कल कल बहती पाताल गंगा – Moral Stories in Hindi

सुमन तेरा चेहरा बता रहा है आज फिर तुम परेशान हो ,फिर से बेटे बहू में झगड़ा हुआ है क्या! सुमन ने एक लंबी सांस लेकर कहा -अब तो यह रोज की कहानी हो गई है, समझ में नहीं आता- दोनों इतने बड़े इंजीनियर हैं !बड़ी कंपनी में काम करते हैं! बढ़िया कमाते हैं! फिर छोटी-छोटी बातों को लेकर एक दूसरे की इतनी खिंचाई क्यों करते हैं?

देखो बहन ,पहले हम लोग देखभाल करके, ठोक बजाकर रिश्ता तय करते थे अब तो वे लोग खुद ही पसंद कर रिश्ता जोड़ लेते हैं। हम लोग सब स्वीकार भी कर लेते हैं ।फिर भी इतना झगड़ा , इतनी कलह!

यही तो मेरी भी समझ में नहीं आता क्यों ऐसा होता है ?

प्रमिला ने सुमन को बैठाकर एक गिलास ठंडा पानी पिलाया- देखो सुमन, इसमें तुम हम कुछ नहीं कर सकते इतने बड़े बच्चों को समझा भी नहीं सकते ना ही वे लोग समझना चाहते हैं। ऐसा तो होना ही था। पहले शादी होती थी एक लड़के की लड़की  से, ठीक! घर का मालिक लड़का, काम करके कमा कर लाता था ,अपना हुकुम चलता था ।

पर अब जब दोनों बराबर से कमाने लगे हैं क्यों एक दूसरे की घौंस सहें? अब तो घर में  दो कमाऊ पति हो गए हैं, पत्नी अनुपस्थित है -दोनों एक दूसरे से पत्नी बनने की अपेक्षा रखते हैं। क्यों घर के कामों में हाथ बटांयें , क्यों हम ही चाय बनायें ! रुचि अलग हो गई, पसंद अलग हो गई, दोस्त दूसरे हो गए ।  वे सिर्फ भड़का कर अपना मतलब निकालना जानते हैं।

ठीक कहा प्रमिला जी, बच्चे होते हैं तो मां-बाप के बीच पुल का काम करते हैं, उनका प्यार दुलार दोनों को बांधता है पर बच्चे तो वे पैदा करना ही नहीं चाहते ,भले ही कुत्ता बिल्ली पाल लेंगे !देखभाल तो उनकी भी करनी पड़ती है, समय से खाना देना, गंदगी साफ करना और बीमार पड़ने पर उन्हें भी डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता है इतनी मोटी सी बात इन लोगों की समझ में क्यों नहीं आती?

अपने भविष्य की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखते, यह लोग इतने पढ़े लिखे खुद हैं चार पढ़े लिखे लोगों के साथ व्यवहार है उठना बैठना है , साथ काम करते हैं,फिर भी सोच जैसे छोटी और छोटी होती जा रही है ।पता नहीं कल क्या होगा!

इनकी जेनरेशन की यही विचारधारा बनती जा रही है क्या?

सुमन की आंखों से आंसू गिरते जा रहे थे बहुत जल्दी बहुत  जल्दी ही यह लड़ाई बड़े झगड़े में बदल जाएगी और तलाक की भी मांग आ सकती है ।यह तो वर्चस्व की लड़ाई है ,कोई किसी से काम नहीं, कोई किसी के अधीन नहीं।

इन नासमझों को कोई क्या समझाए ?न तो इन्हें किसी की जरूरत है न ही कुछ समझाने की। न तो ये बच्चे पाल सकते हैं न ही जीवन में इसका महत्व समझते हैं।  इस बंजर होती जमीन का भविष्य देखने वाला कोई नहीं है।अगर यही हाल रहा तो पहले घर  और फिर पूरा समाज पंगु हो जाएगा !

सुमन फिर बोली मैंने कितनी कोशिश की दोनों को समझाने की, पर यह छोटी -मोटी बातें भी उनकी समझ में नहीं आती ।बस अपना अहम लेकर ही झगड़ते रहते हैं ,पर  दूसरी तीसरी शादी करके भी ये लोग सुखी नहीं हो सकते क्योंकि जड़ ही खोखली हो गई है।जब तक यह अकेलापन और सूनापन नहीं झेल  लेते उनकी आंख नहीं खुलेगी ,मगर तब तक उम्र भी बढ़ जाएगी और तब तक बहुत देर हो जाएगी ।

दोनों सखियां दुखी मन से एक दूसरे को समझाती रहती हैं।दोनो पड़ोसी हैं, जब लड़के बहुयें  ड्यूटी पर चले जाते हैं, तो दोनों एक दूसरे का दुख दूर करने की कोशिश करती हैं।

सुमन को जैसे कुछ याद आया प्रमिला -वह तुम्हारी बहन की सहेली है न! याद आया मधु! उसके क्या हालचाल हैं!

उसके क्या बताएं, हर घर की एक कहानी है बड़े शौक से उसने बेटी की शादी करवाई हम सब ने कहा ठीक है

ठोक बजाकर शादी रिश्ता तय करना। पर मधु जैसे समय को अपने हिसाब से बांधकर रखना चाहती थी ससुर बीमार पड़े ,जल्दी-जल्दी रिश्ता तय किया कि जब तक ससुर है शादी लेनदेन बढ़िया से हो जाएगा खुद ही पहले देखना समझना सब कर आई किसी पर विश्वास नहीं। खुद ही पहले लड़ झगड़ कर  सांस देवर से अलग हो गई थी, लंबी बीमारी के बाद पति के मरने के बाद सारे  निर्णय खुद लेने लगी । फिर भी शादी में सबने साथ दिया।

अब लड़की प्रिया ससुराल में सुखी है, सुखी मतलब ठीक ही है, और बेटी तो पहले से ही उड़न छू टाइप थी मां उससे भी ऊंचे सपने देखती है ,3 साल बाद मधु को लगा उसने सही निर्णय नहीं लिया- बेटी दुखी है!

मैंने पूछा कैसे पता चला ?

अरे , मैं रोज दो-तीन बार फ़ोन करती हूं, उनके घर की एक एक कहानी मुझे मालूम रहती है।कब ससुर को खाना पसंद नहीं आया,अब सास से ठन गई!

और जमाई!

वह तो मिट्टी का माधो है, कितनी बार हमलोगों ने समझाया कितनी बार फुसलाया -अलग घर लेकर ठाठ से रहो, दुकान अपने हाथ में ले लो! पर वह क्यों अपने मां-बाप को बेसहारा छोड़ेगा!वह राजी नहीं हुआ, समझदार है ,समझता है किन तकलीफों को झेलकर मां-बाप बच्चों को बड़ा करते हैं! फिर लेनदेन पापा के हाथ में ही रहता है हेर फेर की गुंजाइश नहीं है।तो  नतीजा वही जो हो सकता था ।सुबह शाम की चुगली ने नासमझ बेटी का मन डांवाडोल कर दिया। मां जो चाहती थी वही हुआ।

लड़ झगड़ कर बेटी मां के पास चली आई।

मां उसे संभाल लेगी? एक बच्चा भी तो है 2 साल का ?मुझे भी लगा था मधु अपनी करनी पर दुःखी होगी ,पर नहीं,हवा में उड़ने वाले अपना पेट संभलकर नहीं रख पाते  ,ऐक एक अपनी पोल खुल ही खोलती गयी । ससुराल में काम करना पड़ता है ,रसोई पानी भी करनी है ,,फिर उसे एक स्कूल में सर्विस के लिए भी समझा रहे थे जिससे थोड़ा हाथ खुद जाये खर्चे में सुविधा हो,

थोड़ा हाथ खर्च भी निकल आए। मैंने समझाया तुम्हें काम करके ही घर चलाना है,खाना बनाना है बच्चे की परवरिश भी करनी है –तो मेरे साथ चलो! खाना वगैरा की समस्या तुम्हारे बच्चे की जिम्मेदारी-सब मेरी !तुम्हारी उम्र है काम करके, सबसे मिलो जुलो, मौज करो। बेटी को बड़ी जल्दी समझ में आ गया। एक सर्विस भी अच्छी मिल गई काम के लिए खाने के लिए एक नौकरानी है।

बेटी बड़ी खुश है, स्वतंत्र है, बंधन मुक्त है ।सर्विस से आकर पास-पड़ोस में घूमती है, बन ठन कर रहती है बेटे को मनचाहा गिफ्ट देकर नानी फुसलती रहती है उसका भविष्य बल्कि बुढ़ापा सेफ ,है बेटी का अकाउंट संभालती है और तलाक का केस भी चल रहा है

सुमन हतप्रभ  हो गई, प्रमिला जी! क्या यही आजकी मां का कर्तव्य है! बेटी को अपने वैवाहिक संबंधों की कोई कदर नहीं है , मां भी नहीं सोचती?

नहीं बहना,मैंने ऐसी ही एक और  तलाक शुदा लड़की की दुर्दशा देखी है।जो अपनी विवेक बुद्धि से नहीं चलती उन्हे लिए दोनों घरों के रास्ते बंद हो जाते हैं।

यह तो समय ही बताएगा सुमन जी मुझे तो लगता है अभी भी दुनिया को हम लोग समझ ही नहीं पाए हैं, लोगों की ऐसी विचारधारा समाज को किधर ले जा रही है ।ये धारा किस मोड़ पर घुमा घुमाकर -कहां ले जाकर पटकेगी पता नहीं- समुद्र के किनारे पर या दलदल में!! पता नहीं कल क्या होगा!

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