“देखिए मां जी अगर आपको दूध, चाय पीना है तो दूध तो आपको ही लाना पड़ेगा, ये लीजिए डिब्बा और ले आइए….वरना फिर मत कहना कि मुझे चाय नहीं दी…और हां आप जो कहती रहती हैं न कि रात को दूध आता तो है….तो मैं आपको बता दूं कि वो दूध रात को ही खत्म हो जाता है….।” कहकर श्रुति अपने कमरे में चली गई।
“देखा आपने, जब से विनय की नौकरी दूसरे शहर में लगी है तब से इसके तेवर कितने बदल गए हैं….पहले तो भी विनय के सामने कुछ नहीं कहती थी लेकिन अब अब तो पूछो ही मत……और आप है कि कुछ कहते ही नहीं….” सरला ने अपने पति अशोक से कहा।
“अब मैं क्या कहूं?…एक तो विनय यहां नहीं है यदि वो होता तो उससे कुछ कहता….अब बहू से कहने से क्या फायदा….फालतू में घर में क्लेश ही होगा….और फिर घर का सारा काम तो वही करती है केवल दूध या कभी कभी सब्जी लाने के लिए ही तो तुझसे कहती है….ला दिया कर फालतू मैं क्या बात बढ़ाना…. “
“अच्छा तो अब आप भी कुछ नहीं कहोगे….चढ़ा लो सिर पर ….पहले तो कभी कभी मुझसे सब्जियां ही मंगवाती थी लेकिन अब अब तो रोज का दूध का लगा दिया है
और मना करो तो धमकी और कि चाय नहीं मिलेगी…..ये कुछ नहीं बस मुझे परेशान करने वाली बात है….देखना एक दिन ये तुम पर भी हुकुम चलाएगी अगर अभी किसी ने कुछ नहीं कहा तो….
“कौन किस पर हुकुम चला रहा है…..”कहते हुए सरला की बेटी आभा ने कमरे में प्रवेश किया जिसे देख सभी चौंक गए
“अरे तू ….तू कब आई….और इस बार तो बिना किसी सूचना के….सब ठीक तो है….”
“हां मां अब ठीक है, और मैं क्या अपने घर भी नहीं आ सकती बिना सूचना के….”
“अरे नहीं नहीं मेरा वो मतलब नहीं था….अच्छा चल बैठ …और बता वहां सब बढ़िया….”
“वहां तो सब बढ़िया….लेकिन आप बताओ आप इतना गुस्सा किस पर हो रही थीं….”
“अरे तेरी वो भाभी है….जब से विनय बाहर गया है तब से कुछ ज्यादा ही तेवर बदल गए हैं उसके….
सुबह होने की देर नहीं होती बस ये ले आओ बाजार से वो ले आओ बाजार से हुकुम चलाती रहती है ….खैर छोड़ तू इन सब बातों को….(श्रुति को आवाज देते हुए) अरे बहू, आभा आई है, पानी वानी ले आ और कुछ नाश्ता बना दे….”
“अरे रहने दो मां, कुछ काम कर रही होंगी भाभी मै वहीं अंदर मिल आती हूं….”कहकर आभा अंदर चली जाती है।
“भाभी, मैं ये क्या सुन रही हूं कि आप किसी न किसी बहाने मां को बाजार भेजती रहती हो….उनको कितनी तकलीफ होती होगी इस उम्र में…
आप इतना कैसे बदल गई पहले तो आप ऐसी नहीं थीं…..सब आपकी तारीफ करते थे….लेकिन अब आप इतना पत्थर दिल हो गईं कि आपको मां की तकलीफ भी नहीं दिखाई देती….और अगर आपको सामान मंगाना ही है तो पापा से मंगा लिया कीजिए वो तो जाते ही हैं बाजार….”
