खुशी की तलाश – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

सुबह के दस बजे थे। नयन अपने लैपटॉप पर सिर झुकाए बैठा हुआ था। कमरे में तनाव का माहौल छाया हुआ था। कनक की आवाज़ ऊँची हो चुकी थी, और उनकी बहस हॉल तक पहुँच गई थी।

चारुलता जी अख़बार समेटकर बोलीं,
“देखो कैसी बहू आई है, जब से आई है घर में चैन नहीं है। नयन एक बोलता है, तो ये चार सुना देती है। औरतों को बोलना आता है पर मर्द कब किसी की सुनकर चुप रहते हैं? बात बढ़ती है और हाथ भी उठ ही जाते हैं। सही कह रही हूँ ना? अब चलो, जाकर इन्हें चुप करवाओ नहीं तो पड़ोसियों तक खबर पहुँच जाएगी।”

रामशंकर जी बड़े आराम से अख़बार मोड़कर बोले,
“अरे, पति–पत्नी का मामला है। खुद ही सुलझा लेंगे। हम गए तो आग में घी डालने जैसा होगा। झगड़ा और भड़क जाएगा।”

तभी कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और नयन बाहर आ गया। उसके चेहरे पर गुस्सा और लाचारी साफ़ झलक रही थी। वह बिना किसी से बात किए सीधे लैपटॉप खोलकर काम में जुट गया।

चारुलता ने मौका देखकर पूछा,
“क्या हुआ बेटा? जो तुम दोनों आज महाभारत पर उतर आए हो।”

नयन झुँझलाते हुए बोला,
“माँ, अब आप मेरा सिर मत खाइए। एक तो उस औरत ने जीना हराम कर रखा है, ऊपर से ऑफिस का काम ख़त्म नहीं होता। दिल करता है कहीं भाग जाऊँ।”

रामशंकर जी ने बेटे का सिर सहलाते हुए कहा,
“बेटा, गुस्से में मत बोलो। आखिर हुआ क्या है?”

नयन ने गहरी साँस ली और अपनी झुंझलाहट ज़ाहिर की।
“पापा, ऑफिस में एक नया प्रोजेक्ट लॉन्च होना है। पूरी टीम दिन-रात लगी हुई है। सीनियर मैनेजर ने अल्टीमेटम दिया है — दस दिन में काम पूरा करो। घर आकर भी मीटिंग्स करनी पड़ती हैं। अभी कॉल पर था, तभी कनक ने डांटना शुरू कर दिया।

उसे हर वक्त कहीं बाहर घूमने का मन करता है। उसकी सहेली जहाँ जाती है, सोशल मीडिया पर पोस्ट करती रहती है। उसे देखकर कनक भी ज़िद करने लगती है। अभी मीटिंग चल रही थी और वो ऊपर से कहने लगी चलो बाहर चलते हैं। मैंने मना किया तो राग अलापना शुरू कर दिया। कहने लगी — मम्मी-पापा से डरते हो, कहीं लेकर नहीं जाते।

एक तरफ़ बॉस की डांट, दूसरी तरफ़ इसकी ज़िद। सच कहूँ, तो आग में घी डालने जैसा हो गया। मैं चिल्लाया, चुप हो जा। पर वो कहाँ चुप होती! गुस्से में हाथ उठा दिया। अब कह रही थी मायके चली जाऊँगी। मैंने भी कह दिया — चली जाओ। कुछ दिन चैन से काम कर लूँगा।”

उसकी आवाज़ में दर्द  और गुस्सा दोनों थे।

रामशंकर जी ने बेटे की बातें ध्यान से सुनीं और शांत स्वर में बोले,
“बेटा, मैं मानता हूँ कि काम बहुत है और दबाव भी है। पर गुस्से से रिश्ते नहीं संभलते। बहू की भी अपनी भावनाएँ हैं। उसका भी मन होता होगा बाहर घूमने का, तुम्हारे साथ वक्त बिताने का। उसे प्यार से समझाओगे तो मान जाएगी। झगड़ा करोगे तो दूरियाँ बढ़ेंगी।”

फिर उन्होंने पत्नी की ओर देखा,
“चारुलता, तुम जाकर बहू को समझाओ।”

चारुलता कमरे में पहुँचीं। कनक बिस्तर के किनारे बैठी थी, आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे। उसे देखकर चारुलता का मन पिघल गया।

“बहू, ये सब क्यों कर रही हो? नयन कुछ दिनों से काम में व्यस्त है। हमें सब दिखाई दे रहा है। नौकरी आज के समय में कितनी मुश्किल से मिलती है और उसे बचाए रखना उससे भी कठिन है। अगर वो काम पर ध्यान नहीं देगा तो कल तुम्हें कहीं घूमाने लायक भी नहीं रहेगा। तुम थोड़ा उसको समझो और साथ दो। हर दिन का ये झगड़ा तुम्हारे रिश्ते को खाई में गिरा देगा।

वैसे तुम्हारा घूमने का मन है, तो मुझे बता देना। मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ। या फिर अपनी सहेली के साथ घूम आओ। इसमें किसने मना किया है?”

