क्यूंकि सास भी कभी बहू थी – पूर्णिमा सोनी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : लीजिए मां जी… आज मैंने शाम के नाश्ते में मटर के छोले बनाए हैं

बहू, नमिता ने ट्रे में सजी हुई कटोरियां, अपनी सासू मां सरिता जी के आगे कर दिया।

 मटर के छोलों पर कटे हुए प्याज,हरी धनिया की चटनी, नमकीन,सोंठ की लाल चटनी,तले हुए आलू का पीस….करीने से सजी कटोरी…  मतलब देखते ही मुंह में पानी आ गया सरिता जी के

 सच!

 यही समय होता है, बहुत जोरों की भूख लगती है( उन्हें)

 जीभ ऐसी लपलपाती है कि मन करता है चाट वाले से मंगा कर … कुछ खा लें…. पहले तो खा ही लेती थीं, मगर जब से ये ( नामुराद) बहू आ गई है.. कुछ भी कहने से पहले 

 ऐसा सब कुछ तैयार करके रखती है,… कि कुछ पूछो मत

 खा तो लिया है,सब कुछ चाट – चाट कर.. बल्कि  और मांग – मांग कर,मगर बहू को कहीं भ्रम हो गया कि वो  सब कुछ बहुत अच्छे से संभाल रही हैं… मतलब  तारीफ करने से बिगड़ गई तो?

 फिर सिर चढ़कर नाचने लगी तो??

 ओह नो.. नेवर

 मैं चढ़ने ही नहीं दूंगी… ( पहले ही उतार दूंगी)

 नमिता ,सासू मां को चाय पकड़ाते हुए बहुत आशा भरी निगाहों से देख रही थी, कि मां जी प्रसन्न होकर ( कुछ) तारीफ़ करेंगी

  देखो बहू नाश्ता बनाते समय इस बात का ख्याल रखा करो कि कोई ऐसी चीज़ ना बनाओ जो किसी को नुक़सान करें,अपच हो, बदहजमी हो…. बाबूजी को भी मटर नुकसान करेगी….. और मेरा तो ये चाट – चटपटा खा कर तबियत ही बिगड़ने लगती है.. ब्लड प्रेशर ही बढ़ जाता है..

 नमिता, बेचारी सकपका कर नाश्ते के बर्तन समेटती हुई चली गई 

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 मंदिर… मंदिर जाना है तुम्हे?

 शाम का खाना कौन बनाएगा?… क्या मैं जानती नहीं हूं ये सब काम से बचने के… घूमने के बहाने है… एक हम थे , चुपचाप अपनी गृहस्थी संभालते थे….. रोज़ रोज़ बाजार जाना ये कोई अच्छी बात है

??

 नमिता चुपचाप  रसोई की तरफ बढ़ रही थी….

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 जी भैया… मैं बना दूंगी ना!

 बायलोजी तो मेरा प्रिय सब्जेक्ट रहा है… प्रैक्टिकल फाइल के डायग्राम  बनाने में तो मुझे बहुत मजा आएगा..

 नमिता जो रिंकू को इतनी देर से उसे एक्जाम के लिए पढ़ाने में व्यस्त थी…. रिंकू जो पड़ोस में रहता था और दूर के रिश्ते का देवर लगता था

 अचानक सरिता जी अंदर घुसी

 ये देवर के साथ हंसी-मजाक मुझे पसंद नहीं है

 हंसी मज़ाक?…. मगर मैं तो उसे पढ़ा रही थी मां जी

 आगे से इस घर में दिखाई नहीं पड़ना 

 साॅरी भाभी…. अब नहीं पढूंगा आपसे… मुझे नहीं पता था आपको ऐसे डांट पड़ेगी…..

 नमिता हतप्रभ ,देख रही थी, अपनी सासू मां  को 

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कटहल की सब्जी अच्छी तो बनी है….. मगर रामू कुछ अलग ही बनाता था…. सरिता जी जैसे यादों के हिंडोले में झूलती हुई अतीत में देख रही थी

 रामू कौन  मां जी?

 अरे रमेश चाचा, तेरे( ओह तो रमेश चाचा, जिनका घर काफी दूरी पर था)

 अच्छा उन दिनों वो अपने हाथ की बनी सब्जी आपके लिए भिजवाया करते थे?

 अरी कहां….. मेरी सास मुझे भून के ना खा जाती

 वो पिछली वाली छत से लटक कर कटोरा पकड़ा दिया करता था …. और मैं लटक कर कटोरा पकड़ा करती थी

 पता है  एक बार तो  मैं कटोरा पकड़ते – पकड़ते, गिरते – गिरते बची थी…. कुछ पूछा मत हम दोनों ऐसा पेट पकड़ कर हंस रहे थे…. फिर मैं कटोरा  आंचल में छुपा कर नीचे आई…. अपनी सासू मां से छुपा कर खाई थी मैंने…

 और नमिता सोच में डूबी थी कि उस जमाने में जब मोबाइल नहीं था तब मां जी को कैसे पता चलता था  कि चाचा जी छत पर  पिछले घर की छत पर सब्जी का कटोरा लेकर खड़े हैं?

 मां चाचा जी  को आपसे बात भी ना करने देती होंगी दादी तो…

  मैं तो मंदिर जाने की कह कर खूब पिक्चर देखने जाती थी……

अरी मैं इतना दिन रात एक ना किए रहती थी ( तेरी तरह)

 कि रसोई में घुस कर तरह तरह के पकवान बनाने में लगी रहूं… दाल- चावल, और भाजी बना कर रख देती थीं….

 अचानक  मां जी को खांसी का ठसका लगा

और उसके साथ ही  वो अतीत के हिंडोले से वापस वर्तमान में आ गई

 सामने नमिता बहू खड़ी थी

 नमिता बहू भौंचक्का खड़ी थी 

क्यूंकि सास भी कभी बहू थी

 तब क्या वो सिर्फ गऊ थी??

 नमिता आज  समझ रही थी कि उसकी सास उन लोगों में से नहीं थी जो उन्होंने अपने समय में जो पाया था उससे बढ़कर अगली पीढ़ी को दें….. बल्कि अपने बच्चों को धकेल कर और रसातल में कर दे

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 नमिता घर में घुसते हुए मां जी से बोली…  मंदिर जाने का मन  था,वहीं होकर आ रही हूं, मंदिर के नाम पर  पिक्चर नहीं गई थी… मैंने कुछ बच्चों को ट्यूशन के लिए बोल दिया  है, रिंकू से भी बोलते हुए आ रही हूं…… अब मैं शाम को पढ़ाऊंगी … कुछ अपने मन का करूंगी….. ओह मां जी कितनी अच्छी हैं आप….. आपने मुझे जीवन में आगे बढ़ने में कितनी मदद की…. आप घुल-मिल कर बात ही नहीं करती थी….. वरना पहले ही मेरे आंख की पट्टी खोल देती…. भगवान ऐसी सासू मां सबको दे..

नमिता   मां जी के गले में झूलते हुए बोल रही थी

 सरिता जी से तो ना हां कहते बन रहा था और ना ही  ना!

अब भौंचक्का होने की बारी उनकी जो थी!!

बहू की कद्र ना करने वाली सासू मां की आंखों की पट्टी जो खुल गई थी 

सर्वाधिकार सुरक्षित 

 पूर्णिमा सोनी

  हिंदी कहानी, शीर्षक – क्यूंकि सास भी कभी बहू थी

वाक्य प्रतियोगिता #सासू जी तूने मेरी कदर ना जानी

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