कुछ कर्मो की माफ़ी नहीं होती। – रश्मि श्रीवास्तव”शफ़क”: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मीनल की अभी कुछ समय पहले ही कुणाल से शादी हुई है। उस के ससुराल में बहुत प्यार करने वाली मां जैसी सास कुमुद जी और पितृवत स्नेह करने वाले ससुर सुदर्शन जी थे।कुणाल अपने माता पिता की अकेली संतान थे इसलिए बहुत लाड़ प्यार से पले थे। मगर कुमुद्जी बहुत अनुशासनप्रिय है इसलिए कुणाल भी बहुत सुलझे और समझदार पति है।

इतना प्यार पाकर मीनल भी ससुराल में ऐसे रच बस गई जैसे हमेशा से यही रही हो। सबकुछ निर्बाध गति से चल रहा था। सुबह कुमुद जी और मीनल साथ में नाश्ता बनाते,नाश्ता कर के कुणाल ऑफिस निकल जाता और सुदर्शन जी कभी बागवानी कभी किताबों में डूबे रहते। सास बहू मिलकर खाली समय में दोपहर का खाना सुदर्शन जी के लिए बना के कभी बाजार चली जाती ,कभी फिल्म देखने।

मीनल को भी अपनी सास का साथ खूब भाता,वो सास कम सहेली ज्यादा थी। कुमुदजी को भी मीनल के रूप में बेटी मिल गई थी जो उन्हीं की तरह सरल और खुशमिजाज थी।मीनल भी बहुत खुश थी क्यूंकि कुमुद्जी बहुत ही मिलनसार और सरल स्वभाव की महिला थी।पास पड़ोस में भी सब कुमुद्जी की सराहना करते थे। मगर इन सब के बीच मीनल को बस एक बात खटकती थी।

उस के ससुर सुदर्शनजी नीचे कमरे में सोते थे जो शायद उस की दादी सास का कमरा था और सासू मां उपर के कमरे में।सबके साथ इतनी अच्छी तरह पेश आने वाली उस की सास न जाने क्यूं ससुर जी के साथ बहुत कम बात करती थी और अगर बात हुई भी तो बस काम से काम। मीनल ने इस बारे में अपने पति कुणाल से एक आध बार पूछा भी तो इस ने किसी न किसी बहाने से बात बदल दी।

अब तो मीनल की उत्सुकता बढ़ने लगी कि आखिर राज क्या है इस के पीछे ,मगर कुमुद्जी से पूछने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाई। दिन बीतते जा रहे थे और इसी के साथ मीनल की उत्सुकता भी। कभी कभी उसे अपनी सासू मां का व्यवहार ससुर जी के प्रति बिलकुल अच्छा नहीं लगता था मगर वो कुछ कर भी नहीं सकती थी।

एकदिन अचानक रात में सुदर्शन जी की तबियत खराब हो गई, बुखार से तप रहे थे। मगर किसी को भी पता नहीं चल सका क्योंकि वो नीचे अकेले ही सोते थे।सुबह जब मीनल चाय बनाने नीचे आई तो उस ने देखा सुदर्शन जी बेसुध से पड़े थे। वो बिल्कुल घबरा गई और आवाज लगा कर कुणाल और कुमुद जी को बुलाया। कुणाल उन्हें नजदीक के अस्पताल लेकर गया। कुछ जांच के बाद पता चला कि उनको टायफाइड हो गया है। पूरी देखभाल की जरूरत है। कुणाल ने एक सहायक की व्यवस्था की जो हर समय सुदर्शन जी के साथ रहे। कुमुद जी ने भी सुदर्शन जी के खाने और दवाइयों का पूरा ध्यान रखा। धीरे धीरे सुदर्शन जी ठीक होने लगे थे।

इन सब के बीच भी मीनल ने ध्यान दिया कि कुमुद जी निर्लिप्त भाव से बस अपना कर्तव्य निर्वहन कर रही थी। अब मीनल को अपनी सास पर गुस्सा आने लगा था और वो धीरे धीरे कुमुद जी से दूरी बनाने लगी थी। कुमुद जी भी सब समझ रही थी तो उन्होंने एकदिन मीनल को अपने कमरे में बुलाया और उस की बेरुखी की वजह पूछी। मीनल ने भी साफ साफ सब बोल दिया। कुमुद जी कुछ देर तक चुप रहने के बाद बोली ,तुम आज के सुदर्शन को देख रही हो जो अशक्त हो चुके हैं और अक्सर खामोश रहते हैं।