कनक ने आँसू पोंछे और धीमे स्वर में बोली,
“माँ जी, मैं नयन को समझती हूँ। पर सच बताऊँ तो मुझे घर में बहुत अकेलापन महसूस होता है। शादी से पहले जॉब करती थी, तो व्यस्त रहती थी। अब पूरा दिन खाली-खाली सा लगता है। बाहर जाकर मूड बदलता है, इसलिए बोलती रहती हूँ। पर नयन को लगता है मैं उसकी परेशानी बढ़ा रही हूँ।

अगर आप लोग समझें तो मुझे फिर से जॉब करने की इजाजत दे दें। मैं भी व्यस्त रहूँगी और उसे भी ताने नहीं मारूँगी।”

चारुलता ने गहरी साँस ली और मुस्कुराकर कहा,
“अगर तुम्हें इसमें खुशी मिलती है, तो फिर तुम जॉब कर सकती हो। इसमें बुराई ही क्या है? मैं रामशंकर से बात कर लूँगी।”

अगले दिन रात के खाने पर रामशंकर जी ने बेटे से कहा,
“नयन, हमें तुम्हें और कनक को एक बात कहनी है। कनक फिर से जॉब करना चाहती है। वह भी व्यस्त रहेगी तो तुम्हारे बीच झगड़े की वजहें कम होंगी।”

नयन चौंक गया। उसने कनक की ओर देखा।
“जॉब? पर घर का क्या होगा?”

चारुलता बोलीं,
“घर का काम मैं और कनक मिलकर बाँट लेंगे। अभी भी तो ज़्यादातर काम नौकरानी करती है। बहू अपना समय सही दिशा में लगाए तो बुरा क्या है?”

रामशंकर जी ने जोड़ा,
“देखो बेटा, जीवन में समझ और संतुलन जरूरी है। तुम दोनों का रिश्ता तभी टिकेगा जब एक-दूसरे की ज़रूरतों को समझोगे। बहू की खुशी तुम्हारे लिए उतनी ही जरूरी है जितनी तुम्हारी नौकरी।”

नयन का चेहरा नरम हो गया। उसने कनक की ओर देखकर कहा,
“ठीक है। अगर तुम्हें जॉब करनी है तो करो। पर ध्यान रखना, मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। घर को सँभालना भी उतना ही जरूरी है।”

कनक की आँखों में चमक आ गई। उसने सिर झुका लिया।

धीरे-धीरे घर का माहौल बदलने लगा। कनक ने पास के स्कूल में टीचर की नौकरी ज्वॉइन कर ली। सुबह वह बच्चों के साथ व्यस्त रहती, शाम को घर आकर ससुराल का काम संभालती। नयन भी जब ऑफिस से लौटता, तो अब उसे ताने सुनने के बजाय मुस्कुराते चेहरे और गरम चाय मिलती।

कभी-कभी दोनों सप्ताहांत पर बाहर घूमने भी जाते। कनक अब पहले जैसी ज़िद्दी नहीं रही और नयन का गुस्सा भी कम हो गया। चारुलता को भी सुकून था कि घर में शांति है।

रामशंकर जी गर्व से कहते,
“देखा, रिश्ते झगड़ों से नहीं, समझ से सँभलते हैं। बहू ने अपनी राह ढूँढ ली और बेटे ने धैर्य रखना सीख लिया। यही असली गृहस्थी है।”

कुछ महीनों बाद, एक दिन नयन ने कनक से कहा,
“सॉरी कनक। उस दिन जो मैंने गुस्से में थप्पड़ मारा, वो मेरी सबसे बड़ी गलती थी। अगर तुम चाहो तो मुझे कभी माफ़ मत करना।”

कनक ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराकर बोली,
“गलती हर इंसान से होती है। लेकिन उसे मान लेना ही सबसे बड़ी माफी है। हम दोनों ने सीखा कि रिश्ते सिर्फ़ प्यार नहीं, समझ और संतुलन से भी चलते हैं।”

और उस दिन से दोनों के बीच न सिर्फ़ प्यार, बल्कि गहरा विश्वास भी जन्मा।

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