कन्यादान – कंचन श्रीवास्तव 

घूंघट के भीतर से आंखों ने रेनू को ढूंढ़ लिया और जैसे ही दोनों की नज़रें मिली दोनों ही फफक पड़ी रेनू के सामने रिया का वही दुधमुंहा चेहरा सामने घूम गया जब हो रूई के फाहे से उसे दूध पिलाया करती थी। और

रिया भी  आंचल में मुंह डालके सारे आंसुओं को उड़ेल देना चाहती थी।चाची कहती  हैं कि   कैसे जन मतुआ बच्चे को दूध पिलाकर  बड़ा किया।कोई किरन से सीखे जब मां गुजरी तो उसकी भी कोई खास उम्र नहीं थी यही बारह चौदह साल । बेटे के चक्कर में रेखा  पांचवीं बेटी को  जनते ही  भगवान को प्यारी हो गई ।अब वो तो प्यारी हो गई पर गाज सारी इस नन्ही बच्ची पर गिरी कि कोई इसका  मुंह तक देखना नहीं चाहता था।जैसे  उसी ने मां को खा लिया हो।समझ नहीं आता कि इतना घटिया इल्जाम लोग उस पर लगा कैसे देते हैं,जिसने अभी दुनिया में कदम रखा है।

कोई ये क्यों नहीं समझता कि सबसे बड़ा नुक़सान तो उसी आ हुआ।

कि उसका प्रथम आहार उससे छिन गया ।वो आहार जो उसको ताकत वर बनाता रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता।

पर नहीं लोग इतने घटिया घटिया इल्जाम लगाकर उसे घृणित दृष्टि से देखते हैं कि पूछो न फिर सबसे ज्यादा तो वो पुरुष जो बाप बन कर उसकी जिंदगी में आता है फूटी आंख देखना नहीं चाहता और किनारा कर लेता है।

उस वक्त रेनू  ने उसे सीने से लगाया और गाय का दूध पिलाकर बड़ा किया ।

फिर लोगों से मिले पैसे से वो उसकी पढ़ाई करवाई और जब सयानी हुई तो चर्चा ब्याह की चली।


इस पर उसने आगे पढ़कर अपने पैरों पर खड़े होने का आग्रह किया  तो वो  मान गई।

आज वही लड़की जब पढ़ लिख कर अफसर बनी  तो जिस शख्स ने कभी उसका मुंह नही देखना चाहा।

बिस्तर पर पड़े उस बाप का इलाज करवाया।

निर्धनता के कारण सभी ने हाथ जो खींच लिया था।

यहां तक कि सब अपने सगे संबंधियों ने भी उसके बीमारी की खबर सुनी तो हाल चाल पूछने सिर्फ इसलिए नहीं आए कि कहीं पैसा न मांग ले।

ऐसे में ये सभी का सहारा बनी और जोड़ जोड़कर एक एक रुपया इकट्ठा करके पढ़ाई कराने वाली उम्रेदराज जिज्जी के हाथ पीले किए। फिर कम दीमाग बहन का इलाज कराया साथ ही  विकलांग भाई को शिक्षा दिलाई।

उसके बाद लम्बी बीमारी के बाद पता चला ज्यादा पीने के कारण लीवर खराब हो गया है तो  लाखों रूपए खर्च करके  इलाज कराया।पर कहते हैं ना कि कुछ रोग पर दवाइयों का असर एक समय तक ही होता है। उसके बाद भगवान भरोसे इंसान चलता है बस वही यहां भी हुआ जब तक सांस चली आ.सी.यू में पड़े रहे फिर एक दिन उन्होंने दम तोड़ दिया।

फिर कुछ दिनों बाद सब कुछ सामान्य हो गया तो इसके ब्याह की बात चली।


चलना लाज़मी भी है करीब करीब सभी अपनी अपनी जीविका चलाने लगे हैं बस रामू को छोड़कर तो उसकी जिम्मेदारी उसने ले लीं कि जब तक रहेगा उसे वो अपने साथ रखेगी।

बस शादी तय हो गई।

धूम धाम से बारात आई जयमाला हुआ खातिरदारी हुई सभी बहुत खुश ।

अब रस्म कन्या दान की आई तो पास बैठे चाचा चाची,बुआ फुफा,ताऊ ताई,जैसे तमाम जोड़े एक दूसरे का मुंह देख रहे ।

कि हमसे कहा जाएगा।पर इसने जिज्जी की तरफ देखा ।

मानों कह रही हो

बड़ी बहन मां समान होती है ।

उठो ना जिज्जी कन्यादान करो।

सो वो झट से उठी और बड़ी बहन होते हुए भी मां का फर्ज अदा कर उसका कन्यादान  किया।

स्वरचित

कंचन आरज़ू

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