मगर ये हमेशा से ऐसे नहीं थे। मैं भी अपनी सास की इकलौती बहु थी और इनकी दो बहनों की इकलौती भाभी। मगर इन लोगो ने मुझे कभी घर का सदस्य समझा ही नहीं,इनके लिए मैं काम करने की मशीन थी,एक ऐसी नौकरानी,जिसे कभी पगार भी नहीं देनी पड़ती थी और जब तब चार बातें सुना दो। सुदर्शन जी हमेशा से अपनी मां के कमरे में ही सोते थे।

बस अपना पति धर्म निभाने ही कमरे में आते थे और थोड़ी देर में वापस। कभी उन्होंने रुकना भी चाहा तो मां जी तूफान खड़ा कर देती थी ,कभी उनकी सांस रुकने लगती थी,कभी भूत दिख जाता ,कभी कुछ और। कभी अगर मैं बीमार भी पड़ी तो ये सिर्फ दवा देने और खाना पहुंचाने आते थे और हमेशा सुनाते कि पता नहीं कैसी बीमार बेटी दे दी है तुम्हारे मां बाप ने। मायके जाने को तरस जाती थी मैं क्योंकि मेरे जाने के बाद खाना कौन बनाता। शुरू शुरू में मैं बहुत रोती थी मगर उस का किसी पर कोई असर नहीं पड़ा।

इसी बीच कुणाल का जन्म हुआ और तब मेरे अंदर जीने की ललक फिर से जगी और मैंने तभी तय किया कि कुछ भी हो जाए मगर मैं अपनी बहु को हमेशा अपनी बेटी बना कर रखूंगी। मैने कुणाल को हमेशा यही सिखाया कि लायक बेटा होने साथ साथ एक अच्छा हमसफर भी बनना अपनी पत्नी के लिए।तुम्हारी शादी से बस 2 साल पहले ही तुम्हारी दादीसास का देहांत हुआ है और तबतक तुम्हारे ससुर अपनी मां के साथ ही रहे। अब तुम शायद समझ सकती हो मैने कितना कुछ सहा है और अब पत्थर हो चुकी हूं। मीनल की आंखों में भी आंसू थे सबकुछ जान कर।

सुदर्शन जी अब ठीक हो चुके थे। एकदिन सब साथ बैठ कर चाय पी रहे थे तो सुदर्शन जी ने कुमुद जी से कहा,”कुमुद ,मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं, मैंने कभी भी तुम्हारे प्रति अच्छा व्यवहार नहीं रखा। मां का अच्छा बेटा बनते बनते तुम्हारे साथ नाइंसाफी करता गया।जीवन की इस बेला में मैं तुमसे माफी मांगना चाहता हूं ताकि मेरे मन का ये बोझ उतर सके। अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं और अब पश्चाताप करना चाहता हूं।जीवन की इस संध्याबेला में तुम्हारा साथ चाहता हूं।”

कुमुदजी ने भरी आंखों और रुंधे गले से बस इतना ही कहा,” तुमने बहुत देर कर दी सुदर्शन ये समझने, अब मुझे उन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता मगर तुम ये हमेशा याद रखना कि कुछ बातों की,कुछ कर्मों की कोई माफ़ी नहीं होती।तुम्हारा ये पश्चाताप अब मुझे मेरे पुराने दिन कभी वापस नहीं दे सकेगा और ना ही मेरे ज़ख्मों को भर सकेगा।”

ये कह कर कुमुद जी वहां से उठ कर चली गई और सुदर्शन जी उन्हें जाते हुए बस देखते ही रहे।

दोस्तों ये कहानी काल्पनिक है मगर आपके ख्याल से क्या कुमुद्जी का कहना सही है? क्या सच में कुछ कर्मों की माफ़ी नहीं होती?क्या सच में आपके कुछ कृत्य पश्चाताप की अग्नि से भी शुद्ध नहीं हो सकते??

आपके विचार कमेंट में अवश्य लिखे मुझे आपके कमेंट्स का इंतजार रहेगा।

स्वरचित मौलिक रचना

रश्मि श्रीवास्तव”शफ़क”

लखनऊ उत्तर प्रदेश

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