लफ्जो मे नही हकीकत मे बराबर कर दो ना – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” बहनजी हमे तो आपकी बेटी बहुत पसंद है बस लड़का लड़की दोनो आपस में बात कर लें फिर रिश्ता पक्का कर देते है आखिर जिंदगी तो इन्हे ही बितानी है साथ में !” लड़की देखने आई लड़के की मां स्मिता बोली।

” सही कहा बहनजी जाओ श्रीति ( लड़की) देवांश ( लड़का) को टैरेस दिखा लाओ।” लड़की की मां निरूपा ने अपनी बेटी से कहा। श्रीति देवांश को ले छत पर आ गई और दोनो वहां पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए।

” श्रीति जी मुझे तो आप पसंद है बाकी आपको कुछ पूछना हो तो पूछ सकती हैं?” देवांश श्रीति से बोला।

” देखिए देवांश जी मैं आज के जमाने की लड़की हूं जिसके लिए खुद का आत्मसम्मान बहुत मायने रखता है । मैने अपनी बहुत सी दोस्तों से सुना है कि शादी के बाद लड़की की खुद की जिंदगी कुछ नही रह जाती इसलिए मुझे तो शादी के नाम से ही डर लगता है !” श्रीति ने अपने मन की बात कही।

” श्रीति जी मेरी नौकरी मुंबई में है जहां हम दोनो को ही रहना है मम्मी पापा तो भाई भाभी के साथ रहते है और वैसे भी मैं औरतों की बहुत इज्जत करता हूं और उन्हें बराबर का दर्जा देता हूं। आप शादी के बाद नौकरी करना चाहे तो मुझे कोई दिक्कत नही मैं हर मोड़ पर आपका साथ दूंगा ये मेरा वादा है  !” देवांश ने श्रीति से कहा।

श्रीति देवांश की बातों से बहुत प्रभावित हुई और दोनो की रजामंदी होने पर घर वालो ने शादी पक्की कर दी और तय समय पर श्रीति देवांश की पत्नी बन उसके घर आ गई। पंद्रह दिन परिवार वालों के साथ रह वो देवांश के साथ मुंबई आ गई। दोनो ने अपनी जिंदगी की नई शुरुआत की थी दोनो खुश थे। शादी के बाद सब कुछ बहुत अच्छा था। कुछ समय बाद श्रीति ने भी नौकरी करनी शुरू कर दी थी। 

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” देवांश आज मुझे जल्दी ऑफिस जाना है प्लीज तुम मेरी मदद कर दो !” एक सुबह श्रीति देवांश से बोली।

” श्रीति यार प्लीज मुझसे ये सब काम नहीं होंगे। तुम्हे साफ सफाई से सब काम करने का शौक है तो तुम्ही करो मुझे बक्शो मैं अकेला जब रहता था ये सब नही सोचता था ।” देवांश मोबाइल में लगे हुए बोला।

श्रीति ने उस वक्त कुछ बोलना उचित ना समझा और जल्दी से काम निपटाए और ऑफिस को रवाना हुई। उसे नौकरी करते एक साल हुआ था कि पता लगा वो प्रेगनेंट है। अब श्रीति पर काम का बोझ बढ़ गया तो उसने एक मेड लगा ली। तय समय पर उसने एक बेटे को जन्म दिया उस वक्त उसकी सास आई थी और जब बच्चा दो महीने का हो गया तो वापिस चली गई क्योंकि उसके ससुर की भी वहां नौकरी थी और जेठानी के बच्चे भी दादी को याद करते थे।

” देवांश आज से मेरा भी वर्क फ्रॉम होम शुरू है तो आप मेरी थोड़ी मदद कर दीजिए !” बच्चे के चार महीने का होने पर श्रीति एक सुबह देवांश से बोली।

” मेड है तो तुम्हारी मदद को !” देवांश फोन में लगे बोला।

” मेड छुट्टी पर है आज वैसे भी मेड सिर्फ सफाई बर्तन करती है बाकी काम मुझे ही करने होते हैं बच्चे के भी काम है तो तुम भी घर से ही काम कर रहे हो मेरी थोड़ी मदद कर सकते हो !” श्रीति ने उसके हाथ से फोन लेते हुए बोला।

” ये क्या बदतमीजी है श्रीति तुम मुझसे क्या एक्सपेक्ट कर रही हो मैं बच्चे की नैपी बदलूं या खाना बनाऊं !” फोन छिनते देख देवांश चिल्ला कर बोला और श्रीति के हाथ से फोन ले लिया। आज से पहले देवांश इतनी तेज आवाज में कभी नहीं बोला था तो श्रीति सकते से में आ गई और उसे गुस्सा भी बहुत आया।

” नैपी बदलने से तुम छोटे नही हो जाओगे बच्चा हम दोनो का है जब मैं सारा दिन बदल सकती तो तुम क्यों नही…तुमने तो कहा था तुम औरतों को बराबर का दर्जा देते हो पर वो सिर्फ कहा था किया नही शादी के बाद एक बार भी तुमने मुझे अपने बराबर नही समझा।… मैं तुम्हारे साथ बराबर से कमा रही पर तुम तुम कहां बराबर से मेरे साथ खड़े हो !” श्रीति गुस्से में हांफती हुई बोली।

” मतलब क्या है तुम्हारा मैने हमेशा तुम्हे बराबरी का दर्जा दिया है । तुमने जॉब को कहा मैने मना किया क्या !” श्रीति का गुस्सा देख देवांश नर्म लहजे में बोला।

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” जॉब करना मेरा हक है और बराबरी से मेरा मतलब यही है कि जब मैं कमा रही हूँ तो तुम भी घर के काम करवा सकते हो साथ में तब हम बराबर होंगे …. मैं अगर बच्चे की नैपी धो रही तो तुम बॉटल में दूध भर दोगे तब हम बराबर होंगे … मैं ऑफिस के काम में लगी और तुम फ्री हो तो तुम बच्चे की नैपी बदल दोगे तब हम बराबर होंगे सिर लफ्जों में कह देने भर से बराबर नही होते और अगर तुम ये नही कर सकते तो बराबरी का झूठा ढोंग भी मत करो !” श्रीति गुस्से में बोल बेटे की बॉटल उठा रसोई में आ गई। एक गैस पर दूध रखा उसने दूसरे पर सब्जी का कुकर चढ़ाया। 

दूध गर्म होने पर उसे बॉटल में भर कर वो बेटे को पिलाने लाने लगी जैसे ही वो कमरे में दाखिल हुई उसने देखा देवांश बच्चे की नैप्पी बदल रहा है क्योंकि बच्चे ने नैप्पी गीली कर ली थी। श्रीति उसे नैपी बदलते देख मुस्कुरा दी।

” अरे वाह देखो मुन्ने राजा तुम्हारा दूध आ गया ….लाओ श्रीति इसे दूध मैं पिलाता हूं तुम खाना बना लो जल्दी से !” देवांश दूध की बॉटल पकड़ते बोला और आंखों आंखों में श्रीति से माफी मांग ली तो श्रीति ने भी मुस्कुराते हुए आंखों आंखों में उसे माफ कर दिया और काम में लग गई ऑफिस का समय जो होने वाला था।

दोस्तों आजकल के समय मे जब औरतें बाहर जा कमा रही तो पुरुषों का फर्ज है घर के काम मे बच्चे पालने मे औरतों का साथ दे रिश्ता तभी बराबर का होगा सिर्फ औरतों को नौकरी की इजाजत देने से नही क्योकि नौकरी करना और आत्मसम्मान से जीना तो उनका हक है ।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

आत्मसम्मान

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