“रिश्ता पक्का हो गया है, लड़का बहुत बड़ी कंपनी में इंजीनियर है”
पापा ने खुशी खुशी मिठाई दादी के मुँह में खिलाते हुए कहा। दादी भी बहुत खुश हो गई थी।
मुझसे दो साल बड़ी दीदी उठकर वहां से चली गई। वजह मैं जानता था।पर दीदी खुलकर ये बात मुझसे भी नहीं कहती।माँ बचपन में ही हमे छोड़ दुनिया से जा चुकी है। पापा और दादी से ये बात बोलना दीदी के लिए बहुत दूर की बात है।पापा थोड़ा कम बात करते हैं और दादी बहुत गुस्सा करती हैं। छोटी बात पर भी। ऐसा नहीं है कि पापा और दादी हमें प्यार नहीं करते। बस ये सब बातें हम उनसे नहीं कह सकते हैं। पापा ने मिठाई का डब्बा मुझे पकड़ा..
“लगता है शरमा गई गुड़िया..जाकर उसका भी मुँह मीठा करा दे।
“जी पापा”
मैं दीदी के कमरे की तरफ बढ़ा। वो खिड़की की तरफ मुँह किये पंकज के घर की तरफ देख रही थी। दीदी उस पंकज वर्मा से बहुत प्यार करती है। और वो भी।मैंने बहुत बार देखा है उन्हें एक दूसरे को देखते और बातें करते। शुरू में मुझे बहुत गुस्सा आता था। पर मैंने धीरे धीरे पता किया पंकज बहुत सीधा और अच्छा लड़का है।
सच्चा प्यार करता है दीदी से।आहट सुन दीदी ने पलट कर मुझे देखा। आँखों में हल्के आँसू थे उनके। उन्होंने मुझे देख फिर अपनी झूठी हँसी बिखेर दी। दीदी ऐसे ही करती है। बचपन से! वे अपने दुःख, आँसू, जरूरतें सब छुपा लेती है हमसे। पर कभी मुझे दुःखी नहीं रहने दिया। सच बताऊँ तो माँ की कमी कभी उतनी खलने नहीं दिया दीदी ने।
“दीदी मुँह मीठा कर लो अपना, पापा ने कहा है
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मैं मन ही मन सोच रहा था काश मैं उनका भाई नहीं छोटी बहन होता, वो खुलकर मुझसे ये सब कहती। और काश आज माँ होती तो दीदी शायद इतनी विवश नहीं होती। मिठाई के डब्बे को रखते हुए ना जाने कब मेरी आँखें भीग आईं। उन्होंने देख लिया
“तुझे क्या हुआ गुड्डू?” दीदी के ये पूछते ही ना जाने मुझे क्या हो गया।
“आप और पंकज प्यार करते हैं ना दीदी?”
दीदी थोड़ी सकपका सी गईं। पर मेरे आँसू देख उनसे झूठ ना बोला गया।
“हाँ भाई.. बहुत” वे रो पड़ी। मुझसे उस बहन के आँसू नहीं देखे जा रहे थे जिसने कभी किसी चीज़ के लिए मुझे रोने नहीं दिया है। मैं वहाँ से पापा और दादी के पास चला आया
“पापा! दीदी वहाँ शादी नहीं करेंगी” मेरे मुँह से अचानक ये सब सुनकर वे आश्चर्य से मुझे देख रहे थे
“हाँ पापा, दीदी कुछ नहीं कहती हमसे पर अपनी शादी का फैसला तो उनका होना चाहिए ना।दीदी वर्मा अंकल के बेटे पंकज को बहुत चाहती है, वो बहुत अच्छा लड़का है पापा। आप तो जानते हैं ना उन्हें। स्कूल में पढ़ाता है, बहुत खुश रखेगा दीदी को” हाथ जोड़े बिना उनसे नज़रे मिलाए पापा से ये सब कहते हुए मेरा गला भर्रा आया। मैं पापा की तरफ देखने की हिम्मत अब भी नहीं कर रहा था। फिर अचानक पापा ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया।
“तू भेज जरा गुड़िया को”
मैं दीदी को लेकर वापस इस कमरे की तरफ बढ़ा पापा फोन पर बात कर रहे थे.
“जी बहुत क्षमा चाहता हूँ आपलोगों से..मेरी बिटिया किसी को पसंद करती है.. वो उसी से शादी करेगी”
कमरे में पहुँचते ही पापा ने फोन रख दिया और हमें देखने लगे
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पापा की भरी हुई आँखे देख दीदी भी उनसे लिपट कर रो पड़ी
” मैं तेरी माँ नहीं हूँ तो क्या..तेरा पापा तो हूँ…! “
विनय कुमार मिश्रा