कहते हुए पिंकी विपिन से चिपट गयी।विपिन ने पिंकी के सिर पर हाथ फिरा कर उसे विदा किया।
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सुधा ने फिर विपिन से कहा कि आप कुछ अधिक ही उदार बन रहे हैं, और उधर से रोज डिमांड बढ़ती जा रही है।विपिन को सुधा का टोकना अच्छा नही लगा, उसने कहा, सुधा यदि अपने अपनो से मदद मांगते हैं तो हमे तो अच्छा लगना चाहिये।
सुधा ने कहा विपिन हमेशा डिमांड चाचा जी के बेटे और बेटी की तरफ से होती है,चाचा जी अदृश्य है।अब या तो आपकी मदद की उनको जानकारी ही नही है,यदि ऐसा है तो उन्हें जानकारी होनी चाहिये, हो सकता है अपने बेटे बेटी की जरूरत वो खुद ही पूरी करने में समर्थ हो।या फिर उनकी रजामंदी से वे यहां मदद को आते हैं तो ऐसी स्थिति में चाचाजी साइड ले रहे है, जबकि उन्हें स्वयं ही आपसे बात करनी चाहिये थी।चाचा जी को तो पता होना ही चाहिये ना।
सुधा की बात में दम था पर विपिन टाल गया,और अगले दिन उसने दो लाख रुपये पिंकी के यहाँ पहुँचवा दिये। समय गुजरता गया।उसके बाद भी कई बार पिंकी और चिंटू आये, पर कुछ न कुछ डिमांड लेकर।सुधा विपिन को चेताती विपिन संकोच में कुछ न बोल उनकी डिमांड पूरी कर देता।हर बार वो यही कहते हम लौटा देंगे,पर लौटाया कभी नही।
समय का फेर,कोरोना महामारी का विश्वव्यापी प्रकोप फैला,लॉकडाउन में सब घरों में बंद होकर रह गये।सब कारोबार बंद,कारखानों की लेबर अपने अपने गावँ लौट चुकी थी।लेबर को तथा स्टाफ को तो वेतन देना ही था,दिया गया।कब कारोबार शुरू होगा इसका अनुमान तक किसी को नही था।
किसी प्रकार यह समय भी व्यतीत हो गया। व्यवसाय फिर प्रारम्भ हो गये, पर कोरोना काल का झटका झिल नही रहा था
पूंजी की कमी साफ नजर आ रही थी। एक माह तो ऐसा आया कि वेतन देने के भी लाले पड़ गये।ऐसे में विपिन को चाचा जी का ध्यान आया।विपिन शाम के समय खुद ही चाचा जी के पास पहुंच गया।चिंटू मिला बोला, हाय भैय्या कैसे हो? विपिन ने कहा चिंटू वैसे सब ठीक है थोड़ा आर्थिक परेशानी आ गयी है।ओह भैय्या आप बैठो मैं पापा को बुलाता हूँ, असल मे मुझे कही जाना है,फिर मिलेंगे।
पापा बस आने वाले होंगे,कह चिंटू तो नौ दो ग्यारह हो गया।विपिन हतप्रभ था। उसे चिंटू से ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी।विपिन को जानकारी थी कि चाचा जी की स्थिति सही है और ऐसे समय मे दो चार लाख रुपये वे दे सकते है।लगभग आधा घंटे के इंतजार के बाद चाचा जी ड्राइंग रूम में आये।
विपिन ने उठकर उनका अभिवादन किया।चाचा जी ने हालचाल पूछा, चाय के लिये नौकरानी को बोल दिया।विपिन ने अपनी समस्या बताई।सुनकर चाचा जी बिल्कुल सपाट लहजे में बोले अरे विपिन आजकल पैसे कहाँ रखे हैं?यहां का भी यही हाल है।
विपिन फिर हक्का बक्का रह गया, कोई सहानुभूति के शब्द तक नही,कोई मार्ग खोजने की योजना पर बात तक नही।बैठना भारी हो रहा था।सुधा की बात याद आ रही थी कि चाचा जी कही साइड न ले रहे हो।फिर भी विपिन ने चाचा जी से ही कहा कि उन्होंने कई लाख रुपये आपके दामाद और चिंटू को दिये हुए हैं, ऐसे में यदि वो ही मिल जाये तो मेरा काम हो जायेगा।चाचा जी ने टका सा उत्तर दे दिया।भई वो सब तुम लोगो के बीच का लेन देन है,मुझे बीच मे मत डालो।
विपिन समझ गया कि मधुर रिश्ते तभी तक थे जब तक वह इनके लिये एटीएम था।चूंकि मशीन में कैश समाप्त हो गया था तो एटीएम फिर किस काम का?
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
स्वरचित एवं अप्रकाशित।