Moral stories in hindi : शैलजा-सुनो आज से बाऊजी के दसवें तक सब औरतों को बाहर नहाना है। वहाँ पड़ोस की सभी औरतें होंगी, तो सर पर पल्लू, आँखें नीचे, अच्छे से साड़ी बाँधना, एड़ी ना दिखे। एक बात और अपने कपड़े वही धोकर हाथ में उठाकर ले आना।
प्रीति (शैलजा की बहू)-मम्मी मैं सबके सामने कपड़े कैसे बदल पाऊँगी, वो भी सर पर पल्ला रखते हुए। मैंने इससे पहले ये कभी नहीं किया। यहाँ के रिवाज बहुत अलग है पर मैं फिर भी कोशिश करती हूँ पर मम्मी ये थोड़ा मुश्किल है।
शैलजा- अब जो रिवाज है उसे तो निभाना पड़ेगा, सभी निभाते है, और तुम तो नयी दुल्हन हो तो सबकी निगाह तुम पर ही होगी।
प्रीति मम्मी की बात पर हामी तो कर देती है पर मन में दुविधा से भरी ये सोचती है कि कैसे करेगी ये सब।
थोड़ी देर बाद सबको बाहर स्नान करने बुलाया जाता है। प्रीति सबसे पीछे खड़ी हो जाती है और सबको देखती है कि सभी कैसे सबके सामने कपड़े बदल रहे है वो भी शरीर का एक अंग दिखे बिना।
वो भी पल्लू बढ़ाकर पहले ब्लाउज उतारती है पर एक बाँह उतरने के बाद जैसे दूसरी बाँह उतारने लगती है उसका पल्लू सर से सरक जाता है। वहाँ उपस्थित सब कहने लगती है कि शैलजा बहू को कुछ सिखाया नहीं। किताब की कीड़ा बहू ले आयी पर तौर तरीक़ा सिखाना भूल गई।
जैसे-तैसे प्रीति नहाकर कपड़े बदल घर के अंदर आती है और शैलजा जी उस पर बरस पड़ती है कि सिर्फ़ पैसा कमाना ही सब कुछ नहीं, समाज में कैसे रहना है ये शहूर भी सीख लो।
प्रीति आँखों में आंसू लिए सबके कपड़े तार पर डालने लगती है और सोचती है मैंने अपने घर में तो कभी ऐसा नहीं देखा, तो सीखने में समय तो लगेगा ना।
अगले दिन प्रीति ने सोचा मैं थोड़ा पेड़ की आड़ में नहा लूँगी, जैसे कोई देख भी नहीं पाएगा, और जल्दी भी हो जाएगा।
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सब औरतें इकट्ठा हो स्नान के लिए गई, आज फिर सबकी नज़र प्रीति पर ही थी। प्रीति सकुचायी सी बिल्कुल पीछे खड़ी थी, जैसे सबने नहाना शुरू किया वो भी पेड़ की आड़ में बाल्टी और मघा लेकर नहाने लगी, अचानक से उसे कुछ सुई जैसे चुभने का एहसास हुआ, पर उसने अनदेखा कर कपड़े पहनना शुरू किया। आज उसने जल्दी कपड़े पहन लिए थे, जिस कारण वो खुश थी कि आज मम्मी मुझे शाबाशी देंगी।
जैसे ही सब नहाकर अंदर आये, प्रीति बेहोश हो गई। सब औरतें बात करने लगी कि लगता शैलजा की बहू पेट से है, तभी चक्कर खाकर बेहोश हो गई। तभी एक औरत ने चिल्लाकर कहा अरे इसका शरीर तो हरा हो गया है। तुरंत प्रीति को पास के ज़िला अस्पताल ले जाया गया। वहाँ जाकर पता चला कि प्रीति को साँप ने काटा है।
ये सुनकर रचित (प्रीति का पति) आक्रोश में आकर बोला- ऐसा भी क्या रीति-रिवाज कि किसी की जान पर बन आए। ऐसे खोखले रीति-रिवाजों की उपेक्षा होनी चाहिए। कोई इंसान चला गया तो ज़रूरी है कि बाहर नहाने से ही उसे मुक्ति मिलेगी। किसी के जाने के बाद भूखे रहने से ही शोक प्रकट होता है क्या ? दसवाँ और तैहरवी के बाद भोग क्यों नहीं लगाया जाता। भोग तो रोज़ लगना चाहिए।
ये सब दक़ियानूसी रीति-रिवाज भगवान ने नहीं हम इंसान ने बनाए है जो आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये कही ना कही घातक साबित हो रहे है, जिसका जीता जागता प्रमाण आपके सामने है। माँ अगर आज प्रीति को कुछ हो गया मैं आपको क़तई माफ़ नहीं करूँगा।
कुछ देर बाद डॉक्टर आकर बताते है कि ज़हर तो निकाल दिया गया है शरीर से, बस दो घंटे तक देखना है अगर होश आ गया तो ठीक वरना ….
रचित ये सुन पास पड़ी मेज़ पर बैठ जाता है और भगवान से प्रीति की रक्षा की प्रार्थना करता है, दूसरी ओर शैलजा को भी अपने आप पर ग़ुस्सा आ रहा था और वो भी बस ये कह रही थी कि हे भोलेनाथ, एक बार मेरी बहू को ठीक कर दीजिए, मैं आगे से ऐसे रीति-रिवाजो का कभी समर्थन नहीं करूँगी।
कुछ घंटे बाद प्रीति को होश आ जाता है। रचित दौड़ता हुआ प्रीति के माथे को चूमकर कहता है पगली तुम इतनी पढ़ी लिखी होकर भी ये सब सहती रही एक बार तो मुझसे कहा होता। दरवाज़े के पास खड़ी शैलजा जी के आँखों से पछतावे के आंसू के अलावा मुख से कुछ भी नहीं निकल रहा था।
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आदरणीय पाठकों,
हमारे सनातन धर्म में मानवीय मूल्यों और रीति-रिवाजों का बहुत महत्व है, पर सनातन धर्म के मूल्यों और रीति-रिवाजों में ये कही नहीं अंकित हैं कि शरीर को कष्ट देकर उनका का निर्वहन किया जाए। मूल्यों में तो हमारे बड़ों का आदर-सत्कार, छोटों को प्यार, सबके प्रति एकसमान भावना का होना सम्मिलित है, ना कि समाज के कुछ लोगों को खुश करने के लिए ख़ुद को प्रताड़ना देना। मैं इस रचना से जो संदेश देना चाहती थी, उस उद्देश्य में कहा तक सफल हुई, अपनी प्रतिक्रिया देकर मुझे अवगत कराए।
सधन्यवाद।
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
रश्मि सिंह
नवाबों की नगरी (लखनऊ)