“सुबह से ही घर में बड़ी चहल पहल थी। दादी जोकि हर वक्त ” अरी मैया मे गई… अरी मैया मर गई “की रट लगाए कराहती रहती थी वह आज सुबह ही बड़ी बहु से चूल्हे पर पानी गर्म करके नहा लीं ।
हल्की क्रीम कलर की सूती साडी पहनकर चश्मा लगाकर बैठ गई चारपाई पर और दादा जी जो घर की तरफ सुबह की चाय पीकर जाते मुँह नहीं करते बिना आवाज दिये… सुबह से ही घर में ही बैठे हैं कितनी ही दफा दोनों बहुओं से पूछ चुके हैं कि घर में किसी चीज की कमी तो नहीं है।
सारे बच्चे भी आज सुबह से ही चहक रहे हैं। रात सोये भी बहुत देर से थे बार बार दादी से कहानियाँ सुनने को कह रहे थे इसी बीच मौका पाकर बुआ जी के बारे में पूछ लेते।
“दादी बुआ जी छोटी थी तब कैसी थी? “
“तुम्हारी बुआ बहुत है अच्छी लड़की थी। सबका कहना मानती थी और स्कूल में हमेशा अब्बल आती थी। अपने दादी बाबा का बहुत कहना मानती थी और मेरे घरेलू कामों में हाथ भी बँटाती थी। ” दादी ने प्रेममयी आवाज में खुशी से गदगद होते हुए कहा।
“दादी बुआ ने कहाँ तक पढाई की? “
“पढाई तो उसने पांचवी तक ही की क्योंकि उस वक्त हमारे गाँव में स्कूल नहीं थे न। ” दादी की आवाज अब हल्की पड़ गई थी।
“मगर शादी के बाद तुम्हारे फूफाजी ने उसको एम. ए. कराया था…! ” दादी की आवाज में फिर से खनक लौट आई थी।
“तभी तो मैं कहूँ अगर बुआ जी पढ़ी लिखी नहीं थी तो बैंक में रुपये कैसे गिन लेती हैं! ” छोटी पोती शिवानी ने मासूमियत से कहा तो सभी हंस पड़े।
“अरी बुद्धू… अगर बुआ जी पढ़ी लिखी नहीं होती तो उनकी जॉब ही कैसे लगती? ” पोते मयंक ने अपनी छोटी बहन शिवानी के सिर पर हल्की प्यार भरी चपत लगाते हुए कहा। फिर से सभी हंस पड़े।
“एक किस्सा सुनाता हूँ! ” पास की चारपाई पर लेटे दादाजी बोल पड़े।
“हाँ दादाजी.. हाँ दादा जी आप सुनाइये बुआ जी के बारे में कुछ! ” सभी बच्चे एक साथ चिल्ला पड़े।
“एक बार की बात है तेरी बुआ जब छोटी थी न तब उसको तैरने का बड़ा शौक था…। “
“तो क्या बाबा पहले भी स्विमिंग पूल होते थे क्या? “इस बार ऋतु की उत्सुकता ने उड़ान भरी।
” अरे नहीं बेटा…. तुम्हारी बुआ जी को हम गाँव के तालाव में नहला देते थे और उसी में वह तैराकी भी सीख गई धीरे धीरे। “दादा जी ने हँसते हुए कहा तो सभी बच्चे बहुत खुश हुए।
” और भी कुछ बताओ न दादा जी।! “शिवानी ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा तो उसका भाई मयंक ने उसके सिर पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा।
” अब मत बताना दादा जी। “शिवानी का मुँह रोतुडू सा हो गया और सभी बच्चे जोर जोर से हँसने लगे उसको देखकर।
” अब तो मैं एक किस्सा और सुनाऊंगा। “दादाजी ने शिवानी को दुलार कर और मयंक की तरफ आँखें तरेर ते हुए कहा।
” एक बार तेरी बुआ और मयंक तेरे पापा सुरेंद्र जब पहली दफा स्कूल गये तो तेरा पापा तो लगा बच्चों के साथ खेलने और तेरी बुआ उसका टिफिन चट कर गई और बाद में जब उसने टिफिन खोला तो वह खाली था। “
“फिर क्या हुआ दादाजी…….? “
“फिर क्या… फिर तो सुरेंद्र ने उसकी चोटी खींच ली और खूब पीटा… फिर तेरी बुआ ने जब घर आकर यह बात बताई तो पहले तो हम सभी बहुत हँसे लेकिन फिर मैंने तेरे पापा की बहुत पिटाई भी की क्योंकि उसने तेरी बुआ की पिटाई जो की थी। ” दादाजी ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
“इसी के चक्कर में मैं भी पिट जाता हूँ मम्मी से। ” मयंक ने शिवानी की तरफ मुँह बनाते हुए कहा तो सभी हंस पड़े।
“अब सब सो जाओ … सुबह को उठना भी तो है बुआ के स्वागत के लिए। ” सभी बच्चे भारी मन से अपने अपने कमरे में चले गए।
बहुओं.. बेटो और पोती पोताओं की अपनी बेटी के लिए प्रेम अपनत्व और स्नेह देखकर दादी और दादाजी खुशीसे फुले नहीं समा रहे थे।
माता पिता का दिल होता ही ऐसा है कि उनकी बेटियों को सदा मायके में उनके भैया भाभियों द्वारा प्रेम और सम्मान मिले जैसा कि उन्होंने किया अपनी बिटिया को।
“लो आ गई सुनैना। ” दादाजी ने गाड़ी की आवाज सुनते ही कह दिया तो सुनकर सभी बच्चे दरबाजे की तरफ दौड़ पड़े और बहुये तो नये नये पकवान बना रही थी अपनी प्यारी ननद के लिए।
सुनैना सबसे गले मिली अपने प्रति भाई और भाभियों की प्रीति देखकर उसकी आँखें भर आईं।
एक लड़की और चाहती ही क्या है भला।
“लीजिये दीदी यह खाइये… स्पेशल आपके लिए बनाई है मैंने… छोटी भाभी ने प्लेट सुनैना की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
” मत खाना सुनैना… यू ट्यूब से देखकर बनाती है… बहुत ही बुरी डिशेज। “छोटे भैया ने अपनी बीबी को चिढ़ाया तो सभी खिलखिलाकर हंस पड़े।
” आप भी न…! “भाभी ने उनकी तरफ आँखें तरेरी।
पूरा घर खुशियों से भर गया।
राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
(मौलिक कहानी)