माँ का घर – रीटा मक्कड़

आज भी अनिता को वो दिन याद है ।जब पापा की ह्रदय गति रुकने से अचानक मृत्यु हो गयी थी।उसके बाद तो घर का माहौल ही बदल गया था। बिज़नेस पर बड़े भाई और घर पर भाभी का एक छत्र राज्य शुरू हो गया था।

माँ का तो जैसे किसी ने राजपाठ ही छीन लिया था। कहाँ तो घर के हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े फैसले माँ की मर्जी से ही लिए जाते और  अब ये हालात थे कि

पूछना तो क्या कुछ बताना भी जरूरी नही समझा जाता था।

फिर वो दिन भी आ गया जब दोनो भाईयों ने सारी प्रॉपर्टी का बंटवारा करने का फैसला ले लिया।

अनिता का मन आज बहुत ही बेचैन था। कितनी देर हो गयी थी उसको मंदिर में हाथ जोड़ कर भगवान के आगे दुआ मांगते।

शायद भगवान को बार बार यही कह रही थी कि हे प्रभु अगर बेटों के घर मे माँ के लिए जगह नही बची है तो तेरे घर मे तो जगह की कमी नही न। तुम माँ को अपने घर मे ही जगह देदो।उसको अपनी शरण मे ले लो।

अनिता की आंखों से आंसू बह रहे थे और दिमाग में उथल पुथल मची थी।बंटवारे के बाद दोनो भाईयों के अपने अपने घर बन गए थे। उसदिन जब वो माँ को मिलने बड़े भाई के घर गयी थी तो माँ ने बोला,”ये तो तेरे बड़े भाई का घर है न और दूसरा छोटे भाई का। फिर तेरी माँ का घर कौन सा है।सुन कर अनिता के कलेजे में हूक सी उठी थी। कहने को तो उसने माँ का दिल रखने को कह दिया था ,”मम्मी तो क्या हुआ,तुम्हारे तो दोनो ही घर हैं ना।ये तो दुनिया की रीत है जितने बेटे उतने घर।तेरा तो जहां मन करे वहीं रहना अब ठाठ से।

लेकिन इंसान जब सच्चाई से अवगत होता है तो पता चलता है कि सच कितना कड़वा होता है।और दो बेड़ियों में पैर रखने वाला तो हमेशां ही डूबता है।बेटों की बड़ी बड़ी कोठियां तो बन गयी लेकिन उसमे माँ के लिए एक भी अलग कमरा नही बना जहां वो सकून से रह सके।




माँ जिस बेटे के घर भी जाती उसको एक मेहमान समझा जाता कि चलो कुछ दिन रहेंगी फिर तो दूसरे घर ही जाएंगी। माँ को फुटबॉल की तरह कभी इधर तो कभी उधर धकेल दिया जाता।

अनिता का मन तो करता कि वो माँ को अपने साथ रखे लेकिन वो भी ससुराल में रह कर अपनी मजबूरियों से बंधी थी। अब उसको समझ आ रहा था कि ये वृद्धआश्रम क्यों बने हैं।

अनिता को अचानक से लगा कि उसका फोन बज रहा है।भगवान के आगे हाथ जोड़ कर अनिता उठी ये सोचते हुए कि इतनी सुबह किसका फोन होगा।

देखा तो बड़े भाई का फोन था।उसने उठाया तो भाई ने एक ही वाक्य कहा,”माँ चली गयी।

माँ रात को सोई तो सुबह उठी ही नही।

अनिता फोन रख कर रोते रोते फिर से मंदिर में आकर हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी।वो जड़ ही हो गयी थी और हैरान थी इस बात से कि आज भगवान ने उसकी प्रार्थना इतनी जल्दी कैसे स्वीकार कर ली थी।

स्वलिखित एवम मौलिक

रीटा मक्कड़

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