“अरे दीदी देती है दिखाई मांजी की तकतीफ….तभी तो भेजती हूं मां जी को….कभी कभी किसी की भलाई के लिए पत्थर दिल का बनना पड़ता है, अच्छा आप बताइए बच्चे शुरू में पढ़ने के लिए जाते समय रोते हैं
तब भी उनके माता पिता भेजते हैं तो क्या वो पत्थर दिल के होते हैं नहीं क्योंकि वो उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहते हैं और आप बताइए कभी कभी आपका मन किसी कार्य को करने का नहीं होता था तब भी मां जी आपसे कार्य करवाती थीं
तब आपको मां जी पर बहुत गुस्सा भी आता था लेकिन तब भी वह नहीं मानती थीं तो क्या वह पत्थर दिल की थीं….नहीं, क्योंकि वो चाहती थी कि आप ससुराल जाने से पहले सब कुछ सीख लें लेकिन आपको मां जी के व्यवहार का कारण समझ नहीं आता था….ऐसे ही आज मां जी को मेरा बाजार भेजना तो दिखाई दे रहा है लेकिन मैं क्यों भेज रही हूं ये समझ नहीं आ रहा
और आपको भी मै पत्थर दिल की लग रही हूं…..दरअसल बात यह है कि डॉक्टर ने इनको प्रतिदिन टहलने के लिए बोला है और ये उसमें आनाकानी करती हैं, कभी जाती तो कभी नहीं….जब तुम्हारे भैया यहां थे तब वह उनके कहने पर जाती तो थीं लेकिन बस 10 कदम गली में चलतीं और कोई जान पहचान का मिल जाता तो बस वहीं बातें करने लग जाती और यह कहकर वापिस आ जाती
कि मुझ पर नहीं चला जाता….हम सबने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की कि पहले थोड़ी दूरी तक जाओ फिर आदत बन जाएगी तो बढ़ा देना लेकिन वो मानती ही नहीं थीं फिर जब तुम्हारे भैया का ट्रांसफर बाहर हो गया तो मुझे ये आइडिया आ गया
कि किसी न किसी बहाने तो इनको भेजना पड़ेगा….बस फिर क्या था दूध या सब्जी यही दो चीजें ऐसी हैं जिनके बहाने इन्हें रूटीन से सुबह सुबह टहलने के लिए भेजा जा सकता है ….इसके लिए मैंने पापाजी को भी मना लिया कि वो दूध या सब्जी न लाया करें…..”
“अरे वाह भाभी आप तो बड़ी उस्ताद निकलीं….मतलब पापा भी आपके व्यवहार में शामिल हैं….”
“अच्छा आप ही बताइए क्या आपको मां जी की हेल्थ में पहले से सुधार नजर नहीं आया जबकि अभी ऐसे लगभग 20 ही दिन हुए है…”मुस्कुराते हुए श्रुति ने आभा से पूछा।
“हां, ये तो है…अब पता चला मुझे कि आपका तो पत्थर दिल भी अच्छा है …ऐसे ही रखना अब मां के लिए तभी जायेगी ये टहलने वरना तो आपने आदत खराब कर दी थी ज्यादा सेवा करके….” कहकर आभा हंस दी।
“हां हां ,अब तू भी शामिल हो जा उसके साथ….तुझे भी अच्छा नहीं लग रहा न कि मैं बुढ़ापे में आराम की रोटी खाऊं ….” अंदर आते हुए सरला ने कहा जो कि उनकी बातें बाहर खड़े हुए सुन चुकी थी
उनको देख दोनों के चेहरे का रंग उड़ गया…वो एक दूसरे को हतप्रभ होकर देखने लगीं…..
” पता है, पता है कि अब तुम दोनों मेरी भी मां बन गई हो…..अब ऐसे मत देखो एक दूसरे को…..और हां अब से तुझे भी मुझको बहाने से भेजने की जरूरत नहीं…. मैं खुद रोज सुबह दूध और सब्जी ले आया करूंगी….और घर के कामों में भी थोड़ी मदद किया करूंगी….
नहीं तो ये शरीर तो बैठे बैठे बीमारियों का घर ही बन जायेगा….और मैं अब ज्यादा रिस्क नहीं ले सकती अपनी सेहत के प्रति वरना खाने की जगह दवाइयां ही खानी पड़ेगी बुढ़ापे में….”
सरला की बातें सुन दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं।।
लेखिका : प्रतिभा भारद्वाज