शशांक दिवाली आने वाली है, तुम्हारी नौकरी भी नही है… इस बार सब कैसे करना है ” श्रुति ने अपने पति से पूछा।
” श्रुति मैं खुद नही समझ पा रहा हर साल दोस्तों को उपहार देते थे इस बार अकेले तुम्हारी तनख़्वाह से घर चल रहा वही बहुत है । ” शशांक ने रूआसा होते हुए कहा।
” शशांक दिवाली तो खुशियों का त्योहार है तो हम लोग इतना परेशान क्यों है…. ” श्रुति ने शशांक को रुआसा होते देख कहा।
” पर श्रुति जब सब उपहार लेकर हमारे घर आएँगे तो उन्हें खाली हाथ भी नहीं भेज सकते जबकि तुम्हे तो पता है हर साल हम ही सबके घर सबसे पहले जाते रहे हैं ! ” शशांक बोला।
” मैं तुम्हारी बेबसी समझ रही हूँ पतिदेव पर हर मुश्किल का हल होता है ” श्रुति ने रहस्यात्मक मुस्कान के साथ कहा।
” श्रुति तुम्हारा मतलब… ओह्ह मतलब तुम्हारे पास पहले से कोई योजना है ” शशांक ने फ़ीकी मुस्कान के साथ कहा।
” जी पति देव असल मे मैंने सोचा दिवाली खुशियों का त्योहार है इस दिन खुशियों के दीप जलने चाहिए जो जरूरी तो नही महंगे उपहारो से हो। फिर हम कहीं से पैसों का इंतज़ाम कर उपहार दे भी दें वो हमें ख़ुशी तो देंगे नही बल्कि बोझ ही डालेंगे… तो क्यों ना इस बार हम अपने सभी जानने वालो को एक एक पौधा उपहार मे दें….. बाकी उपहार जैसे मिठाई , चॉकलेट , क्रॉकरी लोग कुछ दिन मे भूल जायेंगे पर ये उपहार वक़्त के साथ बड़ा होगा और लोग हमें याद रखेगें ये एक अनोखा उपहार होगा ! ” श्रुति ने खुश होते हुए कहा।
” वाह! श्रुति तुम्हारा दिमाग कितना चलता है मेरा एक दोस्त है उसकी नर्सरी है पौधों की मैं कल ही उससे बात करता हूँ…! शशांक की आँखों मे अब चमक थी।
“सच मे श्रुति तुम सही मायने मे एक अर्धांगिनी हो जो मेरी हर मुसीबत हल कर देती… मेरी दिल वाली बीवी! “
” बस… बस जी इतनी तारीफ़ नहीं वैसे भी चिंता मत करो तुम्हारी नौकरी लगते ही अगली दीवाली तुम्हारा मोटा खर्च कराने वाली हूँ मैं ” श्रुति ने अदा के साथ कहा।
“जो हुकुम मेरे आका ” शशांक ने झुकते हुए कहा।
दोनों खिलखिला के हँस दिये…
सच मे दिवाली खुशियों के दीप जलाने का त्योहार है तो यूँ पैसा उधार ले झूठी शान दिखाना और बाद मे पछताना कोई समझदारी नही है इससे अच्छा है समझदारी और सूझ बूझ से चला जाये जिससे वो दीप सालों साल घर और जिंदगी रोशन करे ना कि कर्ज का अंधेरा लेकर आये ।
धन्यवाद
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल