hindi stories with moral :
वक्त अपनी रफ़्तार से गुजर रहा था और मीनाक्षी को केशव का घर छोड़े दो महीने होने को थे । पर अब एक बात अच्छी थी कि केशव और मीनाक्षी रोज फोन पर बात करते थे । हफ्ते मे एक बार दोनो मिल भी लेते थे किन्तु मीनाक्षी अभी थोड़ा सहज नही थी इधर केशव हर संभव कोशिश कर रहा था कि मीनाक्षी उसकी बातो पर यकीन कर ले और उसके साथ वापिस लौट जाये। इधर दोनो के माता पिता भी जानते थे उनकी बातो और मुलाकातों के बारे मे पर अब वो चाहते थे दोनो जल्दबाज़ी मे नही सोच समझ कर फैसला करे !
” मीनू प्लीज अब बस अब तो मुझे माफ़ कर दो और लौट आओ मेरे पास वापिस !” एक दिन केशव मीनाक्षी को उसके ऑफिस से लेकर घर छोड़ने आया तब उसके घर के बाहर खड़ा बोला।
” केशव लौटना मै भी चाहती हूँ पर अंदर ही अंदर डरती हूं कही साथ रहकर फिर से वही सब ना हो !” मीनाक्षी ने अपने मन की बात कही।
” क्या अब भी तुम्हे मुझपर यकीन नही आया । मीनू तब मैं तनाव मे था क्योकि मेरी जिंदगी मे कुछ भी मेरे मन मुताबित नही था पर अब परिस्थिति अलग है अब मैने अपने दम पर नौकरी हांसिल की है वो भी पहले से बेहतर !” केशव बोला।
” जानती हूँ केशव तुम मे काबिलियत है बस तब समय खराब था । अब जब तुम्हे नौकरी मिल गई है तो यकीन मानो मुझसे ज्यादा कोई खुश नही होगा लेकिन मन मे एक हिचक अब भी है !” मीनाक्षी बोली।
” जानता हूँ मीनू मेरी गलती बहुत बड़ी थी तो ये हिचक तो होगी ही पर अगर तुम मुझे माफ़ नही कर सकती तो प्लीज मुझे सजा दो मैं अब नही रह सकता तुम्हारे बिना !” केशव मीनू का हाथ पकड़ रोते हुए बोला।
टूट सी गई मीनाक्षी केशव के आँसू देख । एक भारतीय पत्नी थी वो और केशव उसका पति ही नही प्यार भी था कैसे उसको यूँ टूटता देख सकती थी उसने केशव को गले लगा लिया । इतने समय बाद दोनो इतने करीब आये थे केशव ने मीनू को ऐसे अपने सीने से भींच लिया मानो उसे डर हो फिर से मीनू अलग ना हो जाये। इधर मीनाक्षी को भी केशव के सीने से लग सुकून मिल रहा था वो सुकून जो पिछले कुछ महीने से उसकी जिंदगी से गायब था । काफी देर तक दोनो एक दूसरे मे खोये रहे दुनिया से बेखबर। मीनाक्षी अब फैसला कर चुकी थी केशव को माफ़ करने का क्योकि अपने प्यार से ये दूरी उसके लिए भी मुश्किल थी । मन के किसी कोने मे जो केशव के व्यवहार को ले गुस्सा था वो खत्म हो गया था अब तो बस वहाँ अथाह प्यार था अपने केशव के लिए । मीनाक्षी उससे कुछ कहने को हुई तभी उसे महसूस हुआ केशव की बाहों का घेरा ढीला पड़ने लगा है उसने केशव के सीने से सिर उठा उसकी तरफ देखा तो उसे अपने घर की तरफ घूरते पाया केशव की आँखों मे इस वक़्त मीनाक्षी को वही गुस्सा नज़र आया जो उसका घर छोड़ते वक्त आया था चुंकि मीनाक्षी की उस तरफ पीठ थी और वो लोग मुख्य मार्ग से काफी अलग गार्डन एरिया मे थे तो उसके घर से भी वो लोग नज़र नही आ रहे होंगे । फिर ऐसा क्या देखा केशव ने ?
मीनाक्षी एक दम से केशव से अलग हुई और पलटी वहाँ उसके पिता किसी आदमी को गले लगा रहे थे जोकि उसके नविन अंकल थे उसके पापा के खास दोस्त।
” क्या हुआ केशव तुम क्या देख रहे हो और इतने गुस्से मे क्यो हो ?” मीनाक्षी ने पूछा।
” क्यो तुम्हे नही पता ? तुम इतनी महान क्यो हो मीनाक्षी साथ ही भोली भी !” एक एक शब्द चबाता केशव बोला । उसके शब्द एक कटाश है ये मीनाक्षी ने साफ महसूस किया।
” क्या बोल रहे हो तुम ऐसा क्या हुआ है अभी पांच मिनट पहले तक सब ठीक था हम लोग एक दूसरे से अपने प्यार का इजहार कर रहे थे सब कितना अच्छा था फिर अचानक पापा और नवीन अंकल को देख तुम ऐसे व्यवहार क्यो करने लगे !” मीनाक्षी ने फिर पूछा।
” सब ठीक था !! क्या ठीक था वैसे द ग्रेट मीनाक्षी और कौन सा प्यार हम्म बोलो । ठीक था नही ठीक करने का नाटक था जो बड़ी सफाई से खेला तुमने और तुम्हारे पापा ने और एक बार फिर तुम महान् बन गई और मैं एक बार फिर से नकारा …साथ ही बेवकूफ भी !” आँखों मे आंसू और अंगारे दोनो लिए केशव बोला।
” केशव तुम मुझे कुछ भी बोलो पर मेरे पापा को नही समझे तुम ओर कौन सा नाटक किया मैने और मेरे पापा ने तुम्हारे साथ नाटक तो तुम कर रहे थे अभी थोड़ी देर पहले और मैं उस नाटक को सच मान तुम्हारे साथ फिर से सपने सजाने लगी थी ।” मीनाक्षी गुस्से मे बोली।
” मैने ना कल नाटक किया ना आज पर तुम हमेशा अपने पैसे के बल पर मेरे साथ मेरे जज्बातो से खेलती रही और मैं सोच रहा था जैसे मै तुमसे प्यार करता हूँ तुम भी करती होगी इसलिए अपनी गलती की माफ़ी माँगने चला आया पर नही तुम्हे तो सिर्फ अपने आपसे प्यार है इसलिए फिर एक बार मुझे धोखा दे मेरी मदद की और बन गई तुम महान !” केशव बोला।
” कौन सी मदद और कैसी महानता । ना मुझे कल महान बनने का शौक था और ना आज मुझे तो समझ भी नही आ रहा कैसी मदद की बात कर रहे हो तुम !” मीनाक्षी असमंजस मे बोली ।
” अच्छा बहुत भोली बनती हो अगर ऐसा है तो तुमने अपने नवीन अंकल से मेरी नौकरी को क्यो कहा तुम्हे लगा ऐसा करके तुम महान भी बन जाओगी और मैं तुमसे माफ़ी भी मांग लूंगा । खेल अच्छा खेला था मिस मीनाक्षी पर अफसोस ज्यादा दिन चला नही !” केशव ताली बजाते हुए बोला।
” क्या ..!! तुम नवीन अंकल की कम्पनी मे जॉब करते हो ? पर ये बात मुझे नही पता और पापा का इसमे हाथ है मुझे नही लगता क्या पता ये नौकरी तुम्हे तुम्हारी काबिलियत पर मिली हो किसी की सिफारिश पर नही !” मीनाक्षी मामला समझते हुए बोली।
” मैं भी यही समझता अगर नवीन गुप्ता को आज तुम्हारे पापा के साथ ना देखता। यहां तक कि तुमने मेरे घर वालों को भी अपनी गंदी चाल मे शामिल कर लिया । मिस मीनाक्षी मैं कल भी ठीक था आज भी ठीक हूँ तुमसे प्यार करना मेरी भूल थी और उससे भी बड़ी भूल थी तुमसे यहाँ माफ़ी माँगने आना तुम रहो यहाँ अपने बाप के महल मे मुझे मेरी झोंपड़ी मुबारक पर आज के बाद कभी भी कैसे भी मेरे रास्ते मे मत आना तुम्हारा और मेरा रिश्ता यही खत्म !” केशव जोर से चिल्लाया उसकी आवाज इतनी तेज थी कि दूर बात करते सुरेंद्र जी और नवीन जी तक भी पहुंची । मामला समझने के लिए वो दोनो पार्क मे आये और मीनाक्षी और केशव को देख कुछ हद तक सब समझ गये।
” केशव ये क्या बोल रहे हो तुम मेरा यकीन करो मैने नवीन अंकल से बात नही की मैं तो ये भी नही जानती तुम नविन अंकल की कम्पनी मे जॉब करते हो !” मीनाक्षी रोते हुए बोली।
” बस अब और झूठ नही तुम्हारा असली चेहरा मेरे सामने आ चुका है !” केशव नफरत से बोला। अभी तक उन दोनो को नही पता था कि उनकी बाते उन दोनो के सिवा दो लोग और सुन रहे है।
” मीनाक्षी झूठ नही बोल रही समझे तुम वो नही जानती थी कुछ भी जो कुछ किया मैने और तुम्हारे माता पिता ने किया क्योकि हम लोग नही चाहते थे तुम डिप्रेशन मे जाओ और तुम दोनो का रिश्ता और खराब हो !” सुरेंद्र जी पेड़ के पीछे से उन दोनो के सामने आये और बोले।
” पापा क्यो ?? क्यो किया आपने ये सब !” पिता को देख मीनाक्षी दुखी स्वर मे बोली।
” बेटा मैं सिर्फ तुम दोनो की खुशी चाहता था और एक पिता होने के नाते ये गलत तो नही । तुम केशव से अलग हो कितना दुखी हो ये किसी से छिपा नही उधर केशव के परिवार वाले भी दुखी थे । इतने सारे लोगो को खुश करने के लिए ये सब किया मैने जो मेरा फर्ज भी था !” सुरेंद्र जी बोले।
” नही आपने ये सब मीनाक्षी के कहने पर किया वो भी मुझे नीचा दिखाने को । क्योकि आप फिर से ये जताना चाहते थे मैं आपकी बेटी के बिना कुछ भी नही इसलिए आपने अपने दोस्त के साथ मिलकर ये सब नाटक किया और मेरे भोले भाले माता पिता को इसमे शामिल कर लिया !” केशव गुस्से मे बोला।
” नही बेटा ऐसा कुछ नही और इसमे मेरी बेटी का कोई हाथ नही । मैं तो सिर्फ अपने बच्चो की खुशी चाहता हूँ !” सुरेंद्र जी ने केशव के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।
” ये सही कह रहे है मीनाक्षी बिटिया इस बारे मे कुछ नही जानती वैसे भी मैने तुम्हारी काबिलियत पर ही तुम्हे नौकरी दी थी !” नविन जी बोले।
” आप चुप रहिये ये आपका मामला नही !” केशव नवीन जी से बोला। ” और आप सिर्फ अपनी बेटी की खुशी चाहते है पर आपने अपने स्वार्थ मे ये नही सोचा जब मुझे इस बात का पता लगेगा तब मुझपर क्या बीतेगी क्यो बार बार आप बाप बेटी मुझे जलील करने पर तुले हो । आप अपनी बेटी का घर बसाने को ये सब कर रहे थे ना तो मिस्टर सुरेंद्र नाथ जी अब अपनी बेटी को अपने पास रखिये हमेशा के लिए क्योकि मेरा इससे कोई रिश्ता नही !” केशव गुस्से मे चिल्लाया।
” नही बेटा ऐसा नही कहते तुम अभी गुस्से मे हो !” सुरेंद्र जी केशव का हाथ पकड़ कर बोले !
” बेटा नही हूँ मैं आपका …नही हूँ बेटा !” केशव उनका हाथ झटकते हुए बोला। केशव का झटका इतना तेज था की सुरेंद्र जी गिरते गिरते बचे अगर नविन ने उन्हे ना सम्भाला होता तो वो गिर ही जाते।
” केशव …. जो मेरे पापा ने किया वो तुम्हे गलत लग रहा है पर तुम जो कर रहे हो वो सही है । मेरे पिता ने तुम्हारे भले के लिए सब किया हमारे भले के लिए किया लेकिन तुम अपने गुस्से मे पागल हो चुके हो सही गलत भूल गये हो। तुम्हे लगता है तुम सही हो तो ठीक है तुम मुझे क्या छोड़ोगे मैं छोड़ती हूँ तुम्हे अब तुमसे मुलाक़ात अदालत मे होगी । जो इंसान मेरे पिता का आदर नही कर सकता वो मेरा कोई नही !” मीनाक्षी पिता को संभालती गुस्से मे बोली।
केशव गुस्से मे वहाँ से चलता बना ।
” बेटा सुनो तो !” सुरेंद्र जी बोले।
” जाने दो पापा उसे !” भरे गले से मीनाक्षी बोली और पिता को ले अंदर आ गई नवीन जी ने अभी उनसे विदा लेना ही उचित समझा।
दोस्तों फिर से एक बार ईगो जीत गया प्यार हार गया अब क्या होगा सच मे दोनो का प्यार भरा रिश्ता अदालत की चौखट पर दम तोड देगा ?
जानने के लिए पढ़ते रहिये और अपना प्यार कमेंट और लाइक के रूप मे भेजते रहिये जिससे कहानी आगे लिखने का मोटिवेशन मिलता रहे